निशिकांत दुबे जायज या नाजायज, कौन तय करेगा?

 भारतीय जनता पार्टी के नेता और झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे लगातार विवादों में घिरे हुए हैं. वक्फ संशोधन कानून पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से आई टिप्पणी और उसके अहम प्रावधानों पर अगली आदेश तक रोक के बाद दुबे ने देश की सर्वोच्च अदालत पर खुलकर निशाना साधा था. दुबे ने कहा कि अगर शीर्ष अदालत को ही कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए. इसके अलावा, उन्होंने देश में हो रहे गृह युद्धों के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को जिम्मेदार ठहराया. देश को अराजकता की ओर ले जाने का आरोप भी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर मढ़ दिया. पहले तो उनके बयान पर विपक्षी नेताओं का बयान आया मगर अब सुप्रीम कोर्ट से उनके खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाने की मांग हुई है.


इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में आज एक अहम घटनाक्रम भी हुआ. जब एक याचिकाकर्ता दुबे के खिलाफ केस की अनुमति लेने के लिए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के पास गुहार लगाने पहुंचे तो पीठ ने साफ तौर पर कह दिया कि केस करने के लिए उनको हमारी अनुमति की जरूरत नहीं है. जस्टिस गवई ने कहा, “आप इसे दायर करें. दायर करने के लिए आपको हमारी इजाजत की जरूरत नहीं है. ” सवाल है कि क्या वाकई एक सांसद पर अवमानना का मुकदमा चल सकता है या उसे किसी भी तरह का जनप्रतिनिधि होने के नाते संरक्षण हासिल है. साथ ही, इतिहास में किन बड़े नेताओं के खिलाफ ऐसे मामले चले और उसका नतीजा क्या रहा, सवाल ये भी कि क्या अवमानना के मामले में सांसदी जा सकती है?

नंबूदरीपाद पर लगा था जुर्माना

दरअसल, अदालत संविधान के अनुच्छेद 129 के तहत चाहे तो मानहानि का मुकदमा चला सकती है. सांसदों को भी इससे छूट नहीं है. 1970 में केरल के मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदरीपाद के खिलाफ अदालत ने मानहानि तय करते हुए 50 रुपये का जुर्माना लगाया था. नम्बूदरीपाद ने सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा था कि सर्वोच्च अदालत अमीरों के हित साधने के लिए है. हाल के वर्षों में कपिल सिब्बल और पी. चिदंबरम के खिलाफ भी ऐसा ही मुकदमा चलाने की मांग हुई थी. मगर वो चल नहीं सका. सांसदी जाने की बात का जहां तक सवाल है, ये लगभग नामुमकिन है. क्यों ये तभी जाता है जब किसी मामले में दो साल की सजा हो. और मानहानि के मामलों में इतनी सजा आमतौर पर होती नहीं है.

संविधान का अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को अवमानना ​​के लिए दंडित करने का अधिकार देता है. न्यायालय की अवमानना ​​कानून, 1971 में इससे जुड़े प्रावधान हैं. न्यायालय के अधिकार को बदनाम करने से लेकर न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की स्थिति में अवमानना का केस चलता है. अवमानना ​​के लिए दोषी ठहराए जाने पर जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के तहत संसद से खुद अयोग्यता नहीं होती, जब तक कि सजा दो साल से ज़्यादा न हो. चूँकि अवमानना ​​की सज़ा शायद ही कभी यहां तक पहुंचती है, इसलिए ऐसे अधिकतर मामलों में सांसद अयोग्यता से सुरक्षित रहते हैं. वहीं अगर संसद के विशेषाधिकार समिति की बात करें तो किसी भी सदन की विशेषाधिकार समिति केवल तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब मामला संसद के भीतर उठाया गया हो.

(सुप्रीम कोर्ट पर क्या बोले रामदास अठावले, फाइल फोटो) Source : IANS

केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि न्यायपालिका का सभी को आदर करना चाहिए. न्यायपालिका दो भी आदेश देती है उसे मानना ही चाहिए. लेकिन न्यायपालिका को भी एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि संसद 'सुप्रीम' होती है. कानून बनाना पार्लियामेंट का काम होता है. कानून के मुताबिक जजमेंट देना न्यायपालिका का काम होता है.

'सुप्रीम कोर्ट को भी पार्लियामेंट का आदर करना चाहिए'

केंद्रीय मंत्री ने आगे कहा कि हर बात पर संसद की तरफ से बनाए कानून पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा टिप्पणी करना ठीक नहीं होता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का हम आदर करते हैं और सुप्रीम कोर्ट को भी पार्लियामेंट का आदर करना चाहिए.

दरअसल, केंद्रीय मंत्री अठावले का बयान ऐसे समय में आया है जब बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे के बयान पर सियासी विवाद खड़ा हो गया. निशिकांत दुबे ने कहा था, "इस देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं उसके जिम्मेवार यहाँ के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना साहब हैं."

'...तो संसद भवन को बंद कर देना चाहिये'

इसके साथ ही अपने एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने लिखा, "क़ानून यदि सुप्रीम कोर्ट ही बनाएगा तो संसद भवन बंद कर देना चाहिये."

बीजेपी ने दुबे के बयान से किया किनारा

बीजेपी सांसद के इन्हीं बयानों पर विवाद हो गया. हालांकि, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने निशिकांत दुबे के बयान को निजी बयान बताया और कहा कि इससे पार्टी का कोई लेना देना नहीं है. उन्होंने कहा कि हम न्यायपालिका का सम्मान करते हैं.

विपक्ष ने की कार्रवाई की मांग

निशिकांत दुबे के बयान पर विपक्ष भड़का हुआ है. झारखंड के मंत्री इरफान अंसारी ने मांग कर दी कि निशिकांत दुबे को तुरंत लोकसभा से बर्खास्त कर देना चाहिए. वहीं कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने आरोप लगाया कि निशिकांत दुबे मंत्री बनने के लिए हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं. उन्होंने बीजेपी सांसद के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की. बता दें कि निशिकांत दुबे झारखंड की गोड्डा सीट से सांसद हैं. वो चौथी बार सांसद बने हैं.

कौटिल्य शास्त्री 

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