बस्ती विकास प्राधिकरण जिसे एक मेट चला रहा,योगी जी!

 बीडीए को कमिश्नर, डीएम और एडीएम नहीं मेट चला रहें!



बस्ती, उत्तरप्रदेश 
 सुनने में अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है, कि बीडीए को आयुक्त, डीएम, एडीएम, एक्सईएन, एई नहीं बल्कि दस-बारह हजार मानदेय पाने पाने वाला मेट चला रहा है। जीडीए के मेट का मतलब सबकुछ। अवैध निर्माण करवाना हो, अवैध मानचित्र स्वीकृति करवाना दो, सीलिंग तोड़वाना हो, गलत रिपोर्ट लगावाना हो, बिना मेट के सहमति के कुछ नहीं हो सकता। अब जब अंदाजा लगाइए कि जिस पर जेई की रिपोर्ट लगनी चाहिए, उस पर मेट रिपोर्ट लगा राहा है। इतना ही नहीं अधिकारी मेट की रिपोर्ट को फाइनल मानकर डीएम के पास आईजीआरएस निस्तारित होने के लिए भेज भी देते है। जेई यह तक देखने नाहीं जाते कि रिपोर्ट सही है, या फिर गलत, आंख बंद कर सारे अधिकारी उसी रिपोर्ट को आधार बनाकर मामले को निस्तारित करपा येते है। बीडीए के जिम्मेदार लोग आंखबंद कर इस लिए रिपोर्ट लगाते हैं, क्यों कि उनका भी काय याला है। अधिकारियों को

आइ‌जीआरएस का निस्तारण जेईई और एक्सईएन की रिपोर्ट पर नहीं बल्कि मेट की रिपोर्ट पर होता

-बोडीए में मेट की रिपोर्ट पर होता आईजीआरएस का गुणवत्ताधीन निस्तारण, रोडवेज के सामने निर्माणाधीन कमर्सिफर भवन का निर्माण बंद होने का रिपोर्ट लगा दिर, जबकि निर्माण चालू

-इनकी कमाई साहबों से कम नहीं होती, जब तक इनकी जेब भर नहीं जाती, यह क्षेत्र में भ्रमण करते खते

-जेई, पई और एक्सएन को पता ही नहीं चलता और या लाखों को सौदा कर लेते

-दस हजार मानदेव पाने वाला मेट अगर हेली लाख दे लाख कमाएगा तो वह करोड़पति कहलाएगा ही

-वैएम से की गई शिकायत, दिया जी का आदेश

पता ही नहीं चलता और मेट ना जाने कितने अवैध निर्माण करवा देता। रोडवेज के सामने सुप्रदा देवी पत्नी केदार का क्वमर्सिएत भवन का निर्माण हो रहा है, जब इसकी शिकायत लोकायुक्त कार्यालय में कार्यरत अवण कुमार द्विवेदी ने आईआरएस में किया तो नेई ने मेट को भेज दिया, अब जय अंदाजा लगाइए कि एक मेट क्या यह जान पाएगा, कि भवन स्वीकृति मानचित्र के अनुरुप हो रहा या फिर विपरीत्त। चूंकि ई एई और एक्सईएन का मेट पर पूड भरोसा रहता है। शिकायत अवैध

और नियमावली के विपरीत निर्माण कराने की गई। कहा गया कि मानचित्र स्वीकृत्ति करने से पहले सभी विभागों से एनओसी लेने की प्रक्रिया को भी नहीं निभाया गया, सेट बैंक भी नहीं छोड़ा गया। खासत बात यह है, कि जिस मेट ने पैसा लेकर काम बंद होने का झूठा रिपोर्ट लगाया, दरअसल में काम कभी बंद हुआ ही नहीं, एक दिन पहले तक काम काम जहारी था, जब मजदूरों से पूछा गया कि काम खलु है, तो कहा कि बंद कब हुआ था। इस लिए मेट जो गलत सही रिपोर्ट लगा देता है,

उसी को सही मानकर पिकापत को निस्तारित करने के लिए डीएम के पास रिपोर्ट भेज दिया जाता, मानि इन लोगों ने डीएम को भी नाहीं सोडा रिपोर्ट लगाने के बाद जेई कभी देखने ही नहीं गए, कि निर्माण हो रहा है, या नहीं?

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