राजेंद्र नाथ तिवारी
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि. त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥
अर्थातः- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ. त्रिलोकनिवासियों की पूजनीय परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो.आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति हेतु:
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्. रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥
अर्थातः- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो. परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि मेरे शत्रुओं का नाश करो.
महामारी नाश हेतु:
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी. दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
अर्थातः- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो.
रोग नाश हेतु:
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्.
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥
अर्थातः- देवि! तुमहारे प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो. जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं.
विश्व की रक्षा हेतु:
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी: पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:.
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥
अर्थातः- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं. देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये.
विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश हेतु:
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य.
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
अर्थातः- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ. सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ. विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो. देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो.
विश्व के पाप-ताप निवारण हेतु:
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:.
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
अर्थातः- देवि! प्रसन्न होओ. जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ. सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो.
विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने हेतु:
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च.
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥
अर्थातः- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें.
सामूहिक कल्याण हेतु:
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या.
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥
अर्थातः- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं. वे हमलोगों का कल्याण करें.
कैसे करें मंत्र जाप :-
नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन संकल्प लेकर प्रातःकाल स्नान करके पूर्व या उत्तर दिशा कि और मुख करके दुर्गा कि मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या "षोड्षोपचार से पूजा करें.
शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, स्फटिक, तुलसी या चंदन कि माला से मंत्र का जाप १,५,७,११ माला जाप पूर्ण कर अपने कार्य उद्देश्य कि पूर्ति हेतु मां से प्राथना करें.
संपूर्ण नवरात्रि में जाप करने से मनोवांच्छित कामना अवश्य पूरी होती हैं.
उपरोक्त मंत्र के विधि-विधान के अनुसार जाप करने से मां कि कृपा से व्यक्ति को पाप और कष्टों से छुटकारा मिलता हैं
और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुगम प्रतित होता हैं.