आज राजनीति सेवा नहीं मेवा का कार्य नहीं अपितु धंधा बन गई है.,मैने,आपातकाल, संपूर्ण क्रांति आंदोलन श्री रामजन्म भूमि,किसान आंदोलन,विश्व विद्यालयों में छात्र आंदोलन,गोरखपुर विश्व विद्यालय,काशी हिंदू विश्व विद्यालय,इलाहाबाद विश्व विद्यालय आदि में प्रत्यक्ष,अप्रत्यक्ष \आंदोलनों में सक्रियता के साथ हिस्सा रहा.पहले योग्यतम ही राजनीति में आता था ,आज अयोग्यतम ही राजनीति का पहरुआ बन बैठा है
कई युवा वर्जिनिटी में भविष्य की प्रत्यक्ष की तलाश में आत्म मुग्धता के शिकार हो रहे हैं और पूछते हैं कि राजनीति करना पहले साल था या अब सरल है? मुझे लगता है, राजनीति पहले सरल थी.आम आदमी भी, जो सामान्य परिवार से हो, जिसकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि न हो, जिसके पास साधनों की बहुलता नही, बड़ा जातीय समीकरण न हो, राजनीति में अपना कुछन न कुर कुछ स्थान बना सकता था। राजनीति में पहले जो प्रमुख काम थे, वे सेवा से प्रारंभ होते थे थाने, कचहरी, तहसील, एसडीएम कलेक्टर कार्यालय में जाकर लोगों के कामों में उनकी सहायता करना। आम आदमी अपनी बात ठीक से प्रस्तुत नहीं. कर पाता था, उसे अफसर के सामने अपनी बात को सही ढंग से रखने के लिए एक व्यक्ति चाहिए होता, जो उसकी बात को रख सके और उसका कार्य हो सके. राशन कार्ड बनवाना, सीमेंट की परमिट लेना, बच्चे का स्कूल में दाखिला करवाना, गरीब बच्चों की फीस माफ कराना, सरकारी अस्पताल में डॉक्टर ठीक से मरीज की देख ले, इसमें मदद करना आदि।गोरखपुर,बनारस में तो दो ऐसे नेता थे, जिन्होंने छोटे-छोटे कामों में लोगों की मदद करके ऐसा सम्मान प्राप्त किया कि लोग उन्हें बोट भी देते थे और उनकी आर्थिक मदद भी करते.आज तो संगठित गिरा कि तरह आर्थिकी का हिमालय खड़ा करना समय बात होगई है मीटिंगों मरवाने से शर्म फिर आपको क्यों न कहा जाय बेशर्म.
नेता का दूसरा काम होता, लोगों की समस्याओं को लेकर आंदोलन खड़े करना। एक तरफ, स्थानीय प्रशासन पर दबाव बनाना और दूसरी तरफ, खुद को जनता का हितैषी बनाना. तेली, पटरी, झुग्गी-झोंपड़ी को उजाड़ने के प्रशासनिक अभियानों का विरोध करना जैसे अनेक विषय होते थे, जिनको लेकर शासन-प्रशासन से अनवरत संघर्ष होता था. इस क्रम में आंदोलन करके जेल जाने तक के कार्यक्रम होते थे आंदोलन कार्यकर्ता के प्रशिक्षण का प्रभावी माध्य
बनते थे. इन्हीं गतिविधियों से व्यक्ति की राजनीतिक पहचान बनती थी.
अब राजनीति में पैसे का महत्व हो गया है. जिसके पास संसाधन है, उसके लिए आगे बढ़ना एक बूस्टर डोज है.आग शायद उस तरह के कामों की आवश्यकता भी नहीं है, जैसे काम पहले करने पड़ते थे। अगर आपके पास साधन हैं, तो आपने राजनीति में आगे बढ़ने की पहली योग्यता हासिल कर ली है. अगर आप किसी राजनीतिक परिवार से है, तो फिर आपको सरपट दौड़ने से कोई नहीं रोक सकता.अगर आपकी जाति भी बड़ी है, फिर ती सीने में सुहागा। एक समय तो ऐसा भी था. जब कारोबार जगत के लोग राजनीति से दूर रहते थे.धनपतियों का काम केवल धन देना था, उनके लिए राजनीति दूर की कौड़ी थी.मगर अब स्पष्ट रूप से ये सारे मिथक टूट गए हैं.आर्थिक और सामाजिक अपराधी का समवेत स्वर ही राजनीति है.
अब्राहम लिंकन ने कहा है अगर किसी की हैसियत देखनी है तो उसे बड़ा दायित्व देकर ख लीजिए.एवरेस्ट पर चढ़ना आसान पर टिके रहना असंभव.
भर्तृहरि ने अपने नीति,शृंगार,वैराग्य पुस्तक में राजनीतिकों वारंगना(वैश्या) कहा है.राजनीतिक जितना क्षरण आज है ईश्वर करे इसी पर रुक जाय.पहले किसी का एहसान चुकाना राजनीति थी,आज एहसान चुकाने वाले को और बर्बाद करना ही राजनीति है.राजनीति की नई स्तरीय पौध उगने देने से पहले उसे समाप्त करना भी राजनीति है.
चाणक्य ने कभी चंद्रगुप्त पैदा किया पर आज का चन्द्र गुप्त चाणक्य का समूल विनाश पर तुलता है.संपूर्ण देश में गला काट स्पर्धा हर हाल में सफल होने की है.एक सफलता हजारों अवगुणों को समाप्त कर देती है,पर विफलता मेंअनायास ही कमियां दिखती है.
यह जो राजनीति में हो रहा है उसका संक्षिप्तवविश्लेष है.अगर आज का मेरीटोरियस युवा राजनीति में आना चाहता है तो न आए तो ज्यादा ही अच्छा है,अन्यथा पग पग पर मीरजाफर, जयचन्द और अम्भी विद्यमान है.
राजेंद्र नाथ तिवारी
संपादक