होनहार विरवान के होत चिकनो पात
कौटिल्य शास्त्रीनिस्संदेह एक दलित होने के बावजूद भीमराव अंबेडकर अपनी मेहनत और शिक्षा के बल पर विधानसभा, लोकसभा तक पहुंच पाए। परंतु इसी से संबंधित है मेरा प्रश्न यह है फिर उस समय में दलित समाज से सिर्फ भीमराव अंबेडकर ही क्यों इतना ज्यादा पढ़ लिख कर आगे बढ़ सके ? उसी समाज से अन्य व्यक्ति इतना आगे क्यों नहीं बढ़ पाए?
उस समय में भी यदि दलित वर्ग से किसी व्यक्ति में कोई प्रतिभा दिखाई देती थी तो उस समय की सरकार, राजा, महाराजा, धनाढ्य, संपन्न लोग वजीफ़ा के रूप में उसकी वैसे ही मदद करते थे जैसे सामान्य वर्ग के किसी छात्र का। तो फिर अंतर कहां है ? उस समय के दलित समाज में क्यों सिर्फ अंबेडकर जी ही पढ़ लिख कर उच्च पदों तक पहुंच पाए? बाकी के लोग इतनी अच्छी शिक्षा क्यों नहीं प्राप्त कर सकें? इतने ऊंचे पदों तक क्यों नहीं पहुंच सके? उस काल मे दलित समाज के दूसरे छात्रों तथा अंबेडकर जी में क्या अंतर था? इन प्रश्नों का उत्तर आप खुद विश्लेषण करें।
देखिए मेरे विचार से आज का आरक्षण सिस्टम अंबेडकर जी ने भी सिर्फ 10 वर्षों के लिए ही किया था । वह इस बात को समझते थे कि कहीं दलित वर्ग को इसकी आदत न पड़ जाए। उनकी दृष्टि में आरक्षण सिर्फ एक सहायता के रूप में था। परंतु वोट बैंक की राजनीति में इसे हर दर 10 साल के लिए बढ़ाने पर समय-समय की सरकारों को मजबूर किया तथा आरक्षण की बैसाखी ने इस दलित वर्ग को मानसिक तौर पर इतना कमजोर बना दिया है कि अब यह वर्ग अंबेडकर जी की भांति अपने बल पर मेहनत करके स्वयं कुछ पाना नहीं चाहता है।आज भी इस वर्ग में वे लोग भी मौजूद हैं, जिन्हें वास्तव में आरक्षण जैसी किसी सहायता की आवश्यकता नहीं है, जो सामान्य वर्ग से कहीं भी किसी भी स्तर में धन धान्य में कम नहीं है, परंतु फिर भी उन्हें आरक्षण चाहिए क्योंकि अब इन्हें इसकी आदत पड़ चुकी है और अब वे बिना मेहनत के ही सब कुछ पाना चाहते हैं। इन्हें बिना equal कंपटीशन के विद्यालयों में एडमिशन चाहिए (भले ही किसी सामान्य वर्ग के छात्र का 90% नंबर पाने के बावजूद भी एडमिशन ना हो पाए और इस समाज से आने वाले व्यक्ति का शून्य नंबर होने पर भी आरक्षण के तहत एडमिशन हो जाए), सरकारी महत्वपूर्ण सेवा पदों पर भी आने के लिए यह कंपटीशन में नहीं आना चाहते, इन्हें नौकरियों में भी आरक्षण चाहिए । यहां तक तो ठीक था लेकिन हद तो तब हो जाती है जब नौकरी पाने के बावजूद मेहनत करके प्रमोशन नहीं लेना चाहते, इन्हें आरक्षण के तहत प्रमोशन भी चाहिए।
मुझे लगता है कि आरक्षण सिस्टम ने इन्हें मानसिक तौर पर इतना पंगु बना दिया है कि अब इस समाज के अग्रणी/सम्पन्न लोग, अनेक लोग (क्रीमी लेयर में आने के बाद भी) खुलकर के सामान्य जनता की तरह साधारण वर्ग से कंपटीशन में आने से डरते हैं। जबकि वर्तमान स्थिति में देखा जाए तो सामान्य वर्ग से आने वाले बहुत से छात्र इतने गरीब हैं कि उन्हें अपना फीस भी भरना मुश्किल हो जाता है, परंतु उन्हें आरक्षण का लाभ न मिलने की वजह से उन्हें बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर यहां वहां किसी दुकानों पर या बड़े शहरों में भागकर मजदूरी कर जीवन यापन करना पड़ता है। इससे सामान्य वर्ग और आरक्षण प्राप्त वर्गों के बीच समाज में वैमनस्यता तथा असंतोष की भावना पैदा हो रही है। एक दृष्टिकोण यह भी है कि इस वजह से सामान्य वर्ग के छात्रों की योग्यता के अधिकारों का हनन हो रहा है। उनकी योग्यता का कोई मूल्य नहीं रह जाता है। क्योंकि जब कभी सामान्य वर्ग का छात्र यह देखता है की परीक्षा में अधिक अंक प्राप्त करने के बावजूद उसका एडमिशन विश्वविद्यालय में नहीं हो पाता है परंतु उससे बहुत कम अंक प्राप्त करने के बावजूद आरक्षित वर्ग से आने वाले उसी के मित्र का एडमिशन आराम से उस विश्वविद्यालय में हो जाता है, तो उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई देता है और वह खुद को गहरी निराशा में पाता है। और अध्ययन तथा पढ़ाई की ओर से उसका ध्यान धीरे-धीरे हटने लगता है। ऐसे अपेक्षाकृत योग्य छात्रों के शिक्षा से दूर होने पर देश और समाज का भी नुकसान होता है।
ऐसी परिस्थितियों में मुझे तो यही महसूस होता है कि निस्संदेह आरक्षण मिलना चाहिए, परंतु जो वास्तव में जरूरतमंद हो, केवल उसी को मिलना चाहिए। आरक्षण धर्म , जाति अथवा वर्ग के आधार पर नहीं मिलना चाहिए बल्कि गरीब को गरीबी के आधार पर आरक्षण मिलना चाहिए । कहने का तात्पर्य है कि अब आरक्षण आर्थिक आधार पर हो जाना चाहिए। इससे समाज के सभी वर्गों को न्याय मिलता हुआ दिखाई देगा।
यदि आज डा अम्बेडकर जी होते तो वे यही कहते क्रीमीलेयर को आरक्षण से सदा के लिए वंचित किया जाय? या आज आंदोलन जीवी लोग उनकी आज की प्रासंगिकता पर सवाल उठाते! डॉ आंबेडकर का आत्म विश्वास ,साहस इसीलिए आयो से अलग पंक्ति में उन्हें खड़ा कर भगवान के करीब लाकर खड़ा कर देता है.
इसे महात्मा आंबेडकर को उनके अतुलनीय,साहस mm शौर्य,पराक्रम और जिजीविषा के प्रति सादर नमन.
इस पर इस पर आपके विचार भी सादर आमंत्रित हैं, किंतु सम्मानजनक और मर्यादित शब्दों के साथ।