भटकती आत्माओं का संग्रह कांग्रेस,जस्टिस खोसला की आत्मा पुकार रही है

 राजेंद्र नाथ तिवारी

कांग्रेस! कांग्रेस!! कांग्रेस!!!का चिल्ल पो अब बंद होने के कगार पर है.उसके अंतर्विरोधों का मकड़ जाल इतना भयानक है कि यमराज का कथित नरक भी शरमा जाए.देश ही नहीं विदेश में भी देश की शाख को बट्टा लगाने का काम कांग्रेस् ही किया.चाहे देश विभाजन हो या गांधी हत्या या भारत चीन,पाक भारत युद्ध!याफ़िर ताशकंद समझौता ही.पर कांग्रेस का अहंकार हिमालय से भी बढ़ा है. वहां तो केवल दिल्लीश्वरो वा जगदीश्वरोवा का  मंतव्य चरितार्थ ही होता है गांधी की मृत्यु के बाद लाखों चिट्ठपावन ब्राह्मणों की हत्या का खून अब कांग्रेस और नेहरू,गांधी परिवार के से चढ़ कर बोल रहा है.चित्त पावन ब्राह्मणों के खून का पाप कथित गांधी_नेहरू परिवार की पार्टी पर से चढ़ कर बोल रहा है अभिशप्त कांग्रेस की आत्मा पापी शरीर से छुटकारा पाने को तड़प रही है.यमराज ने पूछा है नेहरू गांधी परिवार की पराजित आत्माओं से आखिर देश पर शासन की इकलौती इच्छा को पूरा करने हेतु तुम सबने अंत हीन हत्याओं का अनंत सीरीज क्यों ओर किसके स्वार्थ या दबाव में शुरू किया.


खोसला आयोग के अध्यक्ष जस्टिस खोसला ने नाथूराम गोडसे के मुकदमे की सुनवाई में गोडसे को अपनी बहस करने का अधिकार दिया था,ओर कहा गोडसे के वक्तव्य के बाद यदि निर्णय श्रोताओं को करना होता तो निसंदेह गोडसे को लोग मृत्यु दंड नहीं देते. मैं भरी मन से  ओर दबाव बस गोडसे को मृत्यु दंड दे रहा हूं. मैं देख सकता हूं इस अनैतिक फैसले पर यमराज  का न्याय मेरे लिए भयानक दंड की प्रतीक्षा कर रहा है .

आखिर कितनी आत्माओं की प्यासी है कांग्रेस? कौन ओर क्यों देगा हत्या प्रति हत्या,दुर्घटना प्रीति दुर्घटना का हिसाब कौन देगा.आयातित राज महिषी ? या कथित रूप से अधिकृत मजबूरी का अध्यक्ष खरगे?कांग्रेस ने ऐसा कौनसा  पाप है जिसने नहीं  किया. जीप घोटाला से लेकर बोफोर्स घोटाला,A to z घोटालों की शहंशाह कांग्रेस ने गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की सौवीं वर्षगांठ पर अधिवेशन का कर्मकांड तो किया पर खरगे की कुर्सी किनारे करके.कांग्रेस नेहरू परिवार से अलग किसी को सम्मान न देखती है और नहीं सोच सकती है.

 कांग्रेस का गुजरात अधिवेशन सम्पन्न हो गया। गुजरात में जनवरी,1961 के बाद, यानी 64 लंबे सालों के बाद कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ है. चूंकि महात्मा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष होने की 100वीं सालगिरह है और सरदार पटेल की 150वीं जयंती का वर्ष है, लिहाजा विरासत की जमीन पर दोबारा खड़े होने और उसके आधार पर राजनीति करना तय किया गया.सवाल है कि आज ही गांधी-पटेल सरीखे महानायकों के गढ़ की याद क्यों आई, जबकि लोकतंत्र, समाजवाद, समावेशिता, धर्मनिरपेक्षता आदि कांग्रेस के परंपरागत वैचारिक मूल्य आज धुंधले हैं। उनके जुमले ही सुनाई देते हैं। गुजरात 1995 से भाजपा का राजनीतिक गढ़ है. भाजपा लगातार 7 चुनाव जीत चुकी है। मौजूदा सदन में कांग्रेस के मात्र 12 विधायक हैं और गुजरात में भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति को ध्वस्त करने की हुंकार कांग्रेस ने भरी है. कांग्रेस के सामने प्रासंगिक और स्वीकार्य होने की बेहद गंभीर चुनौती है। अधिवेशन के उपसंहार में विचारधारा और राष्ट्रवाद पर डटे रहने का आह्वान निहित है, लेकिन पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दलितों, मुसलमानों के अलावा ओबीसी को भी कांग्रेस के साथ जोडऩे की बात कही है.ब्राह्मण लगभग भाजपा के पाले में जा चुके हैं दरअसल 1990 में मंडल आयोग की रपट पारित करने के बाद ओबीसी कांग्रेस का समर्थक-वर्ग रहा ही नहीं। पिछड़े और अति पिछड़े स्थानीय और क्षेत्रीय दलों के बीच बंट गए अथवा प्रधानमंत्री मोदी के राष्ट्रीय राजनीति के केंद्र-बिंदु बनने के बाद ओबीसी भाजपा की ओर धु्रवीकृत हो गए। कांग्रेस ओबीसी के बीच अपना जनाधार कैसे बनाएगी, अधिवेशन के बावजूद यह स्पष्ट नहीं हुआ. इंदिरा गांधी के दौर में जब कांग्रेस सत्तारूढ़ होती थी, तब भी दलित, मुसलमान, सवर्ण, आदिवासी कांग्रेस के जनाधार होते थे, लेकिन पिछड़े कम ही कांग्रेस के साथ थे. अब कांग्रेस का नए सिरे से पुनरोत्थान कैसे होगा और वह पहले की तरह स्वीकृत और स्थापित पार्टी कैसे बनेगी, इस पर दावे तो खूब किए गए हैं, नेताओं-कार्यकर्ताओं का जोशीला आह्वान भी किया गया है, लेकिन पार्टी के जिला अध्यक्षों को ताकतवर बनाने से ही यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सकता। राष्ट्रवाद आरएसएस-भाजपा का स्वीकार्य विचार है.

महात्मा गांधी का राष्ट्रवाद बिल्कुल ही अलग है.कमोवेश कांग्रेस ने गांधी के राष्ट्रवाद को नहीं अपनाया है। कांग्रेस का राष्ट्रवाद क्या जातीय जनगणना से ही तय होगा? जातीय जनगणना और संविधान का फर्जी नेरेटिव कांग्रेस, सपा और विपक्ष के एक तबके ने लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचारित किया था. खासकर दलितों में भ्रम फैलाया गया कि यदि भाजपा-एनडीए को 400 सीटें मिल गईं, तो सरकार संविधान को बदल सकती है। यदि संविधान के कुछ विशेष प्रावधान खत्म किए गए, तो आरक्षण भी समाप्त हो सकता है.केंद्र में भाजपा-एनडीए की सरकार है और संविधान-आरक्षण के साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया गया है, लिहाजा जो दलित कांग्रेस की ओर गए थे, अब लौट कर अपना नया नेतृत्व तलाश रहे हैं। दलित भाजपा की ओर भी लौट रहे हैं। कांग्रेस के सामने यह भी गंभीर चुनौती रहेगी.आज कांग्रेस की स्थिति यह है कि देश के 5 राज्यों की विधानसभाओं में उसका कोई भी विधायक नहीं है। 9 राज्यों की विधानसभाओं में 10 से भी कम विधायक हैं.

कांग्रेस के 3 ही मुख्यमंत्री हैं और तीन गठबंधन सरकारों में वह शामिल है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री चुने गए, तब भी कांग्रेस के 12 मुख्यमंत्री होते थे. गौरतलब यह है कि यह गांधी की कांग्रेस भी नहीं है। इंदिरा गांधी के दौर में 1966 में पार्टी दोफाड़ हो गई थी और इंदिरा ने अपने नाम से कांग्रेस बनाई थी.वही कांग्रेस आज हमारे सामने है और प्रधानमंत्री मोदी, सरदार पटेल की विरासत को भाजपा के पाले में ला चुके हैं. विरासत की लड़ाई में जनता क्या तय करती है और किसे ज्यादा प्रासंगिक पार्टी के तौर पर स्वीकार करती है, अब यह सबसे अहम यक्ष-प्रश्न है। कांग्रेस को अपने संगठन को चुस्त-दुरुस्त करना होगा और अहम मसलों पर सरकार को घेरने की ठोस रणनीति बनानी होगी.

व्यस्त अस्त कांग्रेस अभी एक दशक तक विरासत को भुनाएगी,उसके बाद राहुल के पहले ओर राहुल के बाद.

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