कौटिल्य शास्त्री
डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी फाउंडेशन
नेहरू ने वफ्फ बोर्ड को बनाया, ये इस प्रश्न का जवाब पाने के लिएआपको थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा , जो कहा गया उसकी बजाय जो करा गया, उसे गौर से देखे , समझे फिर कोई निर्णय ले।यह संयोग था या एक प्रयोग, कहना मुश्किल है मगर १९२१ में भारत को फिर से खलीफा के अधीन करने के लिए खिलाफत आंदोलन चलाया गया था और आश्चर्य इस आंदोलन को कांग्रेस ने भी समर्थन दिया था !! और शायद यही कारण था कि जब इस आंदोलन के दौरान मोपलाहा में दंगे हुए और हज़ारो हिन्दुओ का कत्लेआम हुआ , मगर इस हत्याकांड पर कांग्रेस चुप्पी साध गई।
इस हत्याकांड से कांग्रेस की भी किरकिरी हुई और इसी किरकिरी से कांग्रेस को ने यह सीखा कि सीधी लड़ाई की बजाय , सिद्धांतो की ओट लेकर छद्म युद्ध हमेशा बेहतर रहता है, सिध्दांतो के शोर में असल इरादे छुपाये जा सकते है।
सके बाद से कांग्रेस ने आदर्शवाद का, देश भक्ति और भाईचारे का ढोल बहुत पीटा मगर यह जानते हुए कि गज़वा-ए-हिन्द देश के लिए खतरनाक होगा , कांग्रेस मुस्लिम कटटरपंथियो की निंदा से परहेज करती रही। उनकी करतूतों को ढकने का प्रयास करती रही।आज भी भारतीय इतिहास में मोपलाहा दंगे, डायरेक्ट एक्शन डे और विभाजन के दंगो का जिक्र सिर्फ सरसरी तौर ही मिलता है जिसमे मुस्लिम लीग पर दोष मढ़ कर दंगाइयों का नाम और उनकी असली पहचान तक छुपाई जाती है।गाँधी जी का हिन्दुओ को अहिंसा , सहिष्णुता और भाईचारे का सन्देश मगर मुस्लिम हत्यारो , बलात्कारियो के प्रति नरमी भी समझ से परे थी।
फिर वरिष्ठ नेताओ की सलाह के बावजूद कि अंग्रेजो की बजाय , मुस्लिम लीग देश के लिए बड़ा खतरा है , ऐसे नाज़ुक समय में अपनी सारी ऊर्जा देश बचाने की बजाय, गाँधी का देश छोडो आंदोलन छेड़ना , समझ से परे था !!
इस आंदोलन में कांग्रेस के नेताओ की गिरफ़्तारी ने मुस्लिम लीग के लिए मैदान खुला छोड़ दिया और उनका यह प्रयोग के देश और हिन्दुओ के लिए घातक साबित हुआ।
१९४२ में कांग्रेस सैद्धांतिक रूप से विभाजन को स्वीकारना और गाँधी का विभाजन का विरोध, दोनों साथ साथ चलते रहे। १९४७ में कांग्रेस कार्यसमिति में विभाजन के पक्ष में भाषण देने के बाद भी , बाहर गाँधी जी का विभाजन मेरी लाश पर होगा, का राग जारी रहा !!
हिन्दुओ को आदर्शो की गठरी पकड़ाकर , आदर्शो के छद्मावरण में , हिन्दू बाहुल्य इलाको सहित , कांग्रेस ने १६% लोगो को २४% जमीन पाकिस्तान में रूप में दे दी।
पहले धार्मिक आधार पर विभाजन स्वीकार कर हिन्दुओ को इसके लिए राजी करना और फिर जब हिन्दुओ का गुस्सा ठंडा पड़ गया, तब नेहरू का यह कहना कि "यह सिर्फ जमीन का बंटवारा है", यही दर्शाता है कि यह सब हिन्दुओ के विरुद्ध एक साजिश का ही हिस्सा था।y
हिन्दू मंदिरो की जमीन सरकार के अधीन कर , मुस्लिम समाज के लिए वफ्फ बोर्ड कानून भी शायद सिद्धांतो की ओट लेकर गज़वा ए हिन्द की दिशा में उठाया गया एक कदम ही था।