सोने से भी महंगी कीड़ा जड़ी,25लाख रुपया किलों

 राजेंद्र नाथ तिवारी


मशरूम की कीड़ा जड़ी किस्म विश्व की सबसे महंगी मशरूम की किस्मों में से एक है.  कोई भी किसान चाहे तो सिर्फ एक छोटे से कमरे में मशरूम की इस किस्म की खेती सीमित संसाधन में शुरू कर सकता है.  हिमालय के दुर्गम इलाकों में एक नायाब जड़ी मिलती है, जिसको दुनिया की सबसे महंगी जड़ी बूटी माना जाता है. अनुभवी लोग इस जड़ीबूटी से लाखों रुपये कमा सकते है, इसके अलावा इससे कई स्वास्थ्य लाभ भी होते है. जिसको हिमालय वायाग्रा या यार्सागुम्बा के नाम से भी जाना जाता है. आमतौर पर लोग इससे कीड़ा जड़ी के नाम से जानते है. ये अपने कामोद्दीपक गुणों के कारण मशहूर है. बता दें कि हिमालय में बर्फ पिघलने पर नेपाल के सैकड़ों ग्रामीण इस जड़ी बूटी को इकट्ठा करने के लिए चोटी की ओर भागते है. वे लोग बहुत सावधानी से इसे साफ़ करके अपने पास रख लेते है. ऐसे में आइये आज हम आपको कीड़ा जड़ी की खेती कैसी होती है और इसके क्या-क्या फायदे है. 

मशरूम कीड़ा जड़ी क्या है

मशरूम की विभिन्न किस्में होती हैं. मशरूम की इस किस्म जिसे कीड़ा जड़ी कहते हैं एक प्रकार की विश्व की सबसे महंगी जड़ी में से एक है. सामान्य भाषा में इसे जंगली मशरूम भी कहा जा सकता है. यह खास किस्म के कीड़ों जैसे कि इल्लियों को मारकर पनपते हैं. इसलिए इसे आधा कीड़ा और आधी जड़ी कहते हैं. चीन और तिब्बत जैस देशों में इसका नाम अलग हैं वहां के स्थानीय लोग इसे यारशागुंबा कहते हैं. मशरूम की ऐसी किस्म की खेती की खास बात करें तो यह एक छोटे से कमरे में की जा सकती है.

कीड़ा जड़ी की खेती

कीड़ा जड़ी एक तरह की फफूंद है, ये जड़ी पहाड़ों के लगभग 3500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाई जाती है, जहां ट्रीलाइन ख़त्म हो जाती है, यानी जहां पेड़ उगने बंद हो जाते हैं. एक कीट का कीट का प्यूपा लगभग 5 साल पहले हिमालय और तिब्बत के पठारों में भूमिगत रहता है. अपने सूँडी बनने के दौरान,इस पर ओफियोकार्डिसिपिटैसियस वंश की फफूँदी द्वारा हमला किया जाता है, जो अपने जाल में लपेटकर इस कीड़े को मारता है. इसके बाद यह फफूँदी सूँडी के शरीर में प्रवेश करती है. यह सूँडी से ऊर्जा को चूसने और कीड़े के सिर के माध्यम से अपना रास्ता निकालता है. इसके बाद यह फफूँदी (मशरूम) सूँडी के माथे से निकलती है. इस तरह कीड़ा जड़ी प्राप्त होती है. यह एक विशेष प्रकार की जड़ी बूटी है, जिसकी खेती हर जगह पर नहीं उगती है. कहा जाता है कि इस जड़ी बूटी के लिए सबसे अच्छा मौसम जून से अगस्त होता है. वर्तमान में इसको नियंत्रित वातावरण में ग्रीन हाउस के अंदर विकसित किया जा रहा है.

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