कर्मचारी प्रसंसा दिवस पर विशेष, व्यंग
मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ।
आज कर्मचारी प्रसंसा दिवस है।
जज के पेशकार की जय जयकार, खुद की जान जोखिम में डाल कर साहब की सब्जी-भाजी के जुगाड़ के लिये हर पल नौकरी को दांव पर लगाते हैं। चूंकि आंखों में पट्टी वाली न्याय की कुर्सी के ठीक नीचे बैठ कर कठिन परिश्रम करते हैं इस लिये कर्तव्य पथ पर बेफिक्र होकर जूझते हैं।चूंकि न्याय की कुर्सी के तेज प्रकाश की चकाचौंध में हर किसी की आंख वहाँ पहुंचते ही चौंधिया जाती है, इस लिये कुर्सी के नीचे घनघोर अंधेरे में पेशकार जी न्याय की रक्षा के लिये, न्याय प्रहरियों से दो-चार होते हैं।अनुभव इतना कि उस घनघोर अंधेरे में यदि कोई न्याय प्रहरी द्रव्य के वजन और संख्या के संतुलन के सामंजस्य में हेराफेरी करने की कोशिश करने की कोशिश किया तो देखते ही टोक देते हैं, कि यह नहीं चलेगा, आप हर बार यही करते हैं, आगे से हम कुछ नहीं जानते। फिर क्या एक ही डोज में सब कुछ लाइन पर आ जाता है।सिंघासन के ठीक नीचे होने का परम सौभाग्य प्राप्त इन पहरेदारों को सीधे ऊपर वाले ने हंसते-हंसते वीरगति को प्राप्त होना नहीं लिखा।
दूसरे निहायत ही अपक्ष भाव से दिन-रात कर्तव्य पथ पर डंटे देश भर के पुलिस थानों के मुंशी की जय-जयकार न करूँ तो उनके साथ घोर अन्याय होगा। निरपेक्ष भाव से दिन रात जूझने वाला यह वर्ग सदैव थाने की लाठियों से संरक्षित रहता है। शायद इसी लिये प्रताड़ित हो या प्रताणक दोनों को समान दृष्टि से देखते हैं। किसी के साथ अन्याय न होने पाये इसका विशेष सिध्दि प्राप्त करके ही वह मुंशी पद प्राप्त करते हैं। चूक से भी हिसाब में कोई गड़बड़ी नहीं कर सकते। अब चाहे कोई पीड़ित हो या उत्पीड़क कोई निशुल्क सेवा की कुचेष्टा न करे।ऐसी खरतनाक जगहों पर बैठा कर कर्मयोगी अपनी निगरानी में सीसीटीवी कैमरा लगवा लिया है।इसके कारण कैमरे के सामने शिष्टाचार के अभिनय का अतिरिक्त शुल्क लगा कर हिसाब करता है।मजबूरी में कैमरे की जद में कई गयी विनम्रता से उपजे क्रोध की शांति का उपचार में ज्यादा मरहम (द्रव्य) लगता है।
तीसरा सरकारी अस्पतालों में बैठे भगवान के भाई डॉक्टरों और उनके सहयोगियों को कोई कैसे भूल सहता है।इस बात की गारंटी है कि उनके पास अस्वस्थता वाला ही जायेगा। तो चाहे शेर भी आ जाये वह निश्चिंत रहते हैं कि इसका नाखून अभी उखड़ा है। सेवा, दया, करुणा, प्रेम, संवेदना की हत्या करने के बाद जो तत्व तैयार होता है जब वह उनके रग-रग में समा जाता है तब उनको अस्पताल में उतारा जाता है।व्यवहारिक निर्दयता इतनी की इनके कृत्य से कसाई भी पानी-पानी हो जाय। बिना लागत के इस धंधे में इनके काउंटर पर उधार की कोई गुंजाइश ही नहीं। जीने भ्रम है तो चाहे जैसे आपको भुगतान करना ही पड़ेगा।कोई यह नहीं देखता कि उनकी समस्या भी बहुत बड़ी है। एक आदमी को ठीक करने के लिये यह कर्मयोग कितने लोगों को ठीक करते हैं। दवा लिख कर बीमार को ठीक करते हैं। फिर दवा कंपनी की बीमारी भी इन्हीं को ठीक करनी रहती है। प्रायः जिनको देव दुर्भभ भगवान के भाइयों को सरकारी सेवा में रहते अपना भी निजी सेवा केंद्र बनाने की हशरत रहती है उनको चुन-चुन कर दवा कंपनियों वाले अनुग्रहित करते हैं। इस कारण कई बार उन्हें स्वस्थ्य होने आये व्यक्ति को तो एक सप्ताह की जगह एक साल तक निचोड़ना पड़ता है।
चौथा यदि प्राथमिक शिक्षकों के परिश्रम की अनदेखी हुई तो उनके साथ बहुत नाइंसाफी होगी। किसी भी नियम के बनने के पहले उसकी काट का निर्माण करने के कारण ही इन्हें गुरु का पद प्राप्त है। अपनी जगह पर अपने बराबर किसी को भी सिद्ध कर देते हैं। तभी तो बहुत बड़ा वर्ग इनके बीच मे ऐसा है जो स्वयं राष्ट्र निर्माण में देश-दुनिया भटकता रहता है लेकिन अपना मूल कर्तव्य प्रभावित नहीं होने देता। मोटा तनखाह लेकर हाई स्कूल पास बेरोजगार को कुछ हजार में लगा कर शिक्षण कार्य को अबाध गति से संचालित करता रहता है। आश्चर्य तो तब होता है जब यह पता चलता है कि जो इनको चेक करने आया है वह भी पवार ऑफ एटर्नी लेकर जांच कर रहा है। फिर क्या पूरा सिस्टम गुरु जी के मुट्ठी में, कभी कोई खतरा उठा तो क्षेत्रीय ग्राम प्रधान से लेकर विधायक, सांसद सब गुरु महिमा के प्रभाव में एक स्वर से आवाज उठाते हैं।वैसे भी कहा जाता है कि जिसका कोई गुरु नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं।बिना गुरु का आशीर्वाद लिये समाज में कोई उतर नहीं सकता। तो प्राइमरी वाले आदि गुरूओं को सभी दंडवत करते हैं। क्योंकि सरकार भी उनसे पढ़ाई छोड़ कर अन्य सभी काम लेने का जोर देती है। जैसे जनगणना, मतदान या कोई भी असाध्य काम जो कहीं न हो रहा हो वह मास्टरों को सौंप देती है।फिर क्या मास्टर मतलब मास्टर!
पांचवा रेलवे वालों का अभिनंदन कोई कैसे भूल सकता है।टिकट आरक्षण को ही ले लीजिये, लाख कम्प्यूटराइज, हाईटेक होने के बाद भी दलालों की कोई तोड़ नहीं बन पायी। बताते हैं कि दिन-रात टिकट की कालाबाजारी करने वाले कर्मयोगी जनहित में अपना विभागीय पास वर्ड दलालों को उपलब्ध करा देते हैं।फिर क्या आप काउंटर पर कन्फर्म टिकट खोजते रहिये, बिना दलाल और दलालों के डॉन का शुल्क अदा किये कन्फर्म टिकट मिलना असंभव सा हो जाता है। रही सही कसर यमराज के भाई वाला ड्रेस पहन कोच में घूम रहे उड़न दस्ते निकाल लेते हैं। गाड़ी चली नहीं कि कंडेक्टर से लेकर टीटी तक काम का बोझ कम करने लिये अधिकांश सोम रस की घुट्टी लेकर तन मन का सेनेटाइजेशन करते हैं। जैसे आपकी टिकट में जरा सी खामी दिखी वैसे ही वह तीसरा नेत्र खोल लेते हैं। तुरन्त दहाड़ते हैं कि अभी उतरेंगे या आरपीएफ या जीआरपी पुलिस को बुलाऊँ, फिर क्या उनको और यात्री दोनों अपने हिसाब से सोचने लगते हैं कि यह क्या प्रभु एक से भले दो सुना था अमंगल दूर करने के लिये यहाँ तो अमंगल बढ़ाने के लिये एक से बढ़ कर एक आने वाले हैं। चुपचाप यात्री उनको मनाने के लिये अनुनय विनय आरम्भ करने लगता है। यदि यात्री के साथ बीबी और छोटे बच्चे भी हैं तो फिर क्या इनका कर्मयोग जलजला जाता है।कई बार यात्रियों को फेंकने की क्रूर घटनाओं का भी जिक्र मिला है, इस लिये हर कोई इनसे टकराने की हिम्मत नहीं करता।
छठवां सचिवालय कर्मचारियों की अस्तुति के बिना सब अधूरी रह जायेगी। यह गंगोत्री के पंडा हैं। गंगा को यहीं से जो पवित्र करने का श्रीगणेश यह करते हैं तो फिर गंगा सागर तक उसके गंदगी की गारंटी बन जाती हैं। अधिकतर यहां ऐसे ब्रिलियंट कर्मचारियों का जमावड़ा है जो संघ लोक सेवा का फार्म भर कर लौटे रहते हैं। आईएएस अधिकारियों की छांव में उन्हीं की हेकड़ी की नकल करने के कारण फाइलों को सचिवालय में दिखाने, पोटोस्टेट देने, फोटो खींचने, फाइल बाहर पहुंचाने, सबका अलग-अलग पारिश्रमिक फिक्स करते हैं।बिना पंजीकृत दलालों के यहाँ पत्ता भी हिलाना मुश्किल होता है। मूल दलाल अलग-अलग छद्म वेश में यहां घूमते मिलते हैं। आम आदमी को सचिवालय में घुसने के पास का भले लाला हो पर कर्मचारियों द्वारा पुष्प पल्लवित गिरोह के क्या कहने, सचिवालय के विभिन्न आयामों के पास को लेकर उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष ने भी चिंता प्रकट किया है। लेकिन फ्राडों का स्वरूप इतना विराट है इनको चुनौती देने वाला अभी तक अजन्मा ही है।यहां के कर्मयोगी अकल्पनीय पाप के सिद्धस्थ हैं।यह मानिये कि उनका हर हुनर गिनीज बुक के लिये ही बना है।
ऐसे सभी कर्मचारियों का भी आदर है जो अपने-अपने कार्यालयों में ईमानदारी के कारण अल्पसंख्यक हैं वह खुद की त्रिस्कृत न समझें। अपने जीवन में भी आपको अनुभूति होती होगी कि आपने क्या कमाया है। हर तरफ आपको हृदय से सम्मान मिले, ईमानदारी के हठयोग पर यही आपकी अक्षय ऊर्जा है। कर्मचारी प्रसंसा दिवस पर जिन लोगों तक मैं अकिंचन नहीं पहुंच पाया वह माफ करने की दया करें। बताना चाहता हूं कि आज का दिन केवल और केवल आपकी प्रसंसा पर गंवा दिया हूँ। कोई मन न छोटा करे, भविष्य में उनकी अस्तुति का अवसर मिलेगा तो अवश्य करूंगा। फिर भी आज मैं यही कहूंगा कि आज कर्मचारी प्रसंसा दिवस पर इनको प्रभु वह सब शक्ति प्रदान करें जिससे यह बिना किसी कोर-कसर के समाज ने अपने कार्य को आगे बढ़ाने में निर्विघ्न सेवा देते रहें।