अगर छोटे ने 50 लाख में फाइल बेची, तो बड़े साहब ने पैसा वापस करवाया !
- 48 वादी और प्रतिवादी से न्याय देने के बदले लिए गए लगभग 50 लाख लिए गए
प्रतीकात्मक इमेज
बस्ती। भ्रष्टाचार की चरम परिणति .ट्रांसफर के बाद भी वापस आकर पच्चास लाख वापस करना और कराना बड़ा काम.
अब तो अपर आयुक्त रैंक के अधिकारी भी न्याय बेचने लगे। प्रदेश में पहली बार खुले आम न्याय बिकने का मामला सामने आया। खास बात यह हैं, कि छोटे साहब ने वादी और प्रतिवादी दोनों से न्याय बेचने के नाम पर पैसा लिया। लगभग 48 क्लांइटों से लगभग 50 लाख की वसूली हुई। यह वसूली बुला-बुलाकर आफिस के चेंबर और आवास पर की गई। किसी से दो लाख तो किसी से एक से डेढ़ लाख लिया गया। इसी बीच किसी ने सीएम से छोटे साहब की शिकायत कर दी, आनन-फानन में इन्हें बदायूं जाने का फरमान आ गया। यह बदायूं गए भी, वहां मीटिगं भी लिया, फिर यह वापस बस्ती आ गए, ताकि जिनसे पैसा लिया, उनकी पत्रावलियों का निस्तारण करके आर्डर पारित किया जा सके। तभी इसकी जानकारी बड़े साहब को हो गई, बड़े साहब ने त्वरित नवागत छोटे साहब को तलब किया, और उनसे पत्रावली को आवास से वापस वापस मंगाने का फरमान सुनाया। छोटे साहब की मौजूदगी में उनके आवास से पत्रावली वापस लाई गई, लेकिन जैसे ही क्लांइटों को इस बात का पता चला, तो उन लोगों ने छोटे साहब के आवास को घेर लिया, और पैसा वापसी की मांग करने
•-किसी से दो लाख तो किसी से पौने दो लाख लिए, पैसे चैंबर आवास पर लिए गए
•-जैसे ही इसकी जानकारी बड़े साहब को हुई वैसे ही उन्होंने नवागत छोटे साहब से सारी पत्रवाली घर से वापस मंगा लिया
●-इसकी जानकारी पैसा देने वाले वादी और प्रतिवादी को जब हुई, तो उन लोगों ने छोटे साहब घर का घेर लिया, बाहर नारेबाजी करने लगे
•-विवाद बढ़ता देख छोटे साहब से सभी का पैसा वापस कर दिया, और उसके बाद बेआबरु होकर जिले से बदांयू चले गए
●-इन्होंने रिटायरमेंट होने से पहले न्याय बेचकर मालामाल होने की पूरी योजना बनाई, लेकिन बड़े साहब ने इनके मंशुवे
●-इस छोटे साहब की शिकायत सीएम तक पहुंची, इसके बाद आनन-फानन में इनका तबादला बदायूं हुआ
मामला बिगड़ते देख छोटे साहब ने दो चरणों में सभी का लगभग 50 लाख वापस कर दिया। फिर चुपके से मुंह छिपाकर बेआबरु होकर निकल पड़े। जिनके पैसे वापस हुए उन लोगों ने बड़े साहब को धन्यवाद देते हुए कहा कि बड़े साहब के चलते ही उन लोगों का पैसा वापस मिल गया, और न्याय बिकने से बच गया। पैसा 12 मार्च की रात आठ बजे तक वापस किया गया। इस बात का खुलासा कभी
नहीं होता अगर क्लांइट पैसे के लिए होहल्ला ना मचाते।
इन लोगों का कहना है, कि अगर छोटे साहब ने न्याय बेचने का प्रयास किया तो बड़े साहब ने उनके मंशुबे पर पानी फेर दिया। वैसे भी इस मामले में कोई साहब कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। अंदरखाने की खबर है, कि इसे लेकर सीएम इतना नाराज हैं, कि कहीं छोटे साहब बर्खास्त ना कर दिए जाए। हालांकि इस मामले में
सिर्फ छोटे साहब को दोषी मानना उचित नहीं हैं, वादी और प्रतिवादी भी उतना ही दोषी हैं, जितना छोटे साहव। न्याय बिकने/खरीदने का सिलसिला तब शुरु होता है, जब क्लाइंट को यह लगने लगता है, कि बिना चढ़ावा चढ्ढ़ाए साहब निस्तारण करने वाले नहीं है। छोटे साहब के मामले में भी यही हुआ, क्लांइटों के अनुसार छोटे साहब जानबूझकर मामले को लटकाए रखते थे, ताकि क्लांइट आए और वह उनसे सौदा कर सके। अमूमन यह अधिकतर चकबंदी विभाग में देखा जाता है, जहां पर दोनों पक्षों से बोली लगाई जाती है, जो पक्ष जितना अधिक बोली लगाता है, उसी के पक्ष में फैसला हो जाता है, भले ही न्याया संगत ना हो। जिस तरह मनमाफिक आर्डर कराने के लिए न्याय बेचने का खुलासा हुआ, उसने पूरी व्यवस्था को झकझोरकर रख दिया। कहना गलत नहीं होगा, कि चकबंदी की तरह राजस्व में भी न्याय बिकने की परम्परा शुरु हो गई है। अगर, इसे नहीं रोका गया तो बाजार लगाकर न्याय बेचा जाने लगेगा। न्याय की इस खरीद फरोख्त के मामले में सबसे अधिक नुकसान आर्थिक रुप से कमजोर क्लांइटों का ही होता है। आर्थिक रुप से मजबूत वाला तो न्याय को एक बाजारु साम्मान की तरह समझता है, जिसे जब चाहे उसे वह
किसी भी कीमत पर खरीद सकता है। ठीक यही जिले में भी हुआ। क्लांइटों का कहना है, कि जब से छोटे साहब जिले में आए हैं, तब से इनके स्तर से पत्रावलियों को जानबूझकर लटकाए रखा गया, ताकि परेशान होकर क्लांइट सौदेबाजी के रास्ते में चलने लगे। आज कल जब से पत्रावलियों को लटकाए रखने की परम्परा शुरु हुई, तभी से न्याय बिकने लगा। अनेक राजस्व के अधिवक्ताओं का भी यह मानना है, कि क्लाइंट मजबूर होकर शार्ट कट अपनाना चाहता है, ताकि उसे कोर्ट कचहरी के तारीखों से छुटकारा मिल सके। डीपीआरओ कार्यालय में भी पत्रावलियां खुले आम बेची जा रही हैं, अगर किसी को पत्रावली दबवानी है, तो उसका रेट अलग होता हैं, और अगर किसी को कोई पत्रावली गायब करवानी है, तो उसका सबसे अधिक रेट होता है। कहने का मतलब हर जगह पत्रावलियों का खेल हो रहा है, और यह सबकुछ ईमानदार कहे जाने वाले अधिकारियों की मौजूदगी में में हो रहा। दुल्हा बिकता है, तो अनेक बार सुना गया, लेकिन न्याय और पखवलियों को बिकते हुए पहली बार सुना जा रहा है, वह भी ईमानदार कहे जाने वाले सीएम के राज में।
कौटिल्यशास्त्री