राजेंद्र नाथ तिवारी
जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में फंस गया तो वह रथ से उतरकर उसे ठीक करने लगा। वह उस समय बिना हथियार के थे... भगवान कृष्ण ने तुरंत अर्जुन को बाण से कर्ण को मारने का आदेश दिया।आज का कर्ण धर्म के साथ है,कल का कर्ण अधर्म में साथ था. पर अच्छा था .कर्ण ने कृष्ण को आग्रह किया अब बस भी करो कृष्ण.परंतु कृष्ण को कलियुग की राजनीति को सार्क करना था,उनका निर्देश पाते ही अर्जुन ने अपना काम तमाम कर दिया.
अर्जुन ने भगवान के आदेश को मान कर कर्ण को निशाना बनाया और एक के बाद एक बाण चलाए। जो कर्ण को बुरी तरह चुभता हुआ निकल गया और कर्ण जमीन पर गिर पड़े।
कर्ण, जो अपनी मृत्यु से पहले जमीन पर गिर गया था, उसने भगवान कृष्ण से पूछा, "क्या यह तुम हो, भगवान? क्या आप दयालु हैं? क्या यह आपका न्यायसंगत निर्णय है! एक बिना हथियार के व्यक्ति को मारने का आदेश?
सच्चिदानंदमय भगवान श्रीकृष्ण मुस्कुराए और उत्तर दिया, "अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी चक्रव्यूह में निहत्था हो गया था, जब उन सभी ने मिलकर उसे बेरहमी से मार डाला था, आप भी उसमें थे। तब कर्ण तुम्हारा ज्ञान कहाँ था? यह कर्मों का प्रतिफल है. यह मेरा न्याय है।"
आज कौरव पक्ष द्वारा प्रनीत न्याय व्यवस्था ने वही स्थान लेलिया है.अब देखना हे आज का कृष्ण साथ किसका देता है ,दुर्वोधनो का या अर्जुन का.
सोच समझकर काम करें। अगर आज आप किसी को चोट पहुँचाते हैं, उनका तिरस्कार करते हैं, किसी की कमजोरी का फायदा उठाते हैं। भविष्य में वही कर्म आपकी प्रतीक्षा कर रहा होगा और शायद वह स्वयं आपको प्रतिफल देगा।