होली पर अपने मन के हिरण्यकश्यप को मारिये ताकि मन का प्रह्लाद जिंदा रहे.

 

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राजेंद्र नाथ तिवारी 
हिरण्यकश्यप और प्रहलाद दो नहीं हैं,, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटनेवाली दो घटनाएं हैं।सकारात्मक और नकारात्मक द्वंद्व ही प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी है.यद्यपि कहानी का प्रतीक पौराणिक है पर पुराण कथ्य नहीं तथ्य है. भारतीय मनीषा उसी का मानसिक और बौद्धिक बिम्बन है.आज का युग नीरा राजनीतिक है और राजनीति ही आज का धर्म है,धर्म वही जो धारण किया जाए,हमने पूर्णतया मन, वचन कर्म से राजनीति को आज का युग धर्म मान लिया लिया है.सफलता असफलता का जो द्वंद है वही हिरण्यकश्यप है प्रहलाद रूपी मन को उसने आक्रांत कर कारकरखा है.इसीलिए हमेशा हिरण्यकश्यप प्रहलाद रूपी मन पर हावी रहता है और जो चाहता है वही करता भी है हिरण्यकश्यप.
पुराण सत्य है इसीलिए आज तक अर्वाचीन व जीवंत भी. हमारे मन का द्वंद्व ही जो चाहता है करता है पर वह सत्य नहीं, अंतिम सत्य तो प्रहलाद का जिंदा रहना है.आज का हिरण्यकश्यप यह संदेश देने में सफल होगया है कि अपनी सफलता के लिए सगी बहन की भी बलि देनी पड़े दी जा सकती है.आज हिरण्यकश्यप वही कर भी रहा है.
राजनीति को धर्म और प्रहलाद  तथा हिरण्यकश्यप को प्रमेय , निर्मय  कहना अतिशयोक्ति नहीं.होली प्रतीक है परस्पर मालिन्य मिटाने का,होली का संदेश है जीवन का श्रृंगार आगत वसंत में जीवन के विविध रंगों से करें नकी एक दूजे की स्पर्धा से मानसिक और आर्थिकी क *हिरण्यकश्यप और प्रहलाद दो नहीं हैं,, प्रत्येक व्यक्ति के भीतर घटनेवाली दो घटनाएं हैं।* मैं कहता हूं, पुराण तथ्य नहीं है, सत्य है। तुम अगर यह सिद्ध करने निकल जाओ कि आग जला न पाई प्रहलाद को . प्रह्लाद तो जीवंतता और अमृतमा का प्रतीक है. आखिर प्रहलाद मारता कहां है?
 #नजायते म्रियते वा कदाचित

यह कहानी हमें सिखाती है कि अगर हमारे मन में विश्वास है, तो संसार की हर चीज़ में हमें भगवान दिखेंगे।

बहुत पहले की बात है, राक्षसों का एक राजा था, हिरण्यकश्यप। हिरण्यकश्यप ने कड़ी तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान पाया था कि ना ही कोई इंसान उसे मार सके ना कोई जानवर, किसी भी हथियार से उसकी मृत्यु ना हो, ना वो दिन में मरे ना रात में, ना धरती पर ना आकाश में, ना घर के अंदर ना घर के बाहर। 
आज राजनीति में भी हिरण्यकशपों का सिक्का चला है,इसीलिए प्रहलाद परीक्षा सूची में पड़ा है.
 


इस कहानी से हमें दो सीख मिलती है। 

1. अगर हमारे मन में विश्वास है, तो संसार की हर चीज़ में हमें भगवान दिखेंगे। 

2. हमारे सामने चाहे कितनी भी मुश्किल आए, हमें भी प्रह्लाद की तरह हमेशा सच और सही का साथ देना चाहिए।अपने भाई हिरण्याक्ष की तरह हिरण्यकशिपु भी आदर्शों के विरुद्ध पैसे का दुरुपयोग करने वाला एक शक्तिशाली व्यक्ती था । वह कहता था कि ईश्वर मैं ही हूँ । जो मेरा मन करे वहीं मेरा सर्वोत्तम आदर्श । इस प्रकार अहंकार से ग्रस्त हो कर अपने स्वार्थों के लिए वह असुर बन गया था । ईश्वर और प्रकृति के नियम उसके लिए मह्त्व नहिं रखते थे । जिनका वह बार बार उलंघन कर्ता और सभी को बताता कि ईश्वर वहीं है । और आज के शक्तिशाली लोगों की तरह कहता कि जो वह करे वही धर्म है । वहीं नियम है । लोगों को हमें ही भगवान मानना चाहिए । जैसे आज दुनिया में धन कमा ने और धन संग्रह करने के लिए लोग स्वयं को ईश्वर का अवतार बताने वाले हजारों लोग पैदा हो गए हैं ।

आज के शक्तिशाली राष्ट्र तो यह भी नहिं कहते की वे भगवान हैं। पर करते हिरण्यकशिपु जैसे ही आचरण हैं । अपने अहंकार के लिए दूसरों को परेशान करते, और सारी दुनिया का धन कमाने कर अपने पास रखना चाहते हैं । वे जानते हैं कि धन का भंडार जमा हो जाने से लोग उनसे डरेंगे ।

ऐसा था हिरण्यकशिपु । वह तो ब्रह्मा जी से वरदान ले रखा था । ऐसी ऐसी शर्तों लगा रखी थीं कि उसे कोई मार न सके ।

उसका पुत्र भगवान का भक्त और बहुत समझदार संस्कारी बालक था । हिरण्यकशिपु ने उसे बहुत समझाया कि वह उन्हें भगवान माने । पर इसके लिए तैयार न हुआ । उसे bahane se मारने के प्रयत्न किए गए । उसने बहन होलिका की गोदी में बैठा कर मार देने की योजना बनाई । होलिका को वरदान मिला था कि वह आग से न जलेगी । पर जब वह प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठी तो होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया । इसी आधार पर होली जलाई जाती है ।

अंत में वह प्रह्लाद को मारने के लिए खुद तलवार लेकर बैठा । और उसे खंभे में बाँध कर कहा । कहां है तेरा भगवान । जो तुझे बचाने आए । प्रह्लाद ने कहा वे तो सभी जगह हैं । हममे तुममे और इस खंभे में भी हैं। खंभा टूटा और उसी से भगवान प्रकट हुए । और उसे वरदान में न मरने की जितनी शर्तें थीं । सब टूट गईं ।

शर्तें थीं कि न वह दिन में मारेगा न रात में । न घर में मरेगा न बाहर । न जानवर मारेगा न मनुष्य । न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से । न जमीन पर मरेगा न आकाश में ।

जब भगवान ने उसे मारा तो वे न मनुष्य थे न पूरे जानवर थे । घर और बाहर के बीच दरवाजे के पास मारा गया और न रात थी न दिन था । भगवान नरसिंह के रूप में प्रकट हुए । और अपनी जांघों पर पटक कर नाखूनों से उसका पेट फाड़ दिया । वह मार गया ।

षिक्षा: इस प्रकृति के नियम ही सर्वोपरि हैं । कोई कितनी भी चतुराई करे । और कहे कि कोई मेरा बल बांका नहीं कर सकता। मैंने तमाम वैज्ञानिक खोजे करके इतने अस्त्र शस्त्र और सुरक्षा उपकरण बना रखे हैं । पर जो ईश्वर के बनाए नियमों का उल्लंघन कर्ता और अहंकार वंश मनमानी कर्ता है और जानता है कि कोई उसका कुछ नहिं बिगाड़ सकता। तो उसकी चतुराई काम नहिं आती । अनाचार अत्याचार करने वाला तभी तक विजयी होता है जब तक उसके अन्याय का विरोध करने वाला । जैसे ही प्रह्लाद के समान कोई पुरुष अन्याय के प्रतिकार करने के लिए उठ खड़ा होता है । तानाशाह का अंत हो जाता है ।

जो गलत आचरण करते है । वे ही उससे हारते और मरे जाने हें । एक सच्चा ईमानदार और प्रकृति तथा समाज के अनुशासन में चलने वाला । धर्म निष्ठ की परिक्षा तो होती है । पर ईश्वर उसकी सहायता हर बार करते है । अंत में बुराई का अन्त तो निश्चित है । कोई बाहरी शक्ति उसकी सहायता नहिं कर पाती ।

इसलिए उदार बनें । अपने को श्रेष्ठ आचरण करें । वासना तृष्णा और अहंकार जनित तमाम बुराइयों से अपने को बचा कर रखें ।  अच्छा होगा कि अपना अहंकार पीकर नीलकंठ  बने सबके लिए श्रेयस्कर कर  ही होगा.

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