नई दिल्ली
अरविंद केजरीवाल जहां भी जाते थे तो दो उपलब्धियां जरूर गिनाते थे. पहला, उन्होंने बिजली-पानी मुफ्त कर दिया है और दूसरा, दिल्ली के सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां प्राइवेट स्कूलों से बच्चे एडमिशन लेने के लिए आ रहे हैं.
लेकिन दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनते ही सीएम रेखा गुप्ता आम आदमी पार्टी के उपलब्धियों की पोल खोलने में जुट गई हैं. सूत्रों के मुताबिक-पता तो यहां तक चला है कि टॉयलेट को क्लासरूम में गिना जाता था. क्लासरूम बनाने पर तय कीमत से दोगुना खर्च कर दिया गया.
दिल्ली की सीएम आम आदमी पार्टी के ब्रेन चाइल्ड पर हमले कर रही हैं. यानी केजरीवाल के शिक्षा मॉडल पर… गुरुवार को वह खुद दिल्ली के एजुकेशन मॉडल का रियलिटी चेक करने पहुंच गईं. सीएम सुबह अचानक शालीमार बाग के सरकारी स्कूल पहुंच गईं. एक सीएम के तौर पर स्कूलों का अचौक निरीक्षण तो समझ में आता है…लेकिन सीएम यहीं नहीं रुकीं… वो स्कूल के टॉयलेट और बाथरूम को चेक करने पहुंच गईं. इस दौरान स्कूल में गंदगी और बेहाली देखकर उन्होंने अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई. लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि शिक्षा मॉडल को लेकर BJP सरकार का ये एक्शन असल में सिर्फ ट्रेलर है. BJP सरकार के पास शिक्षा विभाग में निर्माण को दौरान हुई धांधली का पूरा लेखा-जोखा है. हमारे हाथ जो दस्तावेज और आंकड़े लगे हैं उन्होंने हमें हैरान कर दिया.
किस तरह की गड़बड़ियों का दावा
सूत्रों के मुताबिक, अप्रैल 2015 में केजरीवाल ने PWD विभाग को 193 स्कूलों में 2405 क्लासरूम के निर्माण का निर्देश दिया था लेकिन इस निर्माण में जो लागत आई वो तय कीमत से 90 प्रतिशत ज्यादा थी.
सूत्रों का ये भी कहना है कि केंद्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि शौचालयों को क्लास रूम के नाम पर गिना गया. बिना कोई टेंडर प्रक्रिया के एक्स्ट्रा काम करवाया गया. 160 शौचालयों की जगह 1214 शौचालय बनाए गए जबकि क्लास रूम का निर्माण तय आंकड़ों से कम हुआ.
सूत्र ये भी बता रहे हैं कि इसी वजह से रिपोर्ट को आम आदमी पार्टी की सरकार ने ढाई साल तक सामने नहीं आने दिया. जब उपराज्यपाल ने रिपोर्ट पेश करने को कहा, तब मामला सामने आया.दिल्ली के शिक्षा मॉडल पर और भी सवाल
दिल्ली के सरकारी स्कूल छात्र-शिक्षक रेशियो के मामले में देश में सबसे पीछे है. देश भर के प्राइमरी सरकारी स्कूलों में औसतन 28 छात्रों पर एक शिक्षक हैं, जबकि दिल्ली में 40 छात्रों पर एक शिक्षक हैं. क्लास 6TH से 12TH का हाल भी बेहाल ही है. 6TH से 8TH जिसे अपर प्राइमरी कहा जाता है… इन क्लासेज में देशभर के सरकारी स्कूलों में औसतन 24 छात्रों पर एक शिक्षक हैं…जबकि दिल्ली में 39 छात्रों पर एक शिक्षक हैं. इसी तरह एलिमेंटरी और सेकेंडरी क्लासेज में भी राष्ट्रीय औसत के मुकाबले दिल्ली में शिक्षकों की संख्या बेहद कम है. ये आंकड़े 2022 तक के हैं.
स्कूल भी कम हो गए
दिल्ली में सिर्फ शिक्षक ही कम नहीं हैं. स्कूल की संख्या भी कम हो गई है. इकोनॉमिक सर्वे 2014-15 और इकोनॉमिक सर्वे 2023-24 के आंकड़ों को अगर ध्यान से देखें तो 2014-15 में दिल्ली में 5798 स्कूल थे, जबकि 2023-24 में करीब 310 स्कूल कम हो गए. और स्कूलों की संख्या 5488 तक पहुंच गई. यानी कुल मिलाकर स्कूलों के निर्माण के धांधली का आरोप है. शिक्षकों की संख्या राष्ट्रीय औसत से भी कम है. स्कूलों की संख्या कम हो गई है.