लखनऊ, उत्तरप्रदेश
विलंबित न्याय का मतलब है, कानूनी उपाय या न्यायसंगत राहत मिलने में देरी होना. कानूनी कहावत है, "न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के समान है". इसका मतलब है कि अगर किसी को कानूनी समाधान मिलने में देरी होती है, तो यह प्रभावी रूप से कोई उपाय न होने के बराबर है.
विलंबित न्याय का मतलब है, कानूनी उपाय या न्यायसंगत राहत मिलने में देरी होना. कानूनी कहावत है, "न्याय में देरी, न्याय से वंचित करने के समान है". इसका मतलब है कि अगर किसी को कानूनी समाधान मिलने में देरी होती है, तो यह प्रभावी रूप से कोई उपाय न होने के बराबर है.
उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित दिहुली सामूहिक नरसंहार मामले में अदालत अदालत ने 44 साल बाद फैसला सुना दिया है. इस नरसंहार मामले में अदालत ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई है. इस हिंसा में 24 दलित समुदाय के लोगों की हत्या कर दी गई थी. अब अदालत ने 24 लोगों की हत्याकांड के तीनों आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई है और 50-50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. साल 1982 में डकैतों के गिरोह ने दलितों के गांव पर हमला बोल दिया था और अंधाधुंध गोलियां बरसाकर 24 लोगों की हत्या कर दी थी. जिसमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थीं.
अपर सत्र न्यायाधीश इंदिरा सिंह ने मंगलवार को दोपहर साढ़े तीन बजे फांसी की सजा सुनाई. तीनों ही आरोपियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है. फैसला आने के बाद तीनों ही आरोपियों को पुलिस अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया. न्यायाधीश ने अपने आदेश में लिखा है कि हत्यारों को गर्दन में फांसी लगाकर तब तक लटकाया जब तक कि इनकी मृत्यु न हो जाए. तीनों दोषियों की उम्र 75 से 80 साल है. इस हत्याकांड में कुल 20 हत्यारोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी. जिसमें से 13 आरोपियों की मौत हो चुकी है और फरार चल रहे चार आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कोर्ट ने स्थाई वारंट जारी कर रखे हैं. मामले की पैरवी एडीजीसी रोहित शुक्ला द्वारा की गई.
बता दें कि दिहुली में जब 44 साल पहले नरसंहार हुआ तब प्रदेश की सरकार हिल गई थी उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृहमंत्री बीपी सिंह, मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेई भी पीडितों का दर्द बांटने देहुली पहुंचे थे. फिरोजाबाद जनपद क्षेत्र के थाना जसराना क्षेत्र का गांव दिहुली मे जव 18 नवंबर 1981 को संतोष सिंह उर्फ संतोषा और राधेश्याम उर्फ राधे के गिरोह के द्वारा दलित समाज के लोगों के ऊपर हमला कर सामूहिक नरसंहार के जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया गया था.
उसे समय वह क्षेत्र मैनपुरी का हिस्सा हुआ करता था. मामले में मुख्य चश्मदीद गवाह बनवारी लाल ने बताया कि उनके पिता ज्वाला प्रसाद की सबसे पहले खेत में आलू की खुदाई करते समय गोलियों से भून कर हत्या की गई थी. उसके साथ उनके बड़े भाई मनीष कुमार और भूरे सिंह और चचेरे भाई मुकेश की हत्या हुई थी. वह काफी दबाव के बाद भी अंतिम समय तक अपनी गवाही पर कायम रहे. उन्हें इस बात का संतोष है कि देर से सही लेकिन उन्हें इंसाफ मिला है. आरोपियों को फांसी मिलनी चाहिए.
कौटिल्यश्री