शब्द की मर्यादा से परे का आचरण करते नेता और शंकराचार्य अभिमुक्तेश्वरानंद


कुछ दशक से भारतीय राजनीति  और धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में वैचारिकी मर्यादाएं तार .,तार होती हैं. मर्यादाविहीन शब्दों का प्रयोग अब राजनीतिक, धार्मिक परंपरा बनती जा रही है। जाति और धर्म पर भी विवादित बयान दिए जाते है। हिन्दू धर्म को कलंकित करने का बयान तो हमेशा ही केंद्र में रहता है। अपनी राजनीति चमकाने में लगे माननीयों का महिलाओं पर भी अभद्र टिप्पणियों आम है। ये मर्यादाविहीन टिप्पनियों का जनसमूह पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है, इन राजनेता को चिंता नहीं है। अभी सोनिया गाँधी का विवेक शून्य बयान #पूअरलेडी, अभिमुक्तेश्वरानंद का योगी मोदी और कुंभ पर नकारात्मक टिपड़िया अहम माने रखती हैं.और लोग है जिन्हें बयान वीर कहा जासकता है, जैसे राहुल,केजरीवाल,अखिलेश यादव, ममता बनर्जी  के अमर्यादित बयान माने रखती हे

श्री लालू यादव के राजनीति में आने के बाद अन्य नेताओं ने भी अपमानजनक और असंसदीय शब्दों का जमकर प्रयोग किया।

जनसभा से होते-होते यह बयानबाजी पार्लियामेंट और विधानसभाओं  ओर महाकुंभ तक पहुंच गई है। विवाद गहराने पर भले हीं कार्रवाई से निकाल दिए जाते है अथवा क्षमा मांग लेते हैं। गाली के अलावा, जातिगत, धार्मिक और क्षेत्रीयता की भावना को ठेस पहुंचाने वाले अपमानजनक शब्दों का चयन खुलकर हो रहा है। राजनीति में इस तरह की भाषा को स्थापित किया जाना बेहद चिंताजनक है।

जनवरी 2017 में ही विनय कटियार को टिकुली और सिंदूर से रंग देने की बात कही। उन्होंने 26 मार्च 2017 को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा मुख्यमंत्री आवास को गंगा जल से धुलवाने पर उन्हें पिछड़ों और मुस्लिमों का विरोधी बताया। भाजपा सांसद हेमा मालिनी पर भी लालू यादव ने विवादित बयान दिए थे। 'युवक' तो उनके मुंह पर ही रहता है। पत्रकारों के साथ भी लालू यादव का पहीं रवैया था। जून 2017 में उन्होंने पत्रकारों द्वारा प्रश्न पूछे जाने पर जवाब में 'दे देंगे दु मुक्का, नाय के गिर जाओगे' जैसे शब्दों का प्रयोग किया।

इन राजनेताओं के अमर्यादित भाषणों का शिकार महिलाओं को भी होना पड़ता है। 'यात्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमते तत्र देवता' वाले इस देश में नारियों के प्रति ऐसी अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले ये नेतागण महिलाओं को

कुछ दशक से भारतीय राजनीति में मर्यादाविहीन शब्दों का प्रयोग अब राजनीतिक परंपरा बनती जा रही है। जाति और धर्म पर भी विवादित बयान दिए जाते है। हिन्दू धर्म को कलंकित करने का बयान तो हमेशा ही केंद्र में रहता है। अपनी राजनीति चमकाने में लगे माननीयों का महिलाओं पर भी अभद्र टिप्पणियाँ आम है।

सम्मान और अधिकार कैसे दिलाएंगे? उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने सन् 2014 में एक युवक पर लगे बलात्कार के आरोप पर कहा था कि लड़कों से गलती हो जाती है। इसके लिए उन्हें फांसी पर नहीं लटकाया जा सकता है। जुलाई 2013 में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश की एक रैली में मंदसौर की महिला सांसद मीनाक्षी नटराजन को सी टका टंय माल कह दिया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने कैबिनेट मंत्री इमरती देवी को 'आइटम' कह दिया। महिलाओं पर ऐसी अनेक अभद्र टिप्पणियाँ इन नेतागणों द्वारा कथित महिला सुरक्षा और सम्मान की धज्जियाँ उड़ा देती हैं। राजनेताओं की इन खराब और विवादित बोलियों को इनके उत्तराधिकारी भी स्वीकार कर ऐसे ही अपशब्दों का प्रयोग आए दिनों किया

करते हैं। ऐसे विवादित बयान इन नेताओं की

वास्तविकता को प्रदर्शित करते हैं। कहा जाता है कि, 'अगर किसी के बारे में जानना है तो उसे आप बोलने दें।' व्यक्ति की भाषा उसके व्यक्तित्व की परिचायक होती है। जिन्हें बोली की मर्यादा न हो वी शासन व्यवस्था चलाने के योग्य कैसे हैं?

देश में ऐसे-ऐसे नेता भी हुए, जिन्होंने अपनी भाषाई गरिमा हमेशा बनाई रखी, जिसके कारण जनता ने उन्हें सर-आंखों पर बिताया। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने 1974 में राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाया, किंतु वे कभी उत्तेजित नहीं हुए। वे बहुत हीं सामान्य और संजीदा ढंग से अपनी बात रखते थे। इसी कारण आंदोलन एक व्यापक परिणामकारी आंदोलन बन गया। पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी भी अपने विपक्षियों का विरोध शालीनता के साथ किया करते थे। उनका हाजिर जवाबी अंदाज सर्वविदित है। अपने इन्हीं अंदाज के साथ वे विपक्षियों को निरुसर कर देते थे। श्री राममनोहर लोहिया, श्री जार्ज फर्नाडिस, श्री लालकृष्ण आडवाणी ऐसे राजनेता हुए, जिन्होंने अपने संयमित भाषणों से जनता के हृदय पर राज किया था और जनता ने भी इन्हें उतना हीं सम्मान दिया। राजनीतिक बहस में शाब्दिक गोलाबारी की जरूरत नहीं है, बल्कि संयम के साथ सुनने और उत्तर देने की जरूरत है।

एक अच्छा नेता वहीं होता है, जो सामाजिक सौहार्द के साथ राष्ट्र की उन्नति के लिए कार्य करे। विवादित टिप्पड़ी करके वर्ग विशेष की आंखों का तारा बनने से अच्छा, समाज का कल्याण कर उनकी दृष्टि में नायक बनना है। ऐसे कार्यों से मिली प्रसिद्धि भी स्थाई होती है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी इसी राह पर चलकर जन-जन के नायक बने हुए हैं। सर्वधर्म समभाव का दृष्टिकोण अपनाकर बिना किसी भेद-भाव के सबके बारे में सोचा और कार्य किया। परिणामस्वरूप विच उहें सम्मान की दृष्टि से देखता है और उनके नेतृत्व को सराहता भी है।

भड़काऊ भाषणों के सहारे राजनीति नहीं टिकने वाली है। बढ़ती तकनीक ने जानकारी को और सुगम बना दिया है। अब जनता सब जानती है कि कौन काम करने वाला है, कौन बातें बनाने वाला और कौन भड़काऊ भाषण देने वाला? जनता जानती है कि उनका नायक कौन है। अतः विवादित बयानबाजी के बजाय उत्तम कर्म और आचरण की राजनीति अपनाए, इसी में समाज और देश का भला होगा।

आज महाकुंभ पर राजनीति चरम पर है,चाहे महामण्डलेश्वरों की आननफानन घोषणा और और तुरंत पद व पदवी की वापसी आरोप प्रत्यारोप नीचता की पराकाष्ठा को पार कर चुका हे.सबसे बड़ी बात तो कथित शंकराचार्य ने कह दिया .योगी को हटाने तक की बात उन्हें आनंदित या अहंकारित कर सकती है पर समाज ने उनके कुत्सित वक्तव्य को उन्हें ही वापस कर दिया है.मेरे हिसाब से जैसा गुरु वैसा ही चेला.अर्थात उन्हें शंकराचार्य के पद से हटाना ही एक मात्र विकल्प होसकता है.

अभी कल ही सोनिया का बयान पूरे देश को आहत कर दिया है. पूअर लेडी खाना उनके सोच को बताता हे. संविधान की दुहाई  देने वाली कांग्रेस खुद आदिवासी, गिरीवासी,अनुसूचित,महिला एवं आंबेडकर विरोधी होने का ज्वलंत उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है.इसीलिए कहा गया है मुखवास निकली बोली और बंदूक की गोली वापस नहीं आती.

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