मुहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि पाकिस्तान निर्माण के बाद वजीरे आजम लियाकत अली खान और सत्ता पर काबिज दूसरे लोगों के व्यवहार से जिन्ना को यह महसूस हो गया था कि देश की तकसीम में उनकी बहुत बड़ी गलती हो गई। तपेदिक से पीडित जिन्ना का इलाज करनेवाले डॉक्टर इलाही बख्श ने अपनी पुस्तक 'कायदे आजम के आखिरी दिन' में लिखा है कि जिन्ना ने उन्हें देखने के लिए पहुंचे लियाकत अली से क्रोधावेश में कहा- तुम खुद को बड़ा आदमी समझने लगे हो, जबकि तुम कुछ भी नहीं हो। मैंने तुम्हे वजीरे आजम बनाया। तुम समझते हो कि पाकिस्तान तुमने बनाया। लेकिन अब मुझे यकीन हो गया है कि ऐसा करके मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती की।' मुहम्मद अली जिन्ना को विश्व के मानचित्र पर एक देश को लाने, पाकिस्तान का निर्माता कहलाने का श्रेय दिया जाता है, लेकिन विचित्र बात यह है कि जिन्ना ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में कहा कि पाकिस्तान बनाकर मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी भूल की।
देश के बंटवारे के क्रम में पूरे उपमहाद्वीप में मची भयंकर तबाही क्या जिन्ना की अंतरात्मा को कचोट रही थी? प्रधानमंत्री लियाकत अली खान द्वारा उन्हें और उनकी हिदायतों को नजरअंदाज करने तथा उनके साथ विश्वासघात करने के कारण वे बुरी तरह से हिल गए थे। तपेदिक की बीमारी से पीडित जिन्ना के इलाज में घोर उपेक्षा के कारण वे गहरे मानसिक संताप से गुजर रहे थे।
पेशावर के अंग्रेजी दैनिक 'फ्रंटियर पोस्ट' के 26 नवंबर, 1987 के अंक में फ्रंटियर प्रांत के पूर्व मंत्री गाह्या खान ने जिन्ना के चिकित्सक डॉ. कर्नल इलाही बख्श के हाले से बताया कि पाकिस्तान के निर्माता जिन्ना अपने आखिरी दिनों में पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लियाकत अली खान के घटिया व्यवहार से इतने दुखी हो गए थे कि मृत्यु शय्या पर पड़े जिन्ना का कुछ दिनों बाद ही देहांत हो गया। नेहरू से अपनी बात कहने के लिए जिन्ना कभी दिल्ली नहीं आ पाए।
उन्होंने लियाकत अली से कहा, 'तुम खुद को बड़ा आदमी समझने लगे हो, जबकि तुम कुछ भी नहीं। मैंने तुम्हें पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया। तुम समझते हो कि पाकिस्तान तुमने बनाया। इसे मैंने बनाया है। लेकिन अब मुझे यकीन हो गया है कि ऐसा करके मैंने अपने जीवन की सबसे बड़ी भूल की है। अगर अब मुझे मौका मिला ती मैं दिल्ली जाऊंगा और जवाहरलाल से कहूंगा कि हम पिछली मूर्खताएं भूलकर फिर एक साथ हो जाएं।"
मृत्यु शइया पर पड़े जिन्ना का कुछ दिनों बाद ही देहांत हो गया। नेहरू से अपनी बात कहने के लिए जिन्ना कभी दिल्ली नहीं आ पाए। मौत ने बीमारी से उनका निपटारा कर दिया। जिन्ना उस समय न मरते ही क्यों उनका नया विचार हकीकत भी बदल सकता था?