गजवाये हिंद का सपना न पालो राहुल! यह डा अंबेडकर का संविधान है जवाहरलाल का नही.

    • उत्तर प्रदेश (कई ग्रामीण क्षेत्र), बिहार (कई ग्रामीण क्षेत्र) ,हरियाणा (जाति आधारित हिंसा की घटनाएँ सामान्य),महाराष्ट्र (विशेष रूप से मराठवाड़ा और विदर्भ),कर्नाटक(विशेष रूप से उत्तरी कर्नाटक),तमिलनाडु ( कांगारू कोर्ट ,जाति आधारित पंचायतें,सामाजिक नियंत्रण के लिए कुख्यात ),मध्य प्रदेश (बुंदेलखंड और मालवा क्षेत्र) और राजस्थान (मंदिरों में प्रवेश, सार्वजनिक स्थलों पर जाने आदि में भेदभाव) के कारण देशभर में जातिवाद का पूरी तरह से खत्म होना अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।

जातिवाद का प्रभाव इस वजह से अधिक है क्योंकि वहाँ पर पुरानी सामाजिक संरचनाएँ और मान्यताएँ आज भी प्रभावी हैं। शहरों में जातिवाद का असर तुलनात्मक रूप से कम हो सकता है, क्योंकि वहाँ आर्थिक और सामाजिक गतिशीलता अधिक होती है। लेकिन देशभर में जातिवाद का पूरी तरह से खत्म होना अभी भी एक चुनौती बनी हुई है।

भारत में जातिवाद की समस्या देश के लगभग हर हिस्से में मौजूद है, लेकिन इसका स्वरूप, तीव्रता, और प्रभाव क्षेत्र के अनुसार बदलता है। आमतौर पर, जातिवाद की तीव्रता कुछ क्षेत्रों में अधिक देखी जाती है, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, जहां पारंपरिक जाति व्यवस्था का अधिक प्रभाव है। कुछ ऐसे क्षेत्र जहाँ जातिवाद का असर ज्यादा देखा जाता है, वे निम्नलिखित हैं:

1. उत्तर प्रदेश और बिहार:

उत्तर प्रदेश और बिहार में जातिवाद का प्रभाव राजनीति, सामाजिक जीवन, और अर्थव्यवस्था पर गहरा है। जातीय आधार पर वोटबैंक की राजनीति यहाँ बहुत प्रचलित है, और समाज में जाति आधारित विभाजन भी स्पष्ट है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी जातीय भेदभाव और ऊँच-नीच की भावना बनी हुई है, जिससे सामाजिक तनाव और हिंसा की घटनाएं होती हैं।

2. तमिलनाडु:

तमिलनाडु में जाति व्यवस्था का प्रभाव गहरा है, खासकर दलित समुदायों के प्रति भेदभाव के रूप में। यहाँ कुछ जातियाँ जैसे कि वन्नियार और थेवर समुदायों का प्रभाव काफी है, और अक्सर जातिगत टकराव की घटनाएं सामने आती हैं। इसके साथ ही, कुछ क्षेत्रों में जाति आधारित पंचायतें (कांगारू कोर्ट) भी चलती हैं, जो सामाजिक नियंत्रण के लिए कुख्यात हैं।

3. राजस्थान:

राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में जातिवाद का प्रभाव गहरा है। राजपूत, जाट, गुर्जर जैसी प्रमुख जातियों का प्रभाव दिखता है और दलित समुदायों को अक्सर भेदभाव का सामना करना पड़ता है। साथ ही, ऊँच-नीच की भावना कई क्षेत्रों में आज भी बनी हुई है, और दलितों को मंदिरों में प्रवेश, सार्वजनिक स्थलों पर जाने आदि में भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

4. मध्य प्रदेश:

मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी जातिवाद प्रबल है, खासकर बुंदेलखंड और मालवा क्षेत्र में। यहाँ पर कई बार भूमि विवाद और सामाजिक भेदभाव जाति के आधार पर होते हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों को कई बार सामाजिक असमानता का सामना करना पड़ता है।

5. हरियाणा

हरियाणा में विशेषकर जाट समुदाय का प्रभाव बहुत अधिक है। यहाँ ऑनर किलिंग जैसी घटनाएँ जाति के नाम पर होती हैं और कई बार खाप पंचायतों के फैसले जातीय रूढ़िवाद को बढ़ावा देते हैं। जाति आधारित हिंसा की घटनाएँ भी यहाँ सामान्य हैं।

6. महाराष्ट्र (विशेष रूप से मराठवाड़ा और विदर्भ):

महाराष्ट्र में जातिगत भेदभाव, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, कई बार हिंसा का कारण बनता है। दलितों के खिलाफ अत्याचार और भेदभाव की घटनाएँ यहाँ आम हैं। भिमा कोरेगांव जैसी घटनाएँ दर्शाती हैं कि जातीय मुद्दों की जड़ें यहाँ गहरी हैं।

7. कर्नाटक:

कर्नाटक के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से उत्तरी कर्नाटक में जातिगत भेदभाव की घटनाएँ सामने आती हैं। यहाँ लिंगायत, वोक्कालिगा और अनुसूचित जातियों के बीच सामाजिक स्तर पर भेदभाव देखा जाता है।

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form