बैंक से भागता ,निवेश की ओर ताकता ग्राहक

  स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने बैंकों को एक बड़ी नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि कि बैंकों में पैसा रखने का युग अब खत्म हो चुका है। खासकर युवा अब निवेश के मामले में ज्यादा रिस्क लेने को तैयार हैं।



ऐसे में बैंकों को नई हकीकत को समझने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि बैंकिंग इंडस्ट्री बड़े बदलाव से गुजर रही है।


डिपॉजिट में निवेश का दौर वापस आने वाला नहीं है


उन्होंने कहा कि डिपॉजिट पर निर्भरता की जगह अब डिपॉजिट और मार्केट डेट के बीच ज्यादा संतुलित रिश्ता दिख रहा है। हर विकसित अर्थव्यवस्था में यह ट्रेंड देखने को मिलता है। उन्होंने कहा, "पहले हमारे बैंकिंग सिस्टम की निर्भरता डिपॉजिट पर रही है। मुझे नहीं लगता कि यह दौर वापस आने वाला है।" अभी वह सेल्सफोर्स इंडिया की सीईओ और चेयरपर्सन हैं। उन्होंने सीएनबीसी-टीवी18 की मैनेजिंग एडिटर शिरीन भान से बातचीत में ये बातें बताईं।


आज का युवा निवेश में रिस्क लेने को तैयार


उन्होंने कहा कि उनकी पीढ़ी को परिवार के बुजुर्ग और युवा दोनों की जरूरतें पूरी करनी पड़ती थी। लेकिन, आज युवा पीढ़ी सिर्फ सेविंग्स की जगह निवेश पर फोकस करने को आजाद है। इसमें सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) का बड़ा हाथ है। इससे इनवेस्टमेंट तक आबादी के बड़े हिस्से की पहुंच हो गई है। कोई व्यक्ति म्यूचुअल फंड के जरिए छोटे अमाउंट का निवेश मार्केट में कर सकता है।


आज कम अमाउंट से मार्केट में निवेश करना मुमकिन


भट्टाचार्य ने कहा कि आज आप 2000 रुपये का निवेश मार्केट में कर सकते हैं। आप यह पैसा म्यूचुअल फंड में लगाते हैं और वह आपका पैसा स्टॉक्स में लगाता है। इस तरह आपकी पहुंच मार्केट तक होती है। उन्होंने कहा कि इस बदलाव की वजह से बैंकों का काम बढ़ गया है। बैंकों के ट्रेजरी डिपार्टमेंट को अपने ट्रेजरी ऑपरेशन को बढ़ाना होगा। पहले इस डिपार्टमेंट पर आलसी होने के इल्जाम लगते रहे हैं। अब उसे एसेट और लायबिलिटी के बीच संतुलन बनाने में सक्रियता दिखानी होगी।

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बैंकों की डिपॉजिट और क्रेडिट ग्रोथ के बीच फर्क बढ़ रहा


हाल में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी बैंकों में डिपॉजिट और क्रेडिट ग्रोथ के बीच बढ़ते फर्क पर चिंता जताई थी। उन्होंने कहा था कि परिवार अब सेविंग्स के लिए बैंकों के डिपॉजिट का इस्तेमाल कम कर रहे हैं। ऐसे में बैंकों को डिपॉजिट बढ़ाने और लिक्विडिटी से जुड़े रिस्क का प्रबंधन करने के लिए नई स्ट्रेटेजी अपनानी होगी। पिछले कुछ सालों में लोग बैंकों में सेविंग्स का पैसा रखने की जगह म्यूचुअल फंड की इक्विटी स्कीमों में लगा रहे हैं। SIP के जरिए वे हर महीने एक निश्चित अमाउंट का निवेश कर रहे हैं।

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