अग्नि पथ योजना को फुटबाल बनाने से बचाइए, माननीयों!

 अग्निपथ योजना को लेकर संसद और मीडिया में जिस तरह की बहस चल रही उससे साफ है कि यह राजनीतिक फुटबॉल के खेल में तब्दील हो गया है. यह हमने 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी देखा था और आगे भी यह खेल जारी रह सकता है क्योंकि सत्ताधारी एनडीए गठबंधन के सहयोगी नीतीश कुमार की पार्टी जद(यू) इस योजना के खिलाफ है.


खेल के नज़रिए से इसे एक ऐसी योजना माना जा रहा है जिसमें 75 फीसदी अग्निवीरों को दूसरे सरकारी कर्मचारियों की तरह स्थायी रोज़गार नहीं दिया जाता. इसकी जगह केवल चार साल की सरकारी सेवा की गारंटी है और केवल 25 फीसदी अग्निवीरों को नौकरी में बनाए रखने का प्रावधान है. आगे सेवा विस्तार के लिए नहीं चुना गया तो एकमुश्त 5 लाख रुपये ‘सेवा निधि’ के रूप में दिए जाएंगे और इसके अलावा अनिवार्य मासिक बचत के तहत जमा राशि मिलेगी. केंद्र सरकार की कुछ एजेंसियों में आरक्षण के तहत या विशेष योजना के तहत रोजगार के कुछ विकल्प उपलब्ध कराए गए हैं.

पिछले सप्ताह गृह मंत्रालय ने 2022 में किए गए अपने इस वादे को दोहराया कि अग्निवीरों को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) और असम राइफल्स में 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. गृह मंत्रालय ने यह भी कहा कि इन संगठनों में सिपाही की नौकरी दी जाएगी और इसके लिए कोई शारीरिक परीक्षण नहीं करवाना होगा. यह पेशकश दोहराने की ज़रूरत उन दावों का खंडन करने के लिए आन पड़ी कि अग्निपथ योजना भर्ती के उस मॉडल को कमजोर करती है जिसके तहत स्थायी नौकरी और आजीवन पेंशन का प्रावधान किया गया था. यह इस बात को भी रेखांकित करता है कि घरेलू राजनीति के तहत इस मसले को ‘एक रोजगार योजना’ के रूप में पेश किया जा रहा है जबकि यह निश्चित रूप से ऐसा नहीं है और न इसे ऐसा होने दिया जा सकता है.

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