क्या मुस्लिम, राष्ट्र निर्माता हो सकते हैं ? एक अवधारणा!

 क्या मुस्लिम, राष्ट्र निर्माता हो सकते हैं ?


मुस्लिमों में देश , राष्ट्र की अवधारणा ही नहीं है । उनकी किताबों में देश का जिक्र ही नहीं है । किताब तो हर जगह जा कर उसको दारुल इस्लाम बनाने को कहती है ।

उनका दावा पूरी धरती पर है । आईएसआईएस ने अपने अनेक बयानों में दुनियां के मुस्लिमों को देशभक्ति छोड़ कर , पूरी दुनिया को इस्लामी बनाने को कहा है और उसके आवाहन पर भारत , ब्रिटेन आदि देशों से लोग सीरिया पहुंचे उम्मा के नाम पर और जिहाद किया ।

ऐसे में शेख मुजीब उर रहमान भी बांग्लादेश के राष्ट्र निर्माता या राष्ट्रपिता कैसे हुए । जिन्ना भी नहीं हुए और तुर्की के कमाल पाशा भी नहीं हुए ।

भारत में गांधी,नेहरू को इतना बड़ा दर्जा प्राप्त है , जगह जगह मूर्तियां , सड़कों के नाम , यूनिवर्सिटी, इमारतों के नाम हैं इनके नाम पर । जबकि इन्होंने शेख मुजीब जैसा कोई बलिदान नहीं दिया था भारत की स्वतंत्रता में ।

लेकिन बंग्लादेश में निर्विवाद रूप से पूरी लड़ाई उन्होंने ही लड़ी और जीती और बाद में भी उनकी हत्या हुई ।

शेख हसीना से शिकायत हो सकती है लेकिन उसमें मुजीब की मूर्ति का क्या रोल है ।

कोई कौम इतनी अहसान फरामोश कैसे हो सकती है कि अपने ही राष्ट्र निर्माता की मूर्तियां तोड़ दे । उसके संग्रहालय में आग लगा दे । जिससे मुजीब लड़े , उसी जमाते इस्लामी का साथ दे कर अपने ही देश को हिंसा में झोंक दे। जिन्होंने पाकिस्तानी सेना से मिल कर अपने ही देश की जनता से बलात्कार किए , हत्याएं की, उनके ही साथ हो लिए ।

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