शंकराचार्यों की शरणागति का धन कुबेर,अंबानी के दरबार में क्या ओचित्य?

 

पहले ऋषि मुनियों के यहां कुबेर और धनाध्य लोग हाजिरी लगाने जाया करते थे .आज ऋषि मुनि पैसे वालों के पास भाग रहे हैं .इसका तो उदाहरण लगता है सनातन धर्म के ध्वजवाहक शंकराचार्य को की भूमिका पर उंगली उठा रहा हूं .दुनिया में ईसाई और बौद्धों के पास एक-एक धर्मगुरु पोप और दलाई लामा है लेकिन हम सनातनियों के बाद एक के बजाय चार स्थापित धर्म गुरु हैं .

जिन्हें शंकराचार्य ने  चारो धाम स्थापित किया था, इन धर्म गुरुओं ने देश और दुनिया के शिष्य धन कुबेरों में से एक मुकेश अंबानी के बेटे के विवाह में  जाकर के हाजिरी लगाकर  अपने अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है .

हमारे यहां परंपरा है कि हम सनातनी अपने धर्म गुरुओं से आशीर्वाद लेने उनके मठ तक जाते हैं लेकिन हमारे चारों में से तीन शंकराचार्य ने अपने मठों की  अंबानी के यहां उनके बुलावे पर वहां जाकर के उन्होंने एक सद्कृत नहीं बल्कि को अपकृत्य किया है .शंकराचार्य को अंबानी परिवार की ओर से कितनी विदाई और दक्षिण मिली या कोई विषय नहीं रखता विषय यह है कि धन कुबेरों के यहां शंकराचार्य की शरणागति अपने आप में बड़ा विषय है.


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