पाकिस्तान बनने की कहानी, योगेंद्र नाथ मंडल की जुबानी

 तत्कालीन बंगाल, जो आगे टूटकर पूर्वी पाकिस्तान और फिर बंगलादेश बनने वाला था, वहाँ जोगेंद्र मंडल उस जाति में जन्म लिए, जिसे तब चांडाल, अछूत या आजकल दलित या शिड्यूल कास्ट कहते हैं।

वे तमाम दुश्वारियों के बावजूद ठीक ठाक शिक्षा हासिल कर, वकील बने। कलकत्ता आकर प्रैक्टिस की और फिर राजनीति में आये।

वो दौर बंगाल में सुभाषचंद्र बोस का था। बंगाल की राजनीति में या उनके समर्थक होते थे या विरोधी। जोगेंद्र की प्रारंभिक राजनीति, बोस से प्रभावित थी।

सुभाष के नेशनल लीडर होने, और और बड़े भाई शरतचंद्र के स्टेट प्रेसिडेंट होने के बावजूद बंगाल कांग्रेस में बिखराव रहा।

जोगेंद्र 1937 में भारत के पहले लेजिस्लेटिव इलेक्शंस में इंडिपेंडेंट लड़े, और जीते भी। विधायक हुए। बोस ब्रदर्स से उनकी करीबी बरकरार रही।


जब सुभाष का कांग्रेस से इस्तीफा हुआ, को और वे भारत से चले गए, तो बंगाल में बची खुची कांग्रेस की नैया डूब गई।

किसी और ने नही, शरत ने ही डुबोई। फायदा मुस्लिम लीग को मिला, जो वहां बड़ी पार्टी बन बैठी। हिन्दू महासभा ने उसे चटपट समर्थन देकर सरकार बनवा दी।

सत्ता की गंध आते ही मंडल, और उनके जैसे कइयों ने मुस्लिम लीग जॉइन की। सरकार में मंत्री हुए। शरतचंद्र बोस भी मंत्री की शपथ लेते लेते रह गए। (वो किस्सा फिर कभी)


कभी सुभाष द्वारा दौड़ाए गए श्यामा प्रसाद मुखर्जी भी जरा रुककर, उसी कैबिनेट में आये। (उनकी अलग पार्टी थी, जो महासभा में मर्ज कर दी)

तो कांग्रेस के भितरघातियों ने बंगाल की सत्ता ऐसे लोगो के हाथ मे रख दी, जो 1946-47 के दंगों के दौरान, पुलिस के हाथ बांधे रखने वाले थे।

बहरहाल, अम्बेडकर साहब ने 1942 में एक शिड्यूल कास्ट फेडरेशन बनाई। जोगेंद्रनाथ भी इससे जुड़े। 1946 आते आते, जब सम्विधान सभा के चुनाव हुए, अम्बेडकर को सुरक्षित सीट की जरूरत थी।


मंडल ने मुस्लिम लीग से दिलवाई। वे बंगाल से लड़े। इंडिपेंडेंट, मगर मुस्लिम लीग विधायकों ने, अंबेडकर को वोट किया। लीग के समर्थन से, आज के बंगलादेश वाले इलाके से चुनकर सम्विधान सभा पहुचे।




और देश के कानून मंत्री बने???


ना, अभी नही। अभी तो सरकार में केवल खास लोग थे। ये यूनाइटेड इंडिया की सरकार थी। कांग्रेस 210 और मुस्लिम लीग लगभग 75 सीटों के साथ बड़े दल थे।


कांग्रेस ने अपने कोटे से युजुअल नामो के अलावे अबुल कलाम आजाद को भी मंत्री बनाया- मुस्लिम कार्ड। मुस्लिम लीग को आपत्ति थी।


फिर पलटकर उसने जवाब में जोगेंद्र नाथ मंडल को अपने कोटे से मंत्री बनाया। हिन्दू कार्ड + दलित कार्ड। नहले पे दहला..


जोंगेन्द्र नाथ मंडल, प्रथम कानून मंत्री बने।


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मगर अधिक समय नही। कैबिनेट में मार कुटाई, बंगाल में निर्बाध दंगे, पंगु केंद्र सरकार देखकर बंटवारे पर तेजी से सहमति बन गयी।


विद्युत गति से पाकिस्तान भी बन गया। रातोरात रेडक्लिफ लाइन खिंची। मंडल लीग के साथ पाकिस्तान गए। भारत वाले टुकड़े में अम्बेडकर कानून मंत्री हुए। उनका क्षेत्र पाकिस्तान बन गया था। नेहरू मुम्बई सीट खाली करवाकर, जिता लाये।


खैर, तो जोगेंद्रनाथ मंडल पाकिस्तान के लॉ मिनिस्टर हुए। दोनो तरफ का पहला लॉ मिनिस्टर, जरा उनके कद का अंदाजा कीजिये।


यही नही, पाकिस्तान की पहली संसदीय बैठक के स्पीकर भी वही थे। तब जिन्ना की मौत न हुई थी। जोगेंद्रनाथ असल मे पाकिस्तान के प्रमुख फाउंडर थे, जिनका नाम वामपन्थी इतिहास ने मिटा दिया।


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मातृभूमि को हलाल करने वाले जिन्ना को, नियति ने विभाजन की बरसी भी न देखने दी। साल पूरा होने के पहले चल बसे।


साथ ही "सेकुलर पाकिस्तान" का उनका सपना भी तिरोहित हो गया। तमाम कठमुल्लों, नफरतियो, दंगाईयों की फौज जो उन्होंने इकट्ठा की थी, वह पाकिस्तान के स्वप्न से अपना-अपना हिस्सा नोच खाने को आमादा थी।


जिन्ना खुद ही चल बसे, तो बच गए। उनके उत्तराधिकारी, लियाकत अली खां को जनता ने पीट पीटकर और घसीटकर मार डाला।


फिर तो ऐसा पाकिस्तान बना, जो उसे चुनने वालों की ताउम्र सजा है।


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जोंगेन्द्र मंडल की सजा बाकी थी। जिन्ना के बाद के 3 साल में उन्हें हिंदी, गणित, भूगोल, विज्ञान समझ मे आ गया। मंत्री पद से इस्तीफा देकर, झोला उठाकर हिंदुस्तान लौट आये।


1968 में मरे, गुमनामी में। कभी कभी कोई हिस्ट्री फ्रीक, उन्हें गाली देने के लिए याद कर लेता है।


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राहत इंदौरी निर्भीक और हिंदुस्तान के सिरमौर शायर हुए। उस शख्स ने इस्लामाबाद के मुशायरे में, पाकिस्तान की जनता को, उसी के मंच से बुलंद आवाज में कहा ..


वो अब पानी को तरसेंगे,


जो गंगा छोड़ आये है


हरे झंडे के चक्कर मे,


तिरंगा छोड़ आये है

 ..


मुझे लगता है जोगेंद्रनाथ मंडल, राहत इंदौरी से सहमत रहे होंगे।


और आप ??


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