परिवारवाद की अमरबेली की पोषक कांग्रेस और क्षेत्रीय दल


स्वार्थ और परिवारवाद परस्पर पूरक. यह तो हम नहीं कह सकते हैं कि आज भारतीय राजनीति परिवारवाद पर केंद्रित हो गई है लेकिन भारतीय राजनीति को परिवारवाद पर केन्द्रित करने का ट्रेंड स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सत्तासीन तब की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने ही शुरू किया। पंडित नेहरु  के बाद कांग्रेस में सबसे अहमियत दिया गया तो श्रीमती इंदिरा गांधी को। नेहरु परिवार से जुड़े रहने के कारण , कांग्रेस में उनका स्थान कुछ समयावधि को छोड़कर सर्वोपरि बना दिया गया। नेहरू  प्रधानमंत्री बनें ही और फिर उनकी बेटी इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया।फिर आगे चलकर उसी परिवार से राजीव गांधी भी प्रधानमंत्री बनें। कांग्रेस के अंदर और बाहर अगर किसी का वर्चस्व रहा तो नेहरू परिवार का। यह सिलसिला हमेशा कम या अधिक बना रहा।राजीव गांधी के बाद कांग्रेस सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में सिमट गई है।जो लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कांग्रेस में नेहरू परिवार के खिलाफ उठने का दुस्साहस दिखाया,या तो वे दल से ही निकाल दिए गए या स्वयं दल छोड़ना पड़ा अथवा नया कोई स्वतंत्र दल बनाकर आगे की राजनीति करनी पड़ी।

कांग्रेस चूंकि बड़ी पार्टी थी। कांग्रेस नेतृत्व ने शुरू ही परिवार की राजनीति किया।फिर क्या!उसकी देखा देखी भारत के क्षेत्रीय दलों में भी परिवारवाद का ट्रेंड और डेवलप किया।जनता दल,राजद, झामुमो और दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दलों में उसके लोकतांत्रिक स्वरूप को देखा जाए,तो कहने को उन दलों में अध्यक्ष आदि का चुनाव होता है किंतु उन दलों में अध्यक्ष से लेकर अनेक पदों पर एक ही परिवार का वर्चस्व वर्षों से बना हुआ है।परिवार वाद आगे बढ़ता  जारहा है अब राहुल ,प्रियंका ,वाड्रा और रेहान वाड्रा भी राजनीति की सीढ़ी पर बैठ गए हैं.

भाजपा में भी कुछ लोग परिवारवाद लाने में पीछे नहीं हैं पर अन्य दलों के तुलना में इस दल में यह ट्रेंड हावी नहीं है।खासकर, नरेन्द्र मोदी व बहुतेरे ऐसे नेता हैं जो राजनीति में परिवारवाद के सख्त खिलाफ हैं। भाजपा वैचारिक पार्टी है।यह संघ से नजदीक है।संघ का इसपर प्रभाव है और संघ राजनीति में परिवारवाद को देखना तक नहीं चाहता है।भाजपा आज बड़ी पार्टी है।यह राष्ट्रीय पार्टी है। प्रधानमंत्री मोदीजी चुनावी राजनीति में विपक्षियों से लड़ने के लिए परिवारवाद को भी एक मुद्दा बनाकर लड़ते रहे हैं।

कांग्रेस की तरह भाजपा भी राजनीति में परिवारवाद को प्रश्रय देती, वामपंथी दल भी अगर ऐसा हीं अनुकरण करते तो निश्चय ही आज भारत की राजनीति परिवारवाद केन्द्रित हो गई होती पर ऐसा होने से शेष रह गया है पर यह तभी थम सकता है जब जनता इसके खिलाफ एकदम उठ खड़ा हो।

क्षेत्रीयदलों का उभार परिवारवाद की सीढ़ी का संकेत है.नई पीढ़ी राष्ट्रवाद,परिवारवाद,समाजवाद का भेद समझने का प्रयास करे यही राष्ट्र धर्म है.

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