प्रियंका नहीं देश का कोई भी मोदी से लड़ता वह पराभूत अवश्य होता,.मोदी नेता नही आंदोलन है वैश्विक राजनीति का !!

 

यदि श्री कृष्ण को किरात का बाण लगता है और श्रीकृष्ण की त्वरा मृत्यु होजाती है तो आप क्या कहेंगे कि किरात ने श्री कृष्ण को हरा दिया?उत्तर नही!वस्तुत:कोई भी ऐसा नही सोच सकता. कारण कि वहा परिस्थिति जन्य घटना है,जो विश्वाधार हो उसे भला किससे भय या डर,मृत्यु तो अवश्यंभावी है जो मर्त्य लोक में आया. पर किरात से श्रीकृष्ण को हारता दिखाना इतिहास के साथ अन्याय ब नासमझी का प्रतीक है .


महाभारत के भीष्म को शिखडी मारता ही तो क्या शिखंडी का विरत्व माना जाएगा?इतिहास असंख्य उदाहरणों से भरा मिलेगा  जहां  स्वस्थ राजनीति पर कूटनीति हावी हो जाती है.वही बयार मोदी विरोधी प्रियंका के पक्ष में हांकने पर तुले है अगर मोदी हारता है तो यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की युग धारा का पराभव होगा.जो असंभव है,इंदिरा को राजनरायण ने उठाकर पटक दिया था तो क्या राजनरायन इंदिरा जी की बराबरी ऊपर उठ गए? नहीं?चाहे प्रियंका लड़ती,चाहे राहुल या राजमाता ,या खरगे या पूरे देश से कोई और पर नियति की इच्छा उसके प्रभाव देखने की थी.

भोजपुरी में उक्ति च्लती है "हगत में बटेर मारना.देश की राजनीति इतने विद्रूप मोड पर खड़ी हो गई है की सत्ता प्राप्ति के लिए विदेशी एजेंसियों का सहयोग लिया जाना देश द्रोह है.विपक्ष और पक्ष के कर्तव्यों की लक्ष्मण रेखा याद है?


भारत में कोई भी ऐसा राजनीतिक नेता नहीं है जो वाराणसी में श्री नरेंद्र मोदी को हरा सके.

इसलिए, अगर प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ती हैं, तो उनका हारना सुनिश्चित हैं, भले ही वह अपना सारा समय अकेले वाराणसी में चुनाव प्रचार में बिता दें।

उसे अपना समय और ऊर्जा उन क्षेत्रों में कांग्रेस के चुनाव प्रचार के लिए बितानी चाहिए, जहाँ कांग्रेस के पास अभी भी सफलता की कुछ संभावना हैं।

मोदी ने भारत के पीएम बनने के बाद से ही वाराणसी में जबरदस्त काम किया है और यूपी में बीजेपी की सरकार आने के बाद काम की गति और भी बढ़ गई है जबसे योगी सीएम बन गए हैं।

प्रियंका अभी भी राजनीति में एक नौसिखिया है और वह चुनावों के दौरान ही कांग्रेस के लिए प्रचार करती रही है।

सबसे पहले यह साबित करना होगा कि वह एक गंभीर राजनेता है जो लोगों के लिए काम करने और भारत की समस्याओं को हल करने के लिए अपना समय और ऊर्जा देने को तैयार है।

मोदी जैसे जन नेता को कोई गंभीर चुनौती देने के लिए और जनता के साथ अपनी विश्वसनीयता बनाने के लिए उन्हें कई वर्षों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।

समाचार तो सभी देते हैं,पर विचार हम देते हैं

आपके पाती की प्रतीक्षा में

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