गठबंधन युग की वापसी

 अभी अभी लोकसभा चुनाव के बाद एग्जिट पोल के विपरीत मंगलवार को जो परिणाम सामने आए, उन्होंने राजनीतिक पंडितों को भी चौंकाया है। कहां तो चार सौ पार की बात हो रही थी और कहां तीन सौ पार के भी लाले पड़े। फिलहाल, लगातार दो बार की सरकार के खिलाफ एन्टी इन्कंबेंसी के बावजूद भाजपा का सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरना बहुत बुरा प्रदर्शन नहीं कहा जा सकता। लेकिन पिछले दो लोकसभा चुनाव में भरपूर बहुमत के साथ भाजपा ने जिस तरह राजकाज चलाया, वह पर्याप्त बहुमत के बूते ही संभव था। तभी भाजपा अनेक बदलावकारी फैसले ले पायी। 


लेकिन  चुनाव परिणामों ने एकबार फिर देश में गठबंधन युग की वापसी कर दी है। पिछली सदी के अंतिम दो दशकों में जिस तरह की राजनीतिक अस्थिरता रही है, उसे देश के हित में तो कदापि नहीं कहा जा सकता। बार-बार के चुनावों से जहां देश पर बड़ा आर्थिक बोझ पड़ता रहा है, वहीं दुनिया में देश की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ता रहा। पिछले एक दशक में देश में मजबूत सरकार के चलते अनेक अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की प्रभावी दखल रही है। जिसकी झलक जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन के रूप में देखी गई। दूसरी ओर राजग सरकार के बड़े ऐतिहासिक व बदलावकारी फैसलों के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उस तरह का प्रतिरोध सामने नहीं आ पाया, जैसी कि आशंका थी। इसी तरह भारत के कई मामलों में पाक के तल्ख प्रतिरोध के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी में हम उसे अलग-थलग करने में सफल रहे। 

लेकिन यह भी हकीकत है कि बड़ा बहुमत सत्ताधीशों को निरंकुश व्यवहार करने का मौका भी देता है। लोकतंत्र की खूबसूरती इस बात में है कि हर छोटे-बड़े विपक्षी राजनीतिक दल की तार्किक बात को सुना जाए। शासन की रीति-नीति में एकतरफा फैसले लेने के बजाय विपक्ष को उसमें शामिल करना एक लोकतांत्रिक देश की जरूरत होती है। सही मायनों में मजबूत विपक्ष किसी देश में एक सचेतक की भूमिका में होता है, बशर्ते बहुमत वाली सरकार उसकी बात को तरजीह दे।


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