क्रोध प्रतीक है हार का, वह पत्नी जिसने अपने पति के विरोध में निर्णय दिया

 #  शास्त्रार्थ_में_क्रोध_आने_का_अर्थ_है – हार मान लेना

जैसा कि सभी जानते हैं कि


#आद्य_शंकराचार्य और #मंडन_मिश्र के बीच सोलह दिन तक लगातार ऐतिहासिक शास्त्रार्थ चला था.

उस शास्त्रार्थ में निर्णायिका थीं – मंडन मिश्र की धर्मपत्नी "#देवी_भारती".

हार-जीत का निर्णय होना

बाक़ी था, लेकिन शास्त्रार्थ के अंतिम दौर में "देवी भारती" को अचानक किसी आवश्यक काम से जाना पड़ गया.

जाने से पहले देवी भारती ने दोनों विद्वानों के गले में फूलों की एक एक माला डालते हुए कहा, ये दोनों मालाएं मेरी अनुपस्थिति में

आपकी हार और जीत का फैसला करेंगी.

लोगों को यह बात विचित्र लगी परन्तु #आद्य_शंकराचार्य ने मुस्कराते हुए सर झुकाकर उनकी बात को स्वीकार कर लिया.

देवी भारती वहाँ से चली गईं और शास्त्रार्थ की प्रक्रिया चलती रही.

जब #देवी_भारती वापस लौटीं तो शास्त्रार्थ सुन रहे अन्य विद्वान उनको बताने के लिए आगे बढ़े कि उनकी अनुपस्थिति में क्या क्या चर्चा हुई.

लेकिन देवी भारती ने उन्हें

रोक दिया और खुद ही अपनी निर्णायक नजरों से #आद्य_शंकराचार्य और #मंडन_मिश्र को बारी-बारी से देखा...

और #आद्य_शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में विजयी घोषित

कर दिया.

वैसे वहाँ उपस्थित ज्यादातर दर्शक भी यही मान रहे थे लेकिन उनको भी आश्चर्य था कि बिना शास्त्रार्थ को सुने देवी भारती ने एकदम सही निर्णय कैसे सुना दिया.

एक विद्वान ने #देवी_भारती से अत्यंत नम्रतापूर्वक जिज्ञासा की – हे देवी! आप तो शास्त्रार्थ के मध्य ही चली गई थीं, फिर वापस लौटते ही आपने बिना किसी से पूछे ऐसा निर्णय

कैसे दे दिया?

देवी भारती ने मुस्कुराकर जवाब दिया – जब भी कोई विद्वान शास्त्रार्थ में पराजित होने लगता है और उसे अपनी हार की झलक दिखने लगती है तो वह क्रोधित होने लगता है.

मेरे पति के गले की माला उनके क्रोध की ताप से सूख चुकी है, जबकि #शंकराचार्य जी की माला के फूल अभी भी पहले की भाँति ताजे हैं,

इससे पता चलता है कि मेरे पति क्रोधित हो गए थे.

विदुषी देवी भारती की यह बात सुनकर वहाँ मौजूद सभी दर्शक उनकी जय जयकार करने लगे.

आज पहले की तरह शास्त्रार्थ नहीं होते हैं लेकिन सोशल मीडिया ने दूर दूर रहने वालों को शास्त्रार्थ का माध्यम उपलब्ध करा दिया. सोशल मीडिया पर चल रही चर्चा (शास्त्रार्थ) का परिणाम भी देवी भारती के सिद्धांत से ज्ञात किया जा सकता है.

अगर किसी बिषय पर कोई चर्चा हो रही हो और कोई व्यक्ति नाराज होकर तर्क और तथ्य देने के बजाय अभद्र भाषा बोलने लगे, तो समझ जाना चाहिए कि वह

व्यक्ति अपनी हार स्वीकार कर चुका है.

अज्ञानता के कारण अहंकार होता है और अहंकार के टूटने से क्रोध आता है जबकि विद्वान् व्यक्ति हमेशा तर्क और तथ्य की बात करता है और विनम्र बना रहता है.


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