बीजेपी अध्यक्ष, मराठा छत्रप विनोद तावड़े का नाम आगे,अधिकाश की पसंद

 बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के नए अवतार पर अंदर बाहर मंथन आंदोलन की तरह चल रहा है! हर कोई इस उत्सुकता बस निहार रहा मोदी और अमित शाह के पिटारे से कौन मिलेगा यह रहस्य घोषणा तक बना रहेगा.

 संभावित नामो की चर्चा करूंगा प्रथम:विनोद तावड़े. और सुनील बसल 


आज तावड़े पर चर्चा

बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए विनोद तावड़े का नाम अन्य नेताओं से क्यों है आगे, जानिये l फिल हाल यह ऑर्टिकल पढ़ने से पहले यह जान लीजिए कि यह नई भाजपा है. यहां फैसले इतने गोपनीय और अविश्वसनीय होते हैं कि राजनीतिक विश्लेषक भी चकरा जाते हैं. मोदी-शाह युग की इस बीजेपी में कोई नहीं जानता है कि कौन पार्टी का नया अध्यक्ष बनने वाला है l अचानक किसी के पास फोन पहुंचेगा और कहा जाएगा कि आपसे पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बात करना चाहता है. आप चाय पीने इस एड्रेस पर इस टाइम पर पहुंचिए. पर इसके बावजूद भी कई बार सूत्रों के आधार पर जो आंकलन किए जाते हैं वो सही निकल जाते हैं .

आपको याद होगा कि प्रेसिडेंट पद के लिए कई लोगों के साथ द्रोपदी मुर्मू का भी नाम चल रहा था और अंत में उनके नाम पर मुहर लग गई. इसी तरह इस बार भी करीब दर्जन भर लोगों का नाम भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष के लिए चल रहा है. पार्टी नेता बीएल संतोष, सुनील बंसल, फग्गन सिंह कुलस्ते, केशव प्रसाद मौर्या आदि का नाम अध्यक्ष पद की रेस में है. इन सभी के नाम के साथ कुछ प्लस पॉइंट और कुछ माइनस पॉइंट हैं. पर एक और नाम इस दौड़ में शामिल है वह है बिहार के प्रभारी विनोद तावड़े का. इन्हें उत्तर भारत में कम ही लोग जानते हैं. अभी लोकसभा चुनावों से कुछ पहले उत्तर भारत के अखबारों में इनका नाम छपने लगा है. अगर वर्तमान राजनीतिक जरूरतों, पार्टी के मानदंडों, व्यक्तिगत सफलताओं को पैमाना बनाया जाए तो ऐसा लगता है कि रेस में विनोद तावड़े का नाम सबसे आगे चल रहा है. आइये देखते हैं कि वो कौन सी खूबियां हैं जो उन्हें औरों से अलग कर रही हैं.

1-मराठा क्षत्रप होना

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. लोकसभा चुनावों में एनडीए गठबंधन की जो दुर्गति हुई है वह किसी से छुपी नहीं है. बीजेपी ही नहीं उसकी सहयोगी पार्टियों का प्रदर्शन भी बहुत खराब रहा है. इसके पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह माना जा रहा है कि राज्य की जनता विशेषकर मराठा समुदाय की नाराजगी की चलते इतना बड़ा डैमेज हुआ. दरअसल पार्टी शुरू से ही एक मराठा क्षत्रप की खोज में थी. शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने की मजबूरी केवल इसलिए ही हुई थी कि किसी तरह से मराठा वोटों को बांटा जा सके. कई बार ऐसा भी लगा कि उद्धव ठाकरे खुद एनडीए में आ सकते हैं, पर शायद बात नहीं बनी. अभी भी गाहे-बगाए ऐसी चर्चा चल ही जाती है कि एनडीए के साथ उद्धव ठाकरे आ सकते है. पार्टी को चुनावों के पहले ही शिंदे गुट और अजीत पवार गुट की सफलता में संशय दिख रहा था. और हुआ भी ऐसा.विनोद तावड़े को पार्टी अध्यक्ष बनाकर बीजेपी मराठा जनता को संदेश दे सकती है कि वो मराठों से पार्टी का कोई दुराव नहीं है.

कहा जाता है कि बीजेपी की राज्य में एक समस्या रही है कि उसे हमेशा मराठा नेतृत्व की आवश्यकता महसूस हुई है. तावड़े के लिए सौभाग्य की बात है कि वह मराठा समुदाय से हैं. पर मराठा होते हुए भी वह मुख्यमंत्री पद की रेस कुछ समय पहले वो हार चुके हैं. पर वो कभी निराश नहीं हुए.सीएम के लिए रेस से बाहर होने पर एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था ओनली राष्ट्र, नो महाराष्ट्र. शायद उनकी जबान पर सरस्वती का वास रहा हो उस समय. उनकी चर्चा आज पार्टी के सबसे बड़े पद के लिए हो रही है. तावड़े के राजनीतिक जीवन में इस तरह का उतार-चढ़ाव लगा रहता है. 2019 में बोरीवली से उनका विधायक का टिकट काट दिया गया. पर वो निराश नहीं हुए और धूमकेतु बनकर उभर रहे हैं . पहले पार्टी के महासचिव बने अब अध्यक्ष की रेस में हैं. पिछले साढ़े चार वर्षों में, तावड़े ने पार्टी के शीर्ष नेताओं का जिस तरह भरोसा हासिल किया है और दिल्ली में अपनी मौजूदगी स्थापित की है, उससे यही लगता है कि उनके नाम पर मुहर लग सकती है.

2-बीजेपी के हालिया मानदंडों पर खरे

भारतीय जनता पार्टी आज के दौर में खास पदों पर नियुक्तियां करते हुए जिन मानदंडों का पालन कर रही है उसको आधार बनाएं तो सबसे उपयुक्त उम्मीदवार विनोद तावड़े ही हैं. विनोद तावड़े संगठन के लिए परदे के पीछे से मनोयोग के साथ काम कर रहे हैं. उनकी मास अपील नहीं है पर संगठन के लेवल पर उन्होंने अपनी योग्यता साबित की है. इसके साथ ही वो पिछड़े समुदाय से आते हैं. बीजेपी इस बार चाहेगी कि पार्टी का अध्यक्ष कोई पिछड़े, दलित या महिला समाज का चुना जाए. जिस तरह पार्टी ने देश का राष्ट्रपति, उड़ीसा का सीएम, मध्यप्रदेश सीएम, छत्तीसगढ़ सीएम आदि का चुनाव किया है उसके पीछे केवल यही तर्क है कि पार्टी की छवि पिछड़ा -दलित समर्थक की बने. फिलहाल कई बार से ऐसा हो रहा है कि बीजेपी का प्रेसीडेंट कोई सवर्ण ही बन रहा है. इससे एक संदेश जाता है कि बीजेपी बड़े पदों पर सवर्णों को प्रतिष्ठित करती है और छोटे पदों को पिछड़े और दलितों में बांट देती है .तावड़े को अध्यक्ष की कुर्सी देने से इस तरह के आरोपों से भी मुक्ति मिल सकेगी.

3-संगठन में उन्होंने अपने आपको साबित किया

बीजेपी महासचिव विनोद तावड़े आज की तारीख में पार्टी के सबसे सक्रिय पदाधिकारियों में से एक हैं. दूसरी पार्टियों के नेताओं को बीजेपी में शामिल कराने का उन्होंने रिकॉर्ड बनाया है. चुनावों के दौरान शायद ही कोई दिन गया हो जब किसी नेता या सेलिब्रिटी को उन्होंने बीजेपी में शामिल न कराया हो. बीजेपी ने इस काम को गंभीरता से लिया था और पार्टी बदलने के लिए तैयार लोगों की तलाश के लिए केंद्रीय और राज्य स्तरीय समितियां बनाई गईं थीं. बिहार प्रभारी के रूप में भी उन्होंने बेहतर काम किया. ऐसे समय में जब पार्टी अन्य राज्यों में अपेक्षित सफलता नहीं पा सकी उन्होंने बिहार में आरजेडी को रोकने का काम बेहतर तरीके से अंजाम दिया. तावड़े को कुछ राज्यों में सरकारें बदलने का काम भी दिया गया. उनके उदारवादी संगठनात्मक कौशल को देखते हुए पार्टी उन्हें लगातार जिम्मेदारियां दे सकती हैं. इसके अलावा सुषमा स्वराज और अरुण जेटली जैसे नेताओं के असमय निधन से भी पार्टी में एक शून्य पैदा हुआ है. तावड़े जैसे नेता उस कमी को भी पूरी करेंगे.

4-संघ परिवार से नजदीकियां

जिस तरह की खबरें आ रही हैं कि पार्टी की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से कुछ दूरी बनी है. संघ प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान इस बात की तस्दीक कर रहे हैं. जाहिर है कि बीजेपी इस विवाद को बढ़ाने की कोशिश नहीं करेगी. इसके लिए एक बेहतर उपाय पार्टी ये कर सकती है कि एक ऐसे व्यक्ति को पार्टी का प्रेसीडेंट बनाए जिसके पार्टी और संघ दोनों जगह रिश्ते बेहतर हों. विनोद तावड़े बीजेपी में संघ परिवार से आए थे. उन्होंने संघ और पार्टी संगठन दोनों के लिए महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों को संभाला हैं.

देखे कौन सुमन शय्या तज कंटक पथ अपनाता है.


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