कहने को तो भारतीय जनता पार्टी संघ अवलम्बित रही है,लेकिन भाजपा अध्यक्ष नड्डा के बयान का निहितार्थ कुछ और ही है.बताते है संघ स्वयं सेवकों को राजनीति में भी भेजता है, पर एक भी उदाहरण नहीं संगठन मंत्री परंपरा को छोड़ किसी को भेजा हो.जो राजनीति में सफलता का नित नया अध्याय लिख रहे वे अपने गाडफाड़र की अनुकम्पा से.
गोरखपुर क्षेत्र में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं जो संघ मूल का केडर हो.विद्यार्थी परिषद पृष्ठ भूमि के महेंद्र नाथ पांडे,हरिश दिवेदी और लल्लू सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश में टिकट प्राप्त करते रहे और अपना सम्मानित स्थान भी बनालिया.पर संघ पृष्ट भूमि के वाराणसी से मोदी जी छोड़ कोई प्रत्याशी नही रहा.
स्थान काल परिस्थितियों को चुनाव में भापने का कार्य संघ करने में या तो फेल रहा या फिर उसका विश्वास ही नहीं रहा,अयोध्या को लेकर अयोध्या वासियों पर सतही कमेंट हो रहा है.आखिर मतदाताओं की नब्ज पकड़ पाने में फेल राजनीति के गुड़ा भाग कर्ता अपनी चिरंतन प्रणाली आत्म चिंतन से दूर या परहेज क्यों करते रहे.बताते है वातानुकूलित कमरों से देश की दशा और दिशा नही तय हो सकती.इसके लिए संगठन की तपती भट्टी चाहिए नकी अपने पराए का भेद करने वाले नेता.
खाटी स्वयंसेवक प्रधानमंत्री को छोड़ कोई पूर्वी उत्तर प्रदेश में उम्मीदवार नहीं बनाया गया,जो अत्यंत गंभीर बात है.सात दशक के अनुभवी प्रचारक रहे भारत और नेपाल में भी की पूछ न होना भी,संगठन की द्ग्धता का भी प्रमुख कारण है.
नौकरशाही,थानाशाही, ब्लाकशाही,तहसीलशाही ,और प्रांतीय पदाधिकारियों का मुख चिढ़ाऊ आचरण असफलता के प्रमुख कारण हैं.बिना उत्कोच काम न होना ही असफलता की नियति है.
अयोध्या को धिक्कारना नियति की स्मिता को नकारना है नीति विशारदो के समझ के परे क्यों होगया अध्योध्यावासी.अपनी पूजी पर अविश्वास और परिस्थिति जन्य निर्णय का अभाव आज अयोध्या को साथी7 लोगों से कोसवा रहा है. आखिर संघ संस्थापक सहित सभी सरसंघचालकों व मुखर्जी व दीनदयाल केमार्ग दर्शकसिद्धांत नीति पर आज वैचारिकी चल रही है ?