डा मुखर्जी और शास्त्री जी की मृत्य के रहस्य से पर्दा कब उठेगा ?

 दो महापुरुषों की रहस्य मई मृत्यु या हत्या की जानकारी चाहता है भारत.एक पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री दूसरे डा श्यामा प्रसाद मुखर्जी .दोनो की कथित मृत्यु के रहस्य का परदा यदि मोदी जी प्रधान मंत्री  रहते नहीं उठा सकते तो फिरकिसी अन्य के बस की बात नहीं.एक का संबंध ताशकंद दूसरा श्री नगर .नीचे का संकलन सोशल मीडिया से है.आज मुखर्जी का बलिदान दिवस है और आज के लिए प्रासंगिक भी. क्योंकि देश का सत्ता धारी दल के प्रेरणा पुंज मुखर्जी का बलिदान दिवस भी मनाया जा रहा है.



शास्त्री जी को जहर दिए जाने के शक में सतारोव की गिरफ्तारी के बारे में 1998 में लन्दन के द टेलीग्राफ में छपी रिपोर्ट के बाद भी भारत में कोई हलचल नहीं हुई।

आरटीआई द्वारा पूछे गए अनसुलझे सवाल :

2009 में आरटीआई कानून आया। लेखक अनुज धर उन दिनों नेताजी सुभाषचंद्र बोस की गुमनामी के बारे में खोजबीन कर रहे थे। उनके मन में शास्त्री जी के मामले का पता लगाने का विचार भी कई सालों से चल रहा था। इसलिए जून 2009 में उन्होंने इस बारे में प्रधानमंत्री कार्यालय में एक आरटीआई लगाई। इस आरटीआई में पूछा गया कि क्या प्रधानमंत्री कार्यालय के पास शास्त्री जी कि मृत्यु से जुड़ी कोई फाइलें या दस्तावेज हैं, जिन्हें अभी तक गोपनीय रखा गया है?

क्या आज तक इस मामले के कोई भी दस्तावेज नष्ट या गायब हुए हैं? शास्त्री जी की मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए क्या सरकार ने कभी कोई जाँच की है? क्या सोवियत सरकार ने शास्त्री जी का पोस्ट मॉर्टम किया था और उससे क्या पता चला? भारत में उनका पोस्ट मॉर्टम क्यों नहीं किया गया, या फिर अगर किया गया था तो उसका क्या परिणाम मिला? किन डॉक्टरों ने शास्त्री जी को मृत घोषित किया था और ऐसा किस तारीख को कितने बजे किया गया? क्या शास्त्री जी के साथ कोई भारतीय डॉक्टर था और क्या उसने अंतिम समय में उनकी जान बचाने का कोई प्रयास किया था?

क्या आया सरकार की तरफ से जवाब :

इसके जवाब में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यालय से जवाब आया कि उनके पास इस बारे में केवल एक दस्तावेज है, लेकिन उसमें जो लिखा है, वह आम जनता को नहीं बताया जा सकता क्योंकि इससे अन्य देशों के साथ भारत के संबंध बिगड़ सकते हैं। शेष सवालों को प्रधानमंत्री कार्यालय ने विदेश मंत्रालय और गृह मंत्रालय के पास भेज दिया। विदेश मंत्रालय ने उसे मॉस्को के भारतीय दूतावास को भेज दिया। दूतावास ने जवाब दिया कि उसकी जानकारी के अनुसार शास्त्री जी का पोस्ट मॉर्टम नहीं हुआ था और दूतावास के पास केवल वही मेडिकल रिपोर्ट उपलब्ध है, जिसे घटनास्थल पर ही डॉ. चुग और कुछ रूसी डॉक्टरों ने तैयार किया था।

उधर गृह मंत्रालय ने कहा कि सरकार ने दिसंबर 1970 में संसद में जो वक्तव्य दिया था, उसमें कुछ सवालों के जवाब मिल सकते हैं। अन्य सवालों को राष्ट्रीय अभिलेखागार और दिल्ली पुलिस को भेज दिया गया। दिल्ली पुलिस ने बताया कि उनके पास कोई जानकारी नहीं है। आंतरिक सुरक्षा विभाग ने कहा कि शायद वीआईपी सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले सुरक्षा विभाग के पास कोई जानकारी हो। लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं आया। तब प्रधानमंत्री कार्यालय के अपीलीय प्राधिकारण में एक अपील दायर की गई। वहाँ से भी यही जवाब आया कि यह गोपनीय जानकारी जाहिर करना देश के हित में नहीं है।

विदेश मंत्रालय में भी एक नई आरटीई दायर :

अब विदेश मंत्रालय में भी एक नई आरटीई दायर की गई। लेकिन विदेश मंत्रालय ने भी यही कहा कि देश हित का ध्यान रखते हुए यह जानकारी नहीं दी जा सकती। केवल 1996 के एक दस्तावेज और शास्त्री जी की मृत्यु के बाद बनाई गई मेडिकल रिपोर्ट की अंग्रेज़ी प्रति दे दी गई।

केन्द्रीय सूचना आयोग में भी इस बारे में एक अपील की गई थी। मुख्य सूचना आयुक्त ने प्रधानमंत्री कार्यालय से उस ‘गोपनीय दस्तावेज’ को सीलबंद लिफाफे में मंगवाया और पढ़ने के बाद यह कहा कि एक अन्य देश हमारे पूर्व प्रधानमंत्री के बारे में झूठी अफवाहें फैला रहा था। उसकी जानकारी इस दस्तावेज में है। उस देश के साथ पहले हमारे संबंध अच्छे नहीं थे, लेकिन अब अच्छे हो गए हैं। अब यह जानकारी सार्वजनिक करने से दोनों देशों के संबंध बिगड़ सकते हैं। इसलिए इसे जारी नहीं किया जा सकता। इसके बाद फिर एक बार यह मामला ठंडा हो गया।

रूसी अखबार में अहमद सतारोव का इंटरव्यू :

लेकिन 2013 में फिर एक बार एक रूसी अखबार में अहमद सतारोव का इंटरव्यू छपा और एक अन्य वेबसाइट ने भी उसे छापा। उस इंटरव्यू में सतारोव ने बताया था कि शास्त्री जी को जहर देने के शक में सिर्फ उसे ही नहीं, बल्कि भारतीय खानसामे मोहम्मद जान को भी गिरफ्तार किया गया था। डॉक्टरों ने रिपोर्ट दी थी कि शास्त्री जी की मौत हार्ट अटैक से हुई थी। लेकिन इस रिपोर्ट के बावजूद भी उन लोगों को गिरफ्तार किया गया, जिससे ऐसा लगता है कि डॉक्टरों की रिपोर्ट में शायद पूरा सच नहीं बताया गया था और रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी को कुछ और शक था, इसलिए इन लोगों को चुपचाप गिरफ्तार करके इनसे पूछताछ की गई थी।

हालांकि उन्हें कुछ ही घंटों बाद छोड़ भी दिया गया और उससे पहले रूसी प्रधानमंत्री ने खुद जेल में जाकर उनसे माफी भी माँगी थी। इसलिए यह पक्का नहीं कहा जा सकता कि कोई गड़बड़ हुई थी या नहीं।

क्या खाने में जहर मिलाना संभव था :

सतारोव का यह भी तर्क था कि खाने में जहर मिलाना किसी के लिए भी संभव नहीं था क्योंकि ऐसे वीआईपी लोगों को कुछ भी परोसे जाने से पहले केजीबी खुद हर बात की जाँच पड़ताल करती थी। शास्त्री जी की मौत के कुछ सालों बाद एक केजीबी अधिकारी ने भी एक इंटरव्यू में माना था कि ताशकंद समझौते के समय केजीबी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के नेताओं की जासूसी कर रही थी और जब शास्त्री जी को हार्ट अटैक आया, तो यह बात भी केजीबी को पता चल गई थी। लेकिन उसने इस बारे में शास्त्री जी के स्टाफ को कोई सूचना नहीं दी क्योंकि ऐसा करने से केजीबी की जासूसी का भेद खुल जाता।

खाने नही थरमस के पानी में थी गड़बड़ी ?

धर्मयुग वाले इंटरव्यू में ललिता जी ने भी यही बात कही थी कि खाने में कोई गड़बड़ी नहीं हो सकती थी। लेकिन उन्हें उस थर्मस पर शक था, जिसका पानी पीने के कुछ ही समय बाद शास्त्री जी ने तबीयत बिगड़ने की शिकायत की थी। उनकी डायरी और थर्मस दोनों ही ताशकंद से कभी वापस नहीं आए, पर उनके चश्मे का डिब्बा घरवालों को लौटाया गया था। उसमें ललिता जी को एक पर्ची छिपी हुई मिली थी, जिसमें शास्त्री जी ने सिर्फ इतना लिखा था कि मेरे साथ धोखा हुआ है।

क्यूं ललिता जी ने पर्ची को निगल लिया था ?

वह पर्ची ललिता जी ने बहुत संभाल कर रखी थी। लेकिन परिवार के सदस्य बताते हैं कि एक दिन कोई बहुत ताकतवर व्यक्ति ललिता जी से मिलने आया। उस मुलाकात के बाद वे बहुत परेशान हो गई थीं और उन्हें अपने परिवार के अन्य जीवित सदस्यों की जान की चिंता हो रही थी। उसी दिन अचानक उन्होंने उस पर्ची को निगल लिया और फिर कभी उस बारे में कोई बात नहीं की। लेकिन 1993 में अपने अंतिम क्षण तक वे यही कहती रहीं कि उनके पति की हत्या हुई थी।

क्या इंद्रा गांधी को डर था सच सामने आने का ?

उनके परिवार के लोग आज भी यही मानते हैं। उनके शक का एक और कारण भी है। शास्त्री जी की मृत्यु के दो चश्मदीद गवाह थे; एक डॉक्टर चुग और दूसरा शास्त्री जी का नौकर रामनाथ। 1975 में इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगाई और हजारों लोगों को प्रताड़ित किया गया। 1977 में जब चुनाव का समय आया, तो लगने लगा था कि कांग्रेस की हार होगी और जनता पार्टी अगर सत्ता में आई तो वह इमरजेंसी में कांग्रेस द्वारा किए गए अत्याचारों की जाँच के साथ-साथ शास्त्री जी की मौत के मामले की भी जाँच करवाएगी।

चश्मदीद गवाह डॉक्टर चुग की मौत :

उसी दौरान एक दिन अचानक खबर आई कि एक ट्रक ने डॉक्टर चुग की कार को बुरी तरह से कुचल दिया है। इस घटना में डॉक्टर चुग, उनकी पत्नी व बेटे की मौत हो गई और उनकी बेटी हमेशा के लिए अपाहिज हो गई। जून 1977 में यह मामला संसद में भी उठा और तब कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योति बसु ने एक नई जानकारी दी। इस घटना में डॉक्टर चुग की कार को एक ट्रक ने पीछे से बुरी तरह टक्कर मारी थी। जब डॉक्टर चुग टक्कर के बाद कार से बाहर निकले, तो उसी ट्रक ने वापस पीछे आकर उन्हें दोबारा टक्कर मारकर कुचल दिया। किसी दुर्घटना में तो ऐसा नहीं होता है, इसलिए यह शक जताया गया कि किसी ने जानबूझकर डॉक्टर चुग की हत्या की है।

दूसरे चश्मदीद गवाह की भी मौत :

दूसरे गवाह रामनाथ के साथ भी एक दुर्घटना हुई। एक दिन वह ललिता जी से मिलने आया था। बातचीत में उसने कहा कि वह अपनी आत्मा पर लदे बोझ को उतार फेंकने जा रहा है। कुछ समय बाद एक बस ने उसे भी टक्कर मार दी। इस दुर्घटना में उसकी दोनों टांगें काटनी पड़ीं। उस दिन के बाद से उसने भी शास्त्री जी के मामले में कभी अपना मुंह नहीं खोला।

शास्त्री जी की मौत के अनसुलझे सवाल :

शास्त्री जी की मौत से जुड़े और भी कई सवाल हैं, जो आज तक अनसुलझे ही हैं। क्या उनकी मृत्यु के पीछे सीआईए का हाथ था? अमरीका को चिंता थी कि शीत युद्ध के उस दौर में पाकिस्तान पूरी तरह चीन के साथ खड़ा था और भारत रूस के पाले में था। आशंका है कि 1965 में पाकिस्तान से युद्ध के बाद शास्त्री जी और डॉ भाभा के बीच बातचीत हुई थी कि भारत को परमाणु बम बनाना चाहिए। इंग्लैण्ड के एक अखबार के लेख में डॉ भाभा ने लिखा भी था कि भारत जल्दी ही ऐसा कर भी सकता है। लेकिन ताशकंद में शास्त्री जी की मृत्यु हो गई और उसके कुछ ही समय बाद एक विमान दुर्घटना में डॉ भाभा का भी निधन हो गया।

सोवियत रूस ने ही उन्हें मरवा दिया था ?

दूसरी आशंका यह भी है कि क्या सोवियत रूस ने ही उन्हें मरवा दिया था? उन दिनों रूस और अमरीका दोनों में विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने की होड़ मची हुई थी। रूस ने भारत और पाकिस्तान को चर्चा के लिए ताशकंद बुलवा तो लिया, लेकिन दोनों ही देशों के नेता समझौते के लिए झुकने को तैयार नहीं थे। भारत को झुकने की जरूरत भी नहीं थी क्योंकि युद्ध में जीत उसी की हुई थी। ऐसे में अगर वार्ता विफल हो जाती, तो रूस की जगहंसाई होती। लेकिन अगर दबाव डलवाकर किसी तरह वह समझौते पर दोनों नेताओं से दस्तखत करवा भी लेता, तो भी अपने देश वापस लौटने के बाद शास्त्री जी अपना इरादा बदल सकते थे और समझौते को लागू करने में आनाकानी कर सकते थे।

लेकिन अगर समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद वापस भारत लौटने से ही पहले ही उनकी मौत हो जाती, तो इसे दोनों देशों में शान्ति के लिए शास्त्री जी का बलिदान कहकर प्रचारित किया जा सकता था और भारत की भावुक जनता से अपील की जा सकती थी कि समझौते को ही शास्त्री जी की अंतिम इच्छा मानकर उसका पालन किया जाए।

सुभाषचंद्र बोस के मामले से क्या संबंध :

एक और थ्योरी यह भी है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस के मामले का भी इससे कोई संबंध है। कई प्रमाणों से यह बात साबित हो चुकी है कि 1945 में विमान दुर्घटना में नेताजी की मौत नहीं हुई थी और वह खबर शायद जापानियों ने विश्व युद्ध के दौरान अमरीका और ब्रिटेन को धोखे में रखने के लिए ही उड़ाई थी क्योंकि उसी विमान में एक वरिष्ठ जापानी सैन्याधिकारी भी मौजूद था। बाद में नेताजी रूस चले गए और कई वर्षों तक गुप्त रूप से साइबेरिया में रहे। इसके बाद वे चुपके से भारत आ गए और गुमनामी बाबा या भगवनजी के नाम से अज्ञातवास में रहने लगे। लेकिन इस दौरान भी वे लगातार रूसी सरकार के नेताओं और भारत के भी कई महत्वपूर्ण लोगों के संपर्क में थे, जिनमें से शास्त्री जी भी एक हैं।

अपनी ताशकंद यात्रा से कुछ ही समय पहले शास्त्री जी ने कलकत्ता जाकर भारत में नेताजी की पहली प्रतिमा का अनावरण किया था और उन्होंने नेताजी के करीबियों से यह भी कहा था कि अपनी ताशकंद यात्रा के दौरान वे नेताजी के बारे में भी पता लगाने का पूरा प्रयास करेंगे। भारत लौटकर शायद वे इस बारे में कोई बड़ा खुलासा करने वाले थे, लेकिन उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो गई। नेहरूजी की अंतिम यात्रा में उमड़ी लाखों की भीड़ को देखकर शास्त्री जी ने उस समय अपने एक सहयोगी से कहा था कि अगर किसी दिन अचानक खबर आ जाए कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस भारत लौट रहे हैं, तो उनके स्वागत के लिए भी इसी तरह लाखों लोग दिल्ली में उमड़ पड़ेंगे।

गांधी परिवार के करीबी पर भी शक :

इंदिरा गांधी और शास्त्री जी के आपसी मतभेदों और राजनैतिक खींचतान के साथ-साथ धर्म तेजा नामक एक व्यक्ति पर संदेह की बात भी उठी थी। नेहरू जी के समय से ही तस्करी और हेराफेरी के कुछ मामलों में उसका नाम उछलता रहा था और इस बात के आरोप भी थे कि नेहरूजी ने उसे कार्यवाही से बचाया भी था, जिस कारण वह नेहरू परिवार का करीबी था। शास्त्री जी उसे सख्त नापसंद करते थे और उनके प्रधानमंत्री काल में उसके लिए कई समस्याएं बढ़ रही थीं। क्या शास्त्री जी को रास्ते से हटाने के लिए किसी ने उसे मोहरा बनाकर कोई चाल चली थी?

ऐसी कई आशंकाएँ और कई प्रमाण हैं, लेकिन इस मामले में अभी तक कोई निश्चित निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। यह शीत युद्ध के तनावपूर्ण वर्षों में, भारत-पाकिस्तान युद्ध के कुछ ही समय बाद, आंतरिक राजनीति की उथल-पुथल के बीच विदेशी धरती पर भारत जैसे देश के प्रधानमंत्री की रहस्यमय मृत्यु का मामला है। इसलिए इसमें केवल भारत नहीं, बल्कि कई सारे देशों के हित अहित जुड़े होने की आशंका है, इसलिए उनकी ख़ुफ़िया एजेंसियों, सरकारों, राजनेताओं आदि इसमें जुड़े हुए हैं। उन देशों के पास ऐसे खुफिया दस्तावेज अभी भी हैं, जो सार्वजानिक नहीं किए गए हैं और भारत सरकार को भी नहीं मिले हैं। इसलिए यह भले ही निश्चित लगता हो कि शास्त्री जी की मृत्यु प्राकृतिक नहीं थी, लेकिन उसका वास्तविक कारण क्या था, यह अभी तक तय नहीं हो सका है।



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