*संविधान तब खतरे में था या आज
*संविधान का गुटका लेकर कोई विद्वान नहीं बन सकता
*मोदी की गलती यही है कि उन्होंने आपातकाल समीक्षा आयोग नही बनाया.
*कितने प्रेस का गला मोदी ने घोंटा,कितने को गिरफ्तार किया
जरा तुलना करिए आपात काल आज है या कल 1975 में था.एक वैश्विक विदूषक लोक सभा में अपने कृत्रिम बौद्धिक अंकार का प्रदर्शन करता है और जमूरे तालियां बजा कर वाह वाही लेने नहीं लूटने का प्रयास कर रहे हैं.
अगर मोदी की जगह कोई इनका प्रधानमंत्री होता तो जाने क्या क्या कर डाले होते.यह पहला अवसर है जब जिमेदार विदूषक जिम्मेदार पद पर बैठ गैर जिम्मेदार ज्ञान बघारने को आतुर है .पूरी मंडली वाह राहुल कह कर आत्म गदगद है.
ये तो वही हुआ
ऊटों की शादी में गघे गीत गा रहे थे,दोनो एक दूसरे की प्रशंशा कर रहे थे,वह क्या रूप है क्या लय है.तुलनात्मक अध्ययन करिए अघोषित आपातकाल और घोषित आपात काल1975,में क्या अंतर है.
हाँ बिल्कुल साहब, ऐसी एमरजेंसी है जैसी पहले कभी रही ही नहीं। देखिए ना कोई PM को गाली नहीं दे सकता, विदेश के हाथों बिक कर देश में उपद्रव नहीं फैला सकता, देश के सेना प्रमुख को गली का गुंडा नहीं कह सकता, किसी भी सड़क वगैरा को बंद नहीं कर सकता, "भारत तेरे टुकड़े होंगे" के नारे नहीं लगा सकता, "हिंदुस्तान की कब्र खुदेगी" के नारे नहीं लगा सकता, देश के झंडे का अपमान नहीं कर सकता, चीन पाक-शैतान के गुण नहीं गा सकता, वहाँ से मोटी मोटी रकम नहीं ले सकता, देश की सेना को झूठी नहीं बता सकता, किसी लड़की द्वारा "मना करने" पर उसकी सरे आम हत्या नहीं कर सकता, यहाँ तक कि विदेशी राष्ट्राध्यक्ष [फ्रांस] के खिलाफ सड़कों पर बदतमीजी भी नहीं कर सकता, देश को नीचा दिखाने के लिए, सेना का मनोबल गिराने के लिए सरे आम झूठ नहीं बोल सकता। और भी बहोत से उदाहरण हैं एमरजेंसी के।
आहा, आजादी तो 1975 से 1977 तक ही थी। हाय, वो भी क्या हसीन दिन थे जब कभी अखबारों की बिजली नहीं काटी गई, किसी 14–15 साल के लड़के की जबर्दस्ती नसबंदी नहीं की गई, किसी विपक्ष के नेता को जेल मे नहीं ठूँसा गया, किसी के बोलने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई वगैरा वगैरा और अगर ऐसा किया भी गया तो वह "आजादी" के तहत किया गया था क्योंकि "आजादी" थी ऐसा करने की। आज कोई ऐसी आजादी दिखा सकता है क्या?
और हाँ एक असली आजादी 1984 में भी देखी थी जब किसी कांग्रेसी पिलूरे को कोई सिख मारने की पूरी आजादी दे गई थी और देश का PM हंस हंस कर कह रहा था कि "बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है"। उसी PM को देश की नौसेना के जहाजों में अपने ससुरालियों को, सगे संबंधियों को घुमाने की आजादी थी।
वास्तव में असली आजादी और खुला वातावरण तो वही था। अब क्या खाक आजादी है? एक और आजादी 2004 से 2014 के दौरान भी देखी थी जब हर कांग्रेसी को देश लूटने की पूरी आजादी थी बस केवल एक शर्त थी कि जायज हिस्सा "मैडम" के पास पहुँच जाना चाहिए और उसी दौरान भारत से रोजाना जहाजों मे भर भर कर कीमती प्राचीन धरोहर इटली भेजी जाती थी, रोजाना जहाज लद लद कर जाते थे ।
एक वो भी आजादी थी जब मंत्रियों के समूह द्वारा बनाए गए मजमून को सरे आम फाड़ कर फेंक दिया जाता था। सुपर प्राइम मिनिस्टर खुद द्वारा नियुक्त किए गए "पालतू" PM को धमकाने की आजादी थी। राष्ट्रपति को नौसेना के जहाजों में पिकनिक करने की आजादी थी, उसी राष्ट्रपति को पद छोडने के समय राष्ट्रपति भवन में से अब कुछ समेट कर अपने घर ले जाने की आजादी थी। - मतलब हर तरफ "पूरी आजादी ही आजादी" थी।