जो इह लोक में दान नहीं करता उसे उह लोक में अपने ही शरीर का मांस खाना पड़ता है.

 राजा श्वेत की कथा: दान न करने का परिणाम खुद के शरीर को खाना


श्रीराम ने महर्षि अगस्त्य के आश्रम में पहुँचकर, शम्बूक वध का समाचार सुनाया, जिससे महर्षि अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रीराम को विश्‍वकर्मा द्वारा दिया हुआ एक दिव्य आभूषण अर्पित किया। श्रीराम ने उस अद्भुत आभूषण की कथा जानने की उत्सुकता प्रकट की, और महर्षि अगस्त्य ने उन्हें राजा श्वेत की कहानी सुनाई।

महर्षि अगस्त्य का तपस्वी वन :
महर्षि अगस्त्य ने बताया कि प्राचीन काल में एक विशाल वन था, जो चारों ओर सौ योजन तक फैला हुआ था। इस वन में कोई प्राणी, पशु, पक्षी नहीं रहते थे। वन में एक मनोहर सरोवर था, जिसके चारों ओर चक्कर लगाने पर महर्षि को एक पुराना विचित्र आश्रम दिखाई दिया। वहाँ कोई तपस्वी नहीं था, और महर्षि ने वहाँ रात्री विश्राम किया। प्रातःकाल स्नानादि के लिए सरोवर की ओर जाते समय महर्षि को सरोवर के तट पर एक हृष्ट-पुष्ट निर्मल शव दिखाई दिया।

दिव्य विमान और देवता का आगमन :
थोड़ी देर बाद, वहाँ एक दिव्य विमान उतरा, जिस पर एक सुन्दर देवता विराजमान थे। उनके चारों ओर सुन्दर वस्त्राभूषणों से अलंकृत अनेक अप्सराएँ बैठी थीं। देवता ने विमान से उतर कर शव को खाकर, सरोवर में जाकर हाथ मुँह धोया। महर्षि ने उस देवता से पूछा कि यह घृणित कार्य करने का रहस्य क्या है।

राजा श्वेत का परिचय :
देवता ने महर्षि को बताया कि वह विदर्भ देश के पराक्रमी राजा सुदेव के पुत्र थे। राजा सुदेव के दो पुत्र थे: श्वेत और सुरथ। पिता की मृत्यु के बाद, श्वेत राजा बने और धर्मानुकूल राज्य करने लगे। जब श्वेत को अपनी मृत्यु की तिथि का पता चला, तो उन्होंने सुरथ को राज्य देकर वन में तपस्या करने का निश्चय किया।

ब्रह्मलोक की प्राप्ति और दान का अभाव :
दीर्घकाल तक तपस्या करने के बाद, श्वेत ने ब्रह्मलोक प्राप्त किया, लेकिन अपनी भूख प्यास पर विजय प्राप्त नहीं कर सके। ब्रह्माजी ने उन्हें बताया कि उन्होंने कभी किसी को कोई दान नहीं दिया, केवल अपने ही शरीर का पोषण किया। इसलिए, उन्हें मृत्युलोक में जाकर अपने ही शरीर का नित्य भोजन करने का आदेश दिया गया।

महर्षि अगस्त्य के आगमन का महत्त्व :
ब्रह्माजी ने कहा कि जब महर्षि अगस्त्य उस वन में पधारेंगे, तभी श्वेत को भूख प्यास से छुटकारा मिलेगा। महर्षि अगस्त्य के दर्शन से, श्वेत को उद्धार प्राप्त हुआ और वह दिव्य आभूषण महर्षि को अर्पित किया। इस आभूषण ने महर्षि को दिव्य वस्त्र, स्वर्ण, और धन प्रदान किया।

कथा का संदेश :
राजा श्वेत की कथा से यह संदेश मिलता है कि दान का महत्त्व अत्यंत महत्वपूर्ण है। केवल स्वयं के पोषण और तपस्या से ही व्यक्ति को पूर्णता नहीं मिलती। दान और परोपकार से ही सच्ची तृप्ति और मोक्ष प्राप्त होता है। इस कथा से यह भी स्पष्ट होता है कि धर्म और दान से ही जीवन का वास्तविक अर्थ समझा जा सकता है।

राजेंद्र नाथ तिवारी

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