राष्ट्रवाद राजनीतिक धर्म है,और मोदी युग प्रवर्तक ,राजेंद्र नाथ तिवारी



*राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद राजनीतिक धर्म है



राष्ट्रवाद राजनीतिक धर्म है जो लोगों के दिलों और स्मरण शक्ति को झकझोरता है और उन्हें सेवा तथा आत्म बलिदान के लिए इस प्रकार प्रोत्साहित करता है जैसे की हाल ही में कोई दिनों में किसी भी विशुद्ध धार्मिक आंदोलन ने नहीं किया है .देश में राष्ट्रवाद के विकास में स्वामी विवेकानंद का योगदान किसी अन्य व्यक्ति से काम नहीं रहा .उनके विचारों और कार्यों से सभी तरह के राष्ट्रवादियों को अत्यधिक प्रभावित किया है .उन्होंने विदेशी शासन से मुक्ति के लिए अच्छा प्रयास करने वाले लाखों भारतीयों के मन में राष्ट्रवाद की भावना जगाई और दृढ़ता प्रदान किए.

वे आध्यात्मिक ,वैज्ञानिक और आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत के विकास को लेकर बेहद संवेदनशील और दृढ़ रहे ,वह भारत से आगे और हाथ पड़कर किसानों को झोपड़ियां के बाहर निकाल, मछुआरों , कर्मकारों ,सफाई कर्मियों की झोपड़ियां से उसे भारत को बाहर निकलने का शंख नाद भी किया.

उन्होंने आह्वान किया व्यापारी,पंसारी को उनकी दुकान से निकलने दो .बाजार के कारखाने से निकलने दो .

भारत को उठाना है तो गरीबों का पेट भरना होगा. शिक्षा का प्रसार करना है पूर्वा ग्रहित बुराई को हटाना है तो इसके लिए रोटी औरऔर अधिकार के अधिक अवसर चाहिए .

जब तक भारत के लोगों को एक बार फिर अच्छी तरह से शिक्षित और पोषित नहीं किया जाएगा ,उनके बेहतर देखभाल नहीं की जाएगी, जब तक किसी भी तरह से राजनीति का कोई लाभ नहीं होगा .अध्यात्म संवाद, देशभक्ति और धर्म में विवेकानंद के राष्ट्रवाद नींव राखी .

उनका मानना था कि भारत अपने आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शोर्य को धारण करके ही उत्थान कर सकता है .उन्होंने राष्ट्रीय एकता, निस्वार्थ भाव और मानवीय गरिमा की भावना के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता पर बल दिया .

अभिवादन शिलस्य नित्यम व्बारीधोप सेविन : चत्तवारी तत्र वेधनते आयु:विद्या यशो बलम 


की बात को उन्होंने स्वीकार कर विवेकानंद हमेशा यह मानते थे कि भारतीय राष्ट्रवाद का आधार आध्यात्मिक है. उनके अनुसार धर्म और आध्यात्मिक भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है .भारत का मूल वैभव ज्ञान की आध्यात्मिक ऊर्जा में निहित है ,उसे पुनर्स्थापित करके उन्होंने जनता में नई आशा और प्रेरणा का संचार किया .साहित्यिक ,सांस्कृतिक और क्रांतिकारी स्वामी विवेकानंद से विशेष रूप से प्रेरणा लेते थे .

नेताजी सुभाष चंद्र बोस , श्री अरविंदवन विवेकानंद के बृहद देशभक्ति से प्रेरणा लिए थे .श्री अरविंद घोष ने कहा था कि स्वामी विवेकानंद का काम पूरा करने आए हैं ,श्री अरविंद ने उनके आध्यात्मिक ऋण को स्वीकार किया जो उन्होंने लिखा था.

यह भी याद रखें कि हम रामकृष्ण के वंशज हैं मेरे लिए वह साक्षात रामकृष्ण हैं, जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से आकर मुझे सबसे पहले इस योग को की प्रवेश करा या,अलीपुर जेल में विवेकानंद ने मुझे इस बात की नींव प्रदान की जो हमारे साधना का आधार है .उन्होंने जाति व्यवस्था ,पर्दा व्यवस्था ,स्वच्छता बाल विवाह जैसी बुराइयों को दूर करने के लिए भी काम किया .भारतीय राष्ट्रवाद के लिए सबसे बड़ी बाधक कु प्रथाएं ही थी .

शिक्षा से लेकर सभी सामाजिक धार्मिक संस्थाओं रामबाण थीं,वह न केवल राष्ट्रवाद बल्कि अंतरराष्ट्रीयता में भी विश्वास रखते थे. शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने पूरे दुनिया के सार्वभौमिक भाईचारे हिंदू धर्मआदि का पाठ पढ़ाया .सामाजिक रूप से महिला नेताओं ने भारतीय महिलाओं की मुक्ति के लिए बढ़ावा दिया और राष्ट्रीय राजनीति में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित किया .बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास देवी चौधरानी जिसमें एक महिला के संघर्ष की गौरव गाथा है.ने सैकड़ो को प्रेरित भी किया.

अंग्रेजों ने छोटे से वर्ग को शिक्षित करने की योजना बनाई थी इसमें रक्त और रंग में तो भारतीय थे पर विवेक और बुद्धि में अंग्रेज थे .इसलिए नैतिकता और भारतीय शिक्षा पद्धति में गिरावट स्वाभाविक थी .इस प्रकार भारतीय शिक्षा पद्धति जिसमें तक्षशिला नालंदा जैसे प्राचीन विश्वविद्यालय शिक्षा के वैभव के प्रमाण थे .उनको समाप्त करने का प्रयास किया. भारतीय पुरातत्व, सर्वेक्षण में पाया कि नालंदा में पढ़ाई जाने वाले विषयों में अर्थशास्त्र, व्याकरण, तर्कशास्त्र,खगोल विज्ञान, तत्व मीमांसा ,चिकित्सा ,दर्शन, गणित भी शामिल थे भारत में गुरुकुल परंपरा भी विकसित हुई जो एक आवासीय विद्यालय की प्रणाली थी जो वैदिक दौर से चली आ रही थी .

.इसीलिए उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के बारे में कहा है कि धर्म और व्यावहारिकता जीवन अलग नहीं है. संन्यास लेना जीवन का परित्याग नहीं है .वास्तविक भावना अकेले काम करने के बजाय देश को परिवार मानकर साथ काम करने में होनी चाहिए .इसके अगला कदम मानवता की सेवा और फिर भगवान की सेवा नर सेवा नारायण होनी चाहिए .

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सीख लेकर नर सेवा नारायण सेवा और अंतिम व्यक्ति के उद्धार की जो योजना बनाई है वह भारत को वैश्विक महाशक्ति की ओर ले जाएगा.इसीलिए कहते है जहा मोदी है वहीं राष्ट्रवाद है , जहां राष्ट्रवाद है वहीं से भारत की महाशक्ति का रास्ता आगे की ओर जाएगा.

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