विदेशी कंपनियों पर क्यों नहीं जाती नजर?मिलार्ड?बताते हैं कि सबके लिए कानून समान है?

 सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापन मामले में पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ काफी सख्त टिप्पणियां कीं। शीर्ष अदालत ने यहां तक कहा कि आपकी धज्जियां उड़ा देंगे। इससे पहले योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के एमडी आचार्य बालकृष्ण ने हलफनामा देकर माफी मांग ली थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया और कहा कि 'हम इतने उदार नहीं होना चाहते।' कोर्ट ने कहा कि उन्होंने ऐसा तब किया जब गलती पकड़ ली गई है। सुप्रीम कोर्ट अब उन्हें दंडित करने का मन बना चुका है। सुनवाई करने वाले जजों जस्टिस जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने सख्त लहजे में कहा कि आरोपियों को अंडरटेकिंग के उल्लंघन के मामले में कार्रवाई का सामना करना ही होगा।

पतंजलि केस में सोशल मीडिया पर हंगामा



उधर, कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पतंजलि और उसकी सब्सिडियरी दिव्य फार्मा के खिलाफ लीगल एक्शन लेने में लापरवाही के मामले में उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी के प्रति कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने 2018 से अब तक राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी, हरिद्वार में तैनात रहे जॉइंट डायरेक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा है। सुप्रीम कोर्ट के इतने कड़े रवैये पर सोशल मीडिया में खूब चर्चा हो रही है। एक वर्ग इंडियन मेडिकल असोसिएशन (IMA) के इरादे पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है आईएमए एक मामले में दोहरा रवैया अपना रहा है। उसे पतंजलि के विज्ञापन पर तो ऐतराज है, लेकिन क्रिश्चियन मिशिनरियों और विदेशी कंपनियों के भ्रामक दावों पर बिल्कुल चुप रहता है।

अश्विनी उपाध्याय ने कहा- कानून ही गलत है

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने जिन कानूनों का हवाला देकर दरअसल उनमें ही खामी है। उन्होंने कहा कि कानून 1954 में ही बना है जिसमें कहा गया है कि कुछ बीमारियों के इलाज का दावा कोई नहीं कर सकता। वो आगे कहते हैं कि इंडियन मेडिकल असोसिएशन ने इतनी गलती है कि उसने भेदभाव किया है। जिस पैमाने पर पतंजलि और बाबा रामदेव गलत हैं, उन्हीं पैमानों पर ईसाई संस्थाओं को भी घेरा जाना चाहिए। अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि इन्हीं बीमारियों को ठीक करने के नाम पर धर्मांतरण किया जा रहा है, लेकिन वहां न आईएमए की नजर जाती है और ना किसी कोर्ट की।

विदेशी कंपनियों पर क्यों नहीं जाती नजर?

ट्विटर हैंडल @Incognito_qfs तस्वीरों के साथ लिखता है, 'स्टिंग जहर के समान है, लेकिन मार्केटिंग 'एनर्जी ड्रिंक' के तौर पर होती है... बच्चों को इसका एक बूंद नहीं पीना चाहिए, लेकिन वो पीते हैं। आईएमए ने कभी स्टिंग की मालिकाना कंपनी पेप्सी के खिलाफ शिकायत नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे कभी नहीं कहा कि तेरी धज्जियां उड़ा दूंगा।'

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