कलियुग का महा शक्ति शाली महामंत्र ,जो भक्तो शक्ति शक्ति,भक्ति,साहस और सम्बल देता है.

 महामृत्युंजय साधना का चमत्कार


 महाकाल का महा शक्ति शाली मंत्र.प्रत्येक प्रयोग कर्ता के विघ्न हरता   हैं, मृत्युंजय  महादेव. विभिन्न प्रयोजनों में अनिष्टता के मान से 1 करोड़ 24 लाख, सवा लाख, दस हजार या एक हजार महामृत्युंजय जप करने का विधान उपलब्ध होता है। मंत्र दिखने में जरूर छोटा दिखाई देता है, किन्तु प्रभाव में अत्यंत चमत्कारी है।

देवता मंत्रों के अधीन होते हैं- मंत्रधीनास्तु देवताः। मंत्रों से देवता प्रसन्न होते हैं। मंत्र से अनिष्टकारी योगों एवं असाध्य रोगों का नाश होता है तथा सिद्धियों की प्राप्ति भी होती है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, तैत्तिरीय संहिता एवं निरुवतादि मंत्र शास्त्रीय ग्रंथों में त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्द्धनम्‌ उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। उक्त मंत्र मृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध है।

शिवपुराण में सतीखण्ड में इस मंत्र को 'सर्वोत्तम' महामंत्र' की संज्ञान से विभूषित किया गया है- मृत संजीवनी मंत्रों मम सर्वोत्तम स्मृतः। इस मंत्र को शुक्राचार्य द्वारा आराधित 'मृतसंजीवनी विद्या' के नाम से भी जाना जाता है। नारायणणोपनिषद् एवं मंत्र सार में- मृत्युर्विनिर्जितो यस्मात तस्मान्यमृत्युंजय स्मतः अर्थात्‌ मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के कारण इन मंत्र योगों को 'मृत्युंजय' कहा जाता है। सामान्यतः मंत्र तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, तांत्रिक, एवं शाबरी। इनमें वैदिक मंत्र शीघ्र फल देने वाले त्र्यम्बक मंत्र भी वैदिक मंत्र हैं।


मृत्युंजय जप, प्रकार एवं प्रयोगविधि का मंत्र महोदधि, मंत्र महार्णव, शारदातिक, मृत्युंजय कल्प एवं तांत्र, तंत्रसार, पुराण आदि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में विशिष्टता से उल्लेख है। मृत्युंजय मंत्र तीन प्रकार के हैं- पहला मंत्र और महामृत्युंजय मंत्र। पहला मंत्र तीन व्यह्यति- भूर्भुवः स्वः से सम्पुटित होने के कारण मृत्युंजय, दूसरा ॐ हौं जूं सः (त्रिबीज) और भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) से सम्पुटित होने के कारण 'मृतसंजीवनी' तथा उपर्युक्त हौं जूं सः (त्रिबीज) तथा भूर्भुवः स्वः (तीन व्याह्यतियों) के प्रत्येक अक्षर के प्रारंभ में ॐ का सम्पुट लगाया जाता है। इसे ही शुक्राचार्य द्वारा आराधित महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।

लेखक.. कौटिल्य, वशिष्ठ नगर

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