नई दिल्ली : जज की सोच अगर पुर्वग्रही है तो परिणाम जज कोई ही नहीं पूरी व्यव व्यवस्था को भोगने होंगे.कोर्ट हमेशा कुछ ज्यादा ही शांत कर रहना ही चाहिए.ही कोर्ट में भ्रामक विज्ञापन मामले की सुनवाई चल रही है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ कर रही है। मामले की पिछली सुनवाई में योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक (एमडी) आचार्य बालकृष्ण द्वारा बिना शर्त माफी मांगने के लिए दायर किए गए हलफनामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस अमानुल्लाह ने कड़ी टिप्पणी की। जस्टिस अमानुल्लाह ने इस मामले पर निष्क्रियता बरतने के लिए उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के प्रति भी कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि हम आपकी बखिया उधेड़ देंगे। अब इस कड़ी टिप्पणी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व सीजेआई, जजों ने नाराजगी जताई है।
अनेक न्याय विदो व पूर्व जजों ने न्यायमूर्ति अनामुल्ला के बयान पर चिंता व्यक्त करते तीन साल बाद, रविचंद्रन मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायिक कार्यालय अनिवार्य रूप से एक सार्वजनिक ट्रस्ट है। इसलिए, समाज को यह उम्मीद करने का अधिकार है कि एक जज उच्च निष्ठावान, ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए। उसमें नैतिक शक्ति, नैतिकता होनी चाहिए। उसे भ्रष्ट या द्वेषपूर्ण प्रभावों के प्रति दृढ़ता और अभेद्य होना चाहिए। उसे न्यायिक आचरण में औचित्य के सबसे सटीक मानकों को बनाए रखना होगा। कोई भी आचरण जो अदालत की अखंडता और निष्पक्षता में जनता के विश्वास को कमजोर करता है, न्यायिक प्रक्रिया की प्रभावकारिता के लिए हानिकारक होगा। इसलिए, समाज एक जज से आचरण और ईमानदारी के उच्च मानकों की अपेक्षा करता है। अलिखित आचार संहिता न्यायिक अधिकारियों के लिए एक उच्च न्यायिक अधिकारी से अपेक्षित उच्च नैतिक या नैतिक मानकों का अनुकरण करने और उन्हें अपनाने के लिए अनिवार्य है। ये आचरण के पूर्ण मानक के रूप में जो जनता का विश्वास पैदा करेगा। ये न केवल जज की नहीं बल्कि अदालत के साथ ही न्यायिक कार्यालय को गरिमा प्रदान करेगा और सार्वजनिक छवि को बढ़ाएगा। कहा है अनामुला का बयान न्याय हित व देश हित में नहीं है.