लखनऊ
देश के बाँटवरे में इस पंथ का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। मोहम्मद अली ज़िन्ना इसी मत को मानने वाला शिया मुस्लिम था। इसके पूर्वज पीराना सूफियों के प्रभाव में आकर सर्वप्रथम अर्धमुस्लिम बनें थें फिर भविष्य में जिन्ना पूर्ण मुस्लिम बनकर निकला।
स्वामीनारायण उर्फ निलकंठवर्णी उर्फ सहजानंद का जब गुजरात में आगमन हुआ था, तब बड़ी आबादी इसी पंथ को मानने वाली थी। निलकंठवर्णी के कारण यही आबादी बाद में पुनः हिन्दू बनी थी। अर्धमुस्लिम बनने के कारण इनमें सगोत्रीय विवाह जैसे अनेक मलेक्ष संस्कार आ गए थें जिनसे इनको निकालकर सभ्य बनाने वाले निलकंठवर्णी ही हैं।
इसमें कोई अतिश्योक्ति नही है कि यह न होते तो गुजरात के आधी आबादी का खतना हो गया होता और आज सिंध के साथ वर्तमान गुजरात भी पकिस्तान का हिस्सा होता।
स्वामीनारायण के नाम में बप्स द्वारा जो सिद्धांत प्रचारित किया जा रहा है कि यह त्रिदेवों से बड़े हैं और यह अक्षर ब्रम्ह हैं। इसका पुरजोर विरोध रहेगा पर विरोध का मतलब यह नही कि हम सबको नीचा दिखाएं और फिर ऐसा करना ही क्यों इनके अनुयायियों में जो विकृति है उस विकृति को दूर करो भला इनको मानने वाले समाज को खुद से दूर करके क्या लाभ होगा।
अगर सबसे लड़ोगे तो फिर आपके पास बचेगा ही कौन। जहाँ तक बात है स्वामीनारायण की तो यह खुद रामानुजी थें और आद्यगुरु रामानंद जी इनके दादागुरु थें। पीराना पंथ के विरुद्ध गुजरात में रामानुज सम्प्रदाय के ही निर्मल दास बाबा भी कार्य करे थें।
मेरा सिर्फ इतना कहना है कि विरोध करो पर अंधविरोध नही, जब एक बड़ा तबका भ्रम में हो तो उसे धीरे धीरे समझा बुझाकर बच्चों की भाँति सही मार्ग में लाया जाता है।