"अति सर्वत्र वर्जेयत" यही मुख्तार ने नहीं स्वीकारा
साल था 2005, भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को दिन-दहाड़े उसरपट्टी पर AK-47 से भून दिया गया था। तकरीबन 400 गोलियां चली थीं उस गैंग वार में जिसमें कृष्णानंद समेत 7 लोग मारे गए। राय के शरीर से 67 गोलियां निकाली थीं। मुख़्तार अंसारी उस गैंगवार का फ़ोन पर लाइव अपडेट ले रहा था।
मुख़्तार के लोगों ने कृष्णानंद राय की चुटिया काट ली थी। मुख्तार का अंत इतने शीघ्र होजाएगा यह विश्वास नही था.उसके पाप का घड़ा अभी फूटना नहीं था, पर नियति को जो मंजूर था वही होगा,. गाजीपुर वाराणसी में समा नंतर सरकार चलाने वाले से ज्यादा दोषी वे हैं जिन्होंने मुख्तार को मुख्तार बनने दिया.
मुख्तार अंसारी एक माफ़िया राजनेता,
कृष्णानंद राय जिसे चार सौ राउंड गोलियों से मुख्तार ने मारा
जिस मुख्तार को आप उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का एक माफ़िया समझ रहे हैं वो भारत के सबसे ताकतवर इस्लामी राजनीतिक घरानों में से एक का है..... ऐसे घराने जिनको सत्ता में कौनसी पार्टी बैठी है इससे फ़र्क़। नहीं पड़ता ये समानांतर सत्ता चलाते हैंऔर इनकी सिस्टम पर पकड़ इतनी मजबूत है के अदालतों से लेकर सचिवालयों तक को मैनेज कर लेते हैं. इसकी कहानी सुरु होती है आज़ादी से भी पहले से 1906 में ढाका के नवाब_ख्वाजा_सलिमुल्ला ने एक राजनीतिक पार्टी बनाई मुस्लिम लीगकी शुरुआत में इसका उद्देश्य अलग इस्लामिक राष्ट्र बिल्कुल नहीं था बल्कि ये मुस्लिम लीग पार्टी चाहती थी ब्रिटिश राज के अंतर्गत ही भारत की रियासतों को ऑटोनोमी मिले मोटा मोटा आपको कंहुँ तो आज का पाकिस्तान, बांग्लादेश, जूनागढ़, भोपाल, रामपुर, बहावलपुर, अवध, हैदराबाद जैसी कई रियासतें और जागीरें भारत के भीतर ही इस्लामी झंडे के साथ अंग्रेज़ सरपरस्ती में राज करें.... यानी कोई चार छह दर्ज़न पाकिस्तान भारत के भीतर ही हो.
इसी मुस्लिम लीग में हिंदी पट्टी के कई बड़े मुस्लिम खानदान भी जुड़े और उनमें से ही एक खानदान का युवा डॉक्टर था मुख्तार अहमद अंसारी......
इसके हनक का अंदाज़ा इससे लगाइये के ये बंदा तब की कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनो का अध्यक्ष बना.1 947 में आज़ादी के वक़्त सिर्फ देश नहीं बटा बल्कि देश के बटवारे की मुख्य सूत्रधार मुस्लिम लीग भी बटी पाकिस्तान मुस्लिम लीग, इंडियन मुस्लिम लीग और आगे चलकर बांग्लादेश में अवामीलीग.
मुस्लिम लीग के कई बड़े नेता जिन्होंने पाकिस्तान के लिए जी जान लगाई थी... पाकिस्तान गए नहीं.... और उन्हीं में से एक था मुख्तार अहमद अंसारी का कुनबा जो अपनी पुश्तेनी जगह गाज़ीपुर में ही रहा..... खानदान के कुछ लोग पाकिस्तान भी गए पर ज्यादातर यहीं रहे और राजनीतिक_छांव ढूंढी कांग्रेस में.....
फिर शुरू हुआ राजनीतिक प्रभाव से देश के बड़े पदों तक पहुंचने का इनका सिलसिला
फरीदुल हक़ अंसारी दो बार राज्यसभा सदस्य,
शौकतुल्लाह अंसारी लोकसभा सदस्य,
और हामिद अंसारी भारत का उपराष्ट्रपति ये सब इसी खानदान के सदस्य हैं.
और इसी खानदान से है ये माफ़िया डॉन मुख्तार अंसारी जिसका नाम उसके दादा के नाम पर ही रखा गया.
कई विधायक, सांसद और अन्य बड़े पदों पर काबिज़ ये कुनबा भारत की कोई बड़ी संस्थान नहीं जहाँ घुसपैठ न रखता हो, जज, अधिकारी, राजनेता. और बिकाऊ लोगों की भीड़ सब है इनके पास.
कृष्णा नंद राय की खुली हत्या के बाद भी मुख्तार कैसे बचा, जेल में किसी भी पार्टी के राज में उसपर कोई फ़र्क़ क्यों नहीं पड़ता, और आज भी पूर्वांचल में वो किस ताक़त के बल पर ताल ठोंकता है आप समझ सकते हैं.
असंख्यों का प्रत्यक्ष परोक्ष समर्थन भी था मुख्तार को.कुछ सरकारें मुख्तार की मुख्तारी से ही चलती थी.पर आदमी से ज्यादा समय बलवान हे, यहीं मुख्तार ने नहीं समझा.