*जीव जगत के साधक देवरहा बाबा।
बस्ती जनपद के ही उमरिया गांव के सनातनी परम्परा के ब्रह्म योगी देवरहा बाबा को कौन नहीं जानता। यह नाम परिचय का मोहताज नही | यद्यपि बहुत समय उनका बस्ती में नहीं बीता पर आत्मियो की स्मृतियां आज भी जीवन है।विश्वास और चमत्कार की परणिति का नाम रहा देवरहा बाबा।
आज पढ़ें इन्ही से सम्बन्धित घटी चमत्कारी दो घटनाएं |
सपने में किया प्रवेश !
पाण्डेय नर्मदेश्वर सहाय , एक ख्यातिलब्ध साहित्यकार और वकील हीं नहीं थे वरन एकांत साधक भी थे , इसे कम लोग हीं जानते हैं | वे परमयोगी श्री श्यामाचरण लाहिडी महाशय की शिष्य परम्परा में श्री वनमाली बनर्जी ( भागलपुर ) से दीक्षित थे |एक दिन वे बाबा के श्री चरणों में मंच के निकट बैठे थे | अचानक बाबा ने प्रश्न किया – “ अरे भक्त कुछ करते हो ?”
- जी हाँ प्रभु थोडा बहुत |
- अपनी क्रिया दिखा सकते हो ?
- क्षमा करें प्रभु ! गुरु की आज्ञा है कि क्रियाएं गुप्त हैं ,परिधि के बाहर के लोगों में इन्हें नहीं दिखाना |
बाबा हँस कर चुप हो गये सहज हीं और और्व बातें होने लगी | कुछ देर बाद बाबा ने प्रशाद दे कर सबकी छुट्टी कर दी | सहाय जी भावुक व्यक्ति थे | उनका मन दुविधा में पड़ा रहा | घर पर आ कर वे खा पी कर सो गये |
स्वप्ने में हीं उन्होंने देखा कि वे अपने मकान के दूसरी मंजिल पर स्थित एक कमरे में बैठे हैं | सामने वनमाली बनर्जी बैठे हैं और योगाभ्यास करा रहे हैं |
इसी बिच सहाय जी के पुत्र ने आ कर सूचना दी की एक महात्मा पधारे हैं | बनर्जी साहब ने कहा “ सादर लिवा लाओ |” थोड़ी देर बाद देवरहा बाबा उपर आये | वनमाली बनर्जी बड़े प्रेम से उन्हें मिले और दोनों अगल बगल बैठ गये | सहाय जी की योगक्रिया थोड़ी देर के लिए रूक गयी | वे दुविधा में पड़े रहे | इसी समय उनके गुरुदेव बनर्जी साहब ने कहा – “ अरे रुके क्यों हो ? तुम दिखाओ | इनमे और मुझमे कोई भेद न समझना | ”
गुरुदेव की आज्ञा से सभी क्रियाओं की पुनरावृति सहाय जी ने की | क्रिया समाप्त होते हीं नींद खुल गयी | सहाय जी स्वप्न का मर्म समझ गये | उन्हें बड़ा मानसिक क्लेश हुआ | देवरहा बाबा को उन्होंने परिधि से बाहर क्यों माना | फिर उन्हें नींद नहीं आई | वे प्रात: हीं उद्विग्न मन से देवरहा बाबा के पास जा कर उपस्थित हुए |
बाबा स्नान करके ,कुश की आसनी लपेटे बड़ी तेजी से गंगा की धार से निकले और मंच पर चढ़ गये | थोड़ी देर बाद कुटिया से बाहर आये |
सहाय जी ने साश्रुनयन निवेदन किया – “ महराज मुझे क्षमा करें | कृपा याचना के लिए आया हूँ | मुझसे बहुत बड़ा अपराध हुआ है |
- अरे भक्त इस प्रकार चंचल क्यों होते हो |
- मैं अपनी क्रिया दिखाने आया हूँ महराज !
- मैं तो देख चुका भक्त ! चिंता मंत करो | कष्ट करने की जरूरत नहीं |
और सहाय जी सन्न रह गये | तो क्या सचमुच रात के स्वप्न में प्रभु दरी बाबा ने प्रभु श्री वनमाली बनर्जी के साथ सहाय जी के क्रियाओं अवलोकन किया था ? तभी तो मुस्कान के साथ उन्होंने कहा था –“मैं तो देख चुका |”
इस घटना से स्पष्ट हो जाता है अभी दृश्य है जो वह भी माया यानी स्वप्न है और जो स्वप्न घटता है वह तो स्वप्न है ही | बाबा ने सिद्ध किया सिद्ध योगियों के लिए जिस प्रकार स्वप्न की दुनिया उसी तरह वर्तमान की दुनिया है | एक दिन मृत्यु घटित होगी और जिसे हम यथार्थ समझ बैठे हैं उस स्वप्न की दुनिया से हम विदा हो जायेंगे | कहाँ जायेंगे ? यह तो साधना करने से ही पता चलेगा |
देवरहा बाबा के चरणों में सादर नमन
मेटे मन का संशय भारी !
एक जज थे श्री एम . पी . सिन्हा | बाबा के परम भक्त बराबर बाबा के दर्शन को जाते थे | उनका घर भर भक्त है बाबा का | लेकिन उनकी छोटी पुत्री को इन सब बातों में कोई आस्था नहीं थी | वह इन सब बातों को बेकार तथा ढकोसला मानती थी | अगली बार जब जज साहब ने दर्शन का मन बनाया तब छोटी पुत्री को भी यह कह कर कि “ चलो कम से कम घूमना हो जाएगा ” साथ ले लिया |
वह भी तैयार हो गयी यह सोच कर की बार बार माता पिता की बात को टालना ठीक नहीं , उसने यह सोचा की कम से कम आस्था नहीं है तो बाबा को देख तो लेगी | यही सोच कर वह तैयार हो गयी | मन में उसने सोचा ‘ बाबा अगर सचमुच में सिद्ध हैं तो मुझे नारियल का प्रसाद देंगे |’ उसने अपने लिए नारियल का प्रसाद सोचा बाबा अगर अन्तर्यामी हैं तो दें |
वहां पहुँचने पर बाबा के दर्शन हुएं बाबा ने सबका कुशल क्षेम पूछा तथा सबको आशीर्वाद दिया | और प्रसाद दे कर सबकी छुट्टी की | उस लड़की को भी वही प्रसाद मिला जो अन्य को | वह बोली कुछ भी नहीं | उसने अपने मन की बात पहले भी किसी को नहीं बताई थी | सभी बाबा को दंडवत करने लगे | वह भी मुड़ी |
तभी बाबा की गम्भीर आवाज़ सुनाई पड़ी – “ बच्ची ” |
वह सामने मुंह कर खड़ी हो गयी –“ तुम तो सोच कर आई थी नारियल का प्रसाद पाने के लिए और चुप चाप केला ले कर जा रही हो | ‘ लो अपना प्रसाद लेती जाओ ’ उनके चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कुराहट उभर आयी | बाबा ने टोकरी में हाथ डाला और ताज़ा नारियल निकाल कर उसे प्रसाद दिया | वह आवक रह गयी | बाबा ने आखिर उसके मन की भी बात को जान लिया | वे अन्तर्यामी है | अंततः उसके मन में भी बाबा के प्रति श्रधा जाग गयी |
पूज्य बाबा सहज करूणावश जीव मात्र पर दया कर अपने कौतुक मात्र से प्रेरणा देते रहते थे | वे कहते थे दुनिया में कोई नास्तिक नहीं है | नास्तिक होता तो विद्वान् होता और उसकी बात समझ में आती | जो है संशयआत्मा है |
बाबा सबमे संशय के भाव को मिटा देते हैं ताकि वह प्रभु चरणों में शुद्ध प्रेम के भाव से पूजा के फूल चढ़ा सके , प्रभु के अनंत विभूतियों के आनन्द में मग्न हो सके |
राजेंद्र नाथ तिवारी
देवरहवा बाबा परम तत्वज्ञान से अभिसिंचित महा योगी,महाज्ञानी ,त्रिकाल दृष्टा थे।श्री राम जन्मभूमि पर भव्य और विराट मंदिर की भविष्य वाणी उस काल दृष्टा ने बहुत पहले ही कर दी थी।
स्वर्ग से उनका आशीर्वाद श्री राम जन्मभूमि मंदिर बनाने के प्रतिबद्ध व कटिबद्ध जानो के साथ है।