नरेंद्र मोदी का नाम एक जनांदोलन है,राहुल एक विदूषक ।
चक्रवाती तूफान को कंबल में लपेटकर बंदी नहीं
बांधा जा सकता ।भूचालों को हथकड़ियां नहीं पहनी जा सकती। बादलों के मुंह पर मास्क लगाकर उनका भीषण गर्जन नहीं रोका जा सकता। बिजलियों के पैरों पर न तो बेड़ियां ही डाली जा सकती है और ना घुंघरू बांधे जा सकते हैं ।बस इसी वास्तविकता को लेकर के केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रहे नरेंद्र मोदी जिनका नाम एक जन आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो चुका है। उत्तर प्रदेश के काशी के सांसद अपने आप में आपअप्रतिम हैं । नरेंद्र मोदी कैसे हैं तो जैसा नरेंद्र मोदी होना चाहिए।नरेंद्र मोदी का नाम एक जनांदोलन बन गया है।
इसलिए भड़ास और विनाश दोनों कांग्रेस की प्रतिकृति बन गई है और उसने वाराणसी में राहुल गांधी की यात्रा के दौरान जो कुछ भी कहा वह अपने आप में बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है??
विनाश काले विपरीत बुद्धि जब व्यक्ति प्रकृति और ईश्वर की सत्ता को चुनौती देने लगता है तभी मन करके चलना चाहिए उसके अवसान का समय बहुत करीब है एक तो कांग्रेस वैसे ही बहुत पतली डाल पर देश में बैठी हुई है उसे पर साथ देने वाला कोई नहीं। अंतिम समय तक कांग्रेस भी किसी का साथ निभाना का समर्थ नहीं रखती ।
अनेक उदाहरण इतिहास के काले अध्याय में दर्ज हैं चाहे चंद्रशेखर को चाहे हों ,जगजीवन राम को ,चाहे ललित नारायण मिश्र हों ,चाहे चौधरी चरण सिंह हों ।किसी को भी अगर नुकसान पहुंचाना रहा हो धोखा देना रहा हो तो स्वतंत्र भारत की राजनीति में धोखा परस्त राजनीति के दलों में सबसे ऊपर स्वर्णाक्षरों में कांग्रेस का नाम लिखा जाएगा ।
आज उसी का कथित उत्तराधिकारी गली-गली डगर डगर इस बात को लेकर के घूम रहा है कि मुझे भी मान्यता मिल जाए कि मैं नेता हूं । वह न नेता बन पा रहा है, न अभिनेता बन पा रहा है। उसकी स्थिति उसे व्यक्ति की है ना खुद ही मिला न विशाले सनम। ना इधर के रहे ना उधर के रहे ।।
परंतु वह जब भूत भावन भगवान शंकर की नगरी में अपनी कथित न्याय की यात्रा को लेकर के पहुंचता है तो वहां वाराणसी के स्वाभाविक स्वभाव को चुनौती देता हुआ भगवान विश्वनाथ की सत्ता को भी चेलेंज करने लगता है सनातन परंपरा में भगवान विश्वनाथ की सत्ता को चैलेंज करने समर्थ समर्थ ब्रह्मा और विष्णु में नहीं है, तो फिर किस खेत की मूली राहुल गांधी है ।तमाम खड़गे और जय राम रमेश पैदा हुए हैं जो रोज कोचिंग और ट्यूशन करते हैं ,लेकिन राजा के उसे बच्चों की तरह उसे चरित्र वान नहीं बनापते हैं । किसी भी हालत में पढ़ेंगे नहीं सुधरेंगे नहीं राहुल गांधी की गति दिनों की वाराणसी यात्रा इस बात का संदेश देती है भूत भावन भगवान शंकर की सत्ता को स्वीकार करना उनके बस की बात नहीं है ।बनारस के चरित्र को वहां की सभ्यता वहां की को संस्कृति और यहां तक की शराबी संस्कृति जोड़कर के बोलना राहुल गांधी का अपने आप में मानसिक वैचारिक और बौद्धिक दिवालियापन दिखता है। वाराणसी के युवाओं को नशेड़ी कहना भारत भारत भारत जोड़ो यात्रा के बाद न्याय यात्रा निकालने वाले राहुल गांधी ने स्वयं ने अपने विवेक और बुद्धि पर प्रश्न चिन्ह लगा लिया है।
शराब से भी ज्यादा बाबा विश्वनाथ की आय को कहना अपने आप में एक शर्मिंदगी होती है। युवाओं के बेरोजगार कार्ड को खेलते हुए भावात्मक रूप से भांग और शराब से जोड़कर के बनारस के युवाओं को नशेड़ी कहना अपने आप में एक बहुत गंभीर प्रश्न खड़ा करता है बनारस में शराब से होने वाली आई केवल 12 करोड रुपए के आसपास है लेकिन बाबा विश्वनाथ की आय लगभग 50 करोड़ के ऊपर है।यह इकोनामी अपने आप में एक बार आती है ।लेकिन वह एक कांग्रेस और राहुल गांधी जिन्होंने क्षमा मांगने से दूर उल्टे इसको सिद्ध करने पर लगे हैं कि बाबा विश्वनाथ की सत्ता मानें कुछ नहीं। कांग्रेस की सत्ता सर्वोपरि है ।सच्चाई तो यह है कि कांग्रेस पार्टी अपने आप में अंतर विरोधों से घिरी हुई है। राहुल के बयान के बाद वाराणसी दौरे पर प्रधानमंत्री ने आकर के बनारस के साथ अस्मिता का खेल खेलने वाले राहुल को चैलेंज करते करते हुए कहा कि भोलेनाथ की नगरी में भोले भाले युवाओं को नशेड़ी का नाम कांग्रेस का बौद्धिक दिवालियापन है और यहां तक कह दिया के यूपी का युवा नशे में है कांग्रेस घूम घूम करके सफाई दे रही है यह उनका यह अभिप्राय नहीं था ।राहुल गांधी की न्याय यात्रा में उन्होंने जो कुछ भी देखा वह अपने आप में इस बात का प्रमाण है कि भगवान भोलेनाथ की नगरी से उनका कोई भी सीख नहीं मिली है।
जब भी वह कुछ भी बोलते हैं तो उनको यह लगता है कि हमारे बोलने का महत्व लिया जाएगा लेकिन मूर्ख: शोभते यावत तावत कीचिन्न भाषते। मूर्ख आदमी तभी तक शोभा पता है जब तक कुछ बोलना नहीं है ।बोलने के बाद पता चल जाता है एक बार राहुल गांधी है ।किसी के भी अस्मिता और किसी भी संस्कृति को चेलेंज करना किसी का अधिकार नहीं है ,परंतु न जाने कौन राहुल गांधी को कोच कर रहा है कि अनाप-शनाप बोलने बोलने से रोक नहीं पा रहा है।
अब तो और अनर्थ तब हो गया जब लौकी तीती थी और वह नीम के डाल चढ़ गई ।अब उसके एक साथी और मिल गए जो बिगड़े हैं ।जिनके बाप ने उत्तर प्रदेश के अयोध्या में नरसंहार का दायित्व ईमानदारी से निभाया था परंतु उनको नहीं पता था कि नरसंहार उनके ऊपर भारी पड़ेगा आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में देश का मतदाता मन बन चुका है कि कांग्रेस मुक्त भारत बना करके नरेंद्र मोदी के हाथों को मजबूत करने का दायित्व एक बार फिर से वह निभाने जा रहा है।
देश का भविष्य नरेंद्र मोदी के ही हाथ में सुरक्षित है।