जब एक सन्यासी ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भरी सभा में तमाचा जड़ा,!!

 क्या नेहरु के गाल पर एक आर्य संन्यासी ने झापड़ मारा था ?

जी हां 1962 में ऐसा हुआ था।

1962 में भारत की चीन से हार के बाद… अजमेर के एक कार्यक्रम मे प्रधानमंत्री नेहरू आए… वेद संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बोलते हुए.... नेहरू ने कहा- “इस देश में हमेशा से ही शरणार्थियो का स्वागत किया गया हैं। यहां शक आए, हूण आए, मुस्लिम आए, अंग्रेज आए, आर्य आए और यहा की संस्कृति मे घुलमिल गए।”

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मुख्य अतिथि आर्य संन्यासी स्वामी विद्यानन्द विदेह अपने मंच से उठे और नेहरू को जोरदार थप्पड जड दिया..!! और माइक अपनी ओर करके संन्यासी बोले… “आर्य कही से आए नही, यही के मूल निवासी है। सबूत मे हूं… मेरे बाप-दादा सब यही पैदा हुए… उनके बाप- दादा सब यही पैदा हुए, इस राष्ट्र का नाम ही आर्यावर्त है, लेकिन आप इस देश के मूल निवासी नही… आपकी रगो मे हिन्दुस्तानी नही अरबी ख़ून हैं। आपकी जगह पटेल प्रधनमंत्री होते तो हम चीन से हारते नहीं, वरन तिब्बत भी भारत का अभिन्न अंग होता।”

मंच पर अफरातफरी मंच गई दर्शक नेहरू को पीटने के लिए मंच की और बढे लेकिन सुरक्षाकर्मीयो उन्हें मंच से सुरक्षित निकाला। उसी समय एक फोटोग्राफर द्वारा लिया गया दुर्लभ फोटो।

दृष्टव्य- विदेह गाथा: एक आर्य संन्यासी की डायरी, पृष्ठ 637 संस्करण भाद्रपद 2037 विक्रमी…से साभार।

नोट- नेहरू समर्थक कुछ वामपंथी बेबसाईड उस फोटो और घटना को ग़लत सिद्ध करने का निर्थरक प्रयास कर रही है लेकिन। वे यह नहीं कहती हैं कि 1963 में स्वामी विद्यानन्द जी ने एक किताब लिखी है नेहरू उत्थान और पतन यह पुस्तक किसने और क्यों बेन की? इस पर बेबसाईड मोन क्यों है ? अगर घटना नहीं होती तो स्वामी जी अपनी आत्मकथा में क्यो लिखते ? पाठक स्वयं सोच कर सत्य असत्य का सही निर्धारण करें।

प्रस्तोता-— घेवरचन्द आर्य पाली

प्रस्तोता- घेवरचन्द आर्य पाली

साभार, गूगल 

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