नए आपराधिक कानूनों में 6 बड़े और महत्वपूर्ण बदलाव क्या हैं?
1. मॉब लिंचिंग और नफरती अपराधों के लिए बढ़ाई गई सजा
वर्तमान में जो कानून है उसमें मॉब लिंचिंग और नफरती अपराध के लिए कम से कम सात साल की सजा का प्रावधान था. इस नियम के अनुसार जब पांच या उससे ज्यादा लोगों का समूह किसी व्यक्ति के जाति या समुदाय के आधार पर उसकी हत्या के मामले में शामिल पाया जाता है. तो उस समूह के सभी सदस्यों को न्यूनतम सात साल की कैद की सजा दी जाएगी. लेकिन नए कानून में इस तरह के मामलों में दोषी पाए गए लोगों को की आजीवन कारावास कर दिया गया है.
2. आतंकवादी गतिविधि को परिभाषित किया गया
पहली बार आतंकवादी गतिविधी को भारतीय न्याय संहिता के तहत पेश किया गया था. नए विधेयक में इसके कानून में कुछ बदलाव किए गए है. नया विधेयक के तहत अब आर्थिक सुरक्षा को खतरा भी आतंकवादी गतिविधि के अंतर्गत आएगा.
इसके अलावा तस्करी या नकली नोटों का उत्पादन करके देश की वित्तीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाना भी आतंकवादी अधिनियम के अंतर्गत आएगा. भारत में रक्षा या किसी सरकारी उद्देश्य के लिए गए संपत्ति को विदेश में नष्ट करना भी आतंकवादी गतिविधि का ही हिस्सा होगा.
देश में सरकारों को कुछ भी करने पर मजबूर करने के लिए किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेना या किसी भी व्यक्ति का अपहरण करना भी आतंकवादी गतिविधि ही माना जाएगा.
3. छोटे अपराध को किया गया परिभाषा
वर्तमान में जो कानून है उसमें संगठित समूहों द्वार किए गए अपराध जैसे गाड़ियों की चोरी, फोन स्नैचिंग के लिए दंड का प्रावधान किया गया था, अगर इससे आम जनता को असुरक्षा की भावना पैदा होती हो तो. लेकिन नए कानून में असुरक्षा की भावना की यह अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है.
4. कोर्ट कार्यवाही प्रकाशित करने पर भी सजा का प्रावधान
नए विधेयक में नया प्रावधान जोड़ा गया है जिसके जो कोई भी रेप के मामलों के अदालती कार्यवाही की खबर बिना कोर्ट के अनुमति के प्रकाशित करता है तो ऐसी स्थिति में उसे 2 साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
5. मानसिक बीमार नहीं 'विक्षिप्त दिमाग'
वर्तमान के कानून में यानी आईपीसी में मानसिक रूप से बीमार लोगों को सजा में छूट दी जाती है. लेकिन नए कानून यानी भारतीय न्याय संहिता में इस "मानसिक बीमारी" शब्द का नाम बदल दिया गया था. अब ऐसे अपराधि को 'विक्षिप्त दिमाग' वाला अपराधी कहा जाएगा.
6. सामुदायिक सेवा को किया गया परिभाषा
नई विधेयक में (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) में सामुदायिक सेवा को विस्तार में परिभाषित किया गया है. इसके अनुसार सामुदायिक सेवा एक ऐसी सजा को कहा जाएगा जो समुदाय के लिए फायदेमंद होगी और इसके लिए अपराधी को कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाएगा.
इन नए विधेयकों में छोटे-मोटे अपराध जैसे चोरी, नशे में धुत होकर परेशान करना, जैसे अपराधों के लिए सजा के तौर पर सामुदायिक सेवा की शुरुआत की गई थी.