राम की शक्ति पूजा,राम रावण्यो युद्धम, राम रावण्यो इव

 शक्ति दिवस पर विशेष 


 राम का द्वंद्व यह नहीं कि रावण जीत रहा,अपितु द्वंद्व यह है कि  रावणता का क्या होगा.निराला की राम की शक्ति पूजा अंधकार से होकर प्रकाश में आने की कृति है। यहाँ सूर्य कांत त्रिपाठी  निराला ने अतीत वर्तमान एवं भविष्य को एक साथ जीता है। 1936 में कवि निराला ने “राम की शक्ति पूजा” कविता लिखी ! इस कविता में बाहर-भीतर एक टकराहट है ,वैचारिक   द्वंद  है , जिसके सामाजिक  व ऐतिहासिक फलक का  शोर में अलौकिकता एवं मानवीयता, पौराणिकता एवं आधुनिकता आदि के स्वर घुलमिल गए है।  निराला की यह कविता सर्वश्रेष्ठ हिन्दी की कविताओं में से एक है। 

राम कथा इस देश की सबसे लोकप्रिय कथा है। यह कविता “रवि हुआ अस्त” से शुरू हुई है। कवि पहले ही संकेत दे देता है कि राम-रावण के युद्ध का वर्णन करना इस कविता में उसका उद्देश्य नहीं है और न ही इस युद्ध के बहाने कोई लंका काण्ड रचना है। दूसरी बात यह की राम सूर्य वंशी हैं। कवि शुरू में ही सूर्य का अस्त दिखाकर यह संकेत देता है कि राम जिस लड़ाई में कूद पड़े हैं वह लड़ाई वे किसी वंश परम्परा की ताकत से नहीं जीतेंगें। और न ही अपनी पूर्वजों की अर्जित ताकत इस लड़ाई में उनकी मदद करेगी। यहां हतभाग्य  राम का मानसिक अंतर्द्व  सामने आता है.


यह युद्ध सामान्य युद्ध नहीं है।  असाधारण है.यह राम-रावण का युद्ध उतना नहीं जितना यह रामत्व और रावणत्व के बीच का युद्ध है। हर युग में रावणत्व के खिलाफ राम संघर्ष करता है। रावणत्व बार-बार पराजित होता है तथा हर नए युग में वह फिर सर उठाता है। कवि का कहना है कि रावणत्व एवं रामत्व के बीच होने वाला युद्ध कभी खत्म नहीं हुआ यह युद्ध अपराजेय और निरंतर है। इस युद्ध में राम की चिंता का सबसे बड़ा कारण है “अन्याय जिधर है उधर शक्ति” यहीं चिंता निराला के युग की भी चिंता थी और आज तो यह चिंता कुछ अधिक ही प्रासंगिक है। आज जो लोग दिन रात पसीने से भीगे हुए है उनको आज जीवन की मूलभूत सुविधा भी मयस्सर नहीं है और जो जितना ही कपटी छली है वो दिन दूना रात चौगूना फल फूल रहा है। 

राम की शक्ति पूजा का सार निराला ने यह बताया कि एक दिन राम रावण युद्ध अनवरत जारी था। युद्ध भूमि में राम का रण कौशल क्षीण हो रहा था। वो जो भी बाण चलाते वह अपने लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाता। तब राम युद्ध भूमि में दिव्य दृष्टि से देखे की वास्तव में आज क्या कारण है कि आज युद्ध में मेरा प्रभाव क्षीण हो रहा है। तो उन्होंने देखा कि ओह आज तो साक्षात दुर्गा (शक्ति) रावण के रथ पर आरूढ़ है। तब राम किसी भी तरह युद्ध की आचार संहिता अर्थात् सूर्यास्त तक इंतजार किए।
 युद्ध से लौटकर जब उस दिन राम रात्रि विश्राम के समय अपने सेना नायकों के साथ शिला पट्टा पर बैठे थे तो पहली बार उनके नेत्र से आंसू गिरे। इस घटना से आहत होकर जाम्वंत ने पूछा प्रभु क्या बात है आज आपके नेत्र से आँसू। इस पर राम ने मात्र इतना ही बोला की अब ये युद्ध मैं जीत नहीं पाऊगाँ। जब पूरी सृष्टि जानती है कि मैं सत्य की रक्षा के लिए युद्धरत हूँ तो फिर शक्ति को मेरे साथ होना चाहिए। आज दुर्गा अन्यायी के साथ है। “जिधर अन्याय शक्ति उधर”
यही मेरे आत्मीय कष्ट का कारण यही है। अन्यायी शक्तियाँ काफी संगठित है सबसे मूल बात यह है कि डर उनकी सबलता के कारण नहीं बल्कि मूल्यपरस्त शक्ति के उनसे हाथ मिलाने के कारण है। राम कहते है नैतिक मूल्यों की समझ पर यह गहरी चोट है। हर संक्रातिकालीन युग में सात्विक विवेक को यह सनातन चोट इसी तरह कचोटती है। राम की व्यथा मानव मन की पहचानी हुई व्यथा है।

“रावण अधर्मरत भी, अपना मैं हुआ ऊपर” इस व्यथा को विभिषण समझ नहीं पाते मगर जाम्वन्त तुरंत समझ जाते है वे राम को सलाह देते है:-

“आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर, शक्ति की करो मौलिक कल्पना, करो पूजन” आराधन वैयक्तिक लाभ-अर्जन की प्रक्रिया है रावण इसी से जुड़ा है इसके प्रत्युत्तर में दृढ़ आराधन बाह्म शक्ति से आंतरिक शक्ति के संतुलन की प्रक्रिया है। और यह तभी संभव है जब राम इस लड़ाई को व्यक्तिगत हानि-लाभ से ऊपर उठकर पूरे जगत के लिए लड़े। अर्थात् आराधन व्यक्ति परक है और दृढ़ आराधन लोक मंगल परक और इस दृढ़ आराधन से ही शक्ति का मौलिक उद्रेक होगा।
 

रामायण और महाभारत की युद्ध की भयंकरता पर दृष्टिपात करे तो रामयण का युद्ध महाभारत से सौ गुना भयंकर था पूरे महाभारत के युद्ध में मात्र दो बार ही व्यूह रचना हुई है। जबकि रामायण में हर कुछेक पहर पर व्यूह रचना होती थी। एक पहर तीन घंटे का होता है। शक्ति की मौलिक कल्पना नवीन सर्जनात्मकता की खोज है इसका स्वरूप भौतिक की अपेक्षा नैतिक अधिक है। यह परम्परागत शक्ति के पुनः प्रयोग से नहीं, उसके निषेध से संभव होगी, तभी तो राम के चौकन्नेपन के बावजूद प्रजापतियों के संयम से रक्षित सारे दिव्याषस्त्र रण में श्रीहत, खंडित हो जाते हैं।
शक्ति की उनकी मौलिक कल्पना में मानव कल्याण की सामूहिक गंध बसी है। राम दुर्गा के ‘जन रंजन-चरण-कमल-तल’ स्थित सिंह की तरह आराधना शुरू करके यह प्रमाणित करते हैं।
राम की शक्ति पूजा में यह मौलिक शक्ति आत्मान्वेषण से उपलब्ध हुई है।

राम योग द्वारा मन को ऊपर उठाते हैं तथा उसे गगन मंडल में जाते है। यह आत्मान्वेषण की क्रिया है। दूसरी बात, शक्ति का मौलिक स्वरूप प्रकृति में व्याप्त है। दुर्गा रूप में समग्र प्रकृति-क्षिति जल, पावक, गगन समीर को साधकर ही राम नवीन पुरूषोत्तम बनते हैं। मर्यादा पुरूोषोत्तम में रूढ़ियों का आग्रह कुछ अधिक था। नवीन पुरूषोत्तम रूढ़ियों से मुक्त, लोक न्याय पर दृढ़ एवं मौलिकता से लैस हों .
श्रीकबीर

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form