शोकसभा में लोकसभा की राह ढूंढ रहे अवसरवादी!


मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। कौटिल्य वार्ता

 सुल्तानपुर में डॉ घनश्याम तिवारी के जघन्य हत्याकांड के बाद राजनैतिक शोकाकुल नेताओं का बस चलता तो वह अपना सीना चीर कर तिवारी का दर्शन करा देते। लेकिन बेबस नेता चुनावी गुणा-गणित के फेर में दुःखित होने की प्रतिस्पर्धा में पड़ते जा रहे हैं। सबसे ज्यादा दोहरा स्वरूप भाजपाइयों ने दिखाया है। एक तरफ वह डॉ घनश्याम तिवारी के हत्यारों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने और पुलिस  प्रशासन पर हमलावर होते हैं तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिल कर लौटने और प्रशासन अपना काम कर रहा है बताने में जनता से किरकिरी झेल रहे हैं। विपक्ष के नेता राजनैतिक शोर मचा रहे हैं लेकिन मंचों से बाहर उनकी भी भूमिका धारदार नहीं बन पा रही है।

 कोई शोकसभा का खर्चा उठा कर समाज पर ऋण करने के अभिमान में झूम रहा है, तो कोई पीड़ित परिजनों को मुख्यमंत्री से मिलवा कर उपकृत समझ रहा है। एक दूसरे के शोशल अकाउंट पर नामजद आरोपियों अजय नारायण सिंह व विजय नारायण सिंह के साथ फोटो खोज कर वायरल कर रहा है तो किसी पर आरोपियों के एहसान से दबने का बोझ है। भाजपा नेता उस फोटो का खंडन करने और स्वीकारने दोनों स्थित में असमंजस में है। यह तथ्य किसी से छुपा नहीं है कि आरोपी भाजपा परिवार से जुड़ा है। तो भाजपा परिवार के नेताओं के साथ उसका चित्र होना स्वाभाविक है। 

उसके बाद कुछ लोग ही दबी जुबान से यह मानते हैं कि भाजपा नेताओं के साथ फोटो किसी कार्यक्रम का है लेकिन अधिकांश लोग दांये-बांये झांक रहे हैं।ऐसे भी लोग हैं जो चाहते हैं कि आरोपियों पर कड़ी कार्यवाही भी हो और आरोपी नाराज भी न हो। ऐसे में पीड़ित परिवार की सुरक्षा, आरोपियों की गिरफ्तारी और पुलिस का न्यायपूर्ण कार्यवाही का भौतिक सत्यापन करना टेढ़ी खीर बन गयी है।

सूत्रों की मानें तो मंच पर गरजने वाले एक नेता जो मुख्यमंत्री से पीड़ित परिजनों को मिलने ले गये थे उनसे उल्टा मुख्यमंत्री ने कुछ सवाल कर दिया तो वह निरुत्तर हो गये। भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस व अन्य दलों के नेता शनिवार को जिस तरह गर्जना किये उसके बाद यह चर्चा आम रही कि शोकसभा में लोकसभा की दावेदारी बन कर रह गयी।ऐसे में यह कहना कि स्वर्गीय तिवारी के परिजनों को समय से इंसाफ मिल जायेगा यह भविष्य के गर्व में हैं।

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