बस्ती
सूचना अधिकार अधिनियम 2005 भारत के संविधान द्वारा और संसद द्वारा स्वीकृत एक ऐसा कानून है जिससे जनता द्वारा जनता के लिए जनता का कानून माना जाता है .यह कानून सामान्य जनता को भी इस बात की गारंटी देता है कि वह जितनी भी सूचनाओं हो जनहित में स्वहित में एक निश्चित मानदंड के साथ प्राप्त कर सकते हैं .और सूचनाओं में दो एक वर्जनाओं को छोड़कर बाकी सारी सूचनाओं देने के लिए जन सूचना अधिकारी से लेकर के राज्य सूचना आयुक्त और केंद्रीय सूचना आयुक्तों संरक्षण में अच्छी खासी राशि भारत सरकार और राज्य सरकार खर्च करती ही.
जन सूचना अधिकारी सरकार का सीधेविभागाध्यक्ष अध्यक्ष या कार्यालय अध्यक्ष होता है और उसका यह दायित्व है कि उसके क्षेत्र से मांगी गई सूचनाओं 1 महीने के अंदर संबंधित व्यक्ति को उपलब्ध कराए ,लेकिन जितना सूचना अधिकार में पारदर्शिता थी उतनी ही अब उसे अधिकार को लेकर के तमाम विवादों की जंग छिड़ गई है .उसमें जन सूचना अधिकारियों द्वारा अनाप
सनाप उत्तर देना अनाप-शान समझते हैं,.दो रूपया प्रति फोटोकॉपी का पैसा मांगना और जनहित में सूचना आपको नहीं दी जा सकती इस तरह की तमाम बातें ध्यान में आती है परंतु बस्ती जनपद में सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुदिष्टि नारायण त्रिपाठी ने जन सूचना अधिकारी अधिशासी अभियंता नलकूप खंड बस्ती को एक पत्र देकर के कुछ बिंदुओं पर उन्होंने सूचनाओं मांग की थी, उन सूचनाओं को देने में आनाकानी करके अधिशासी विभिन्नता नलकूप खंड बस्ती ने आर्थिक ब मानसिक उत्तपिड़ का बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा कर दिया. पहाड़ न 55000 सुडीष्ठि नारायण देंगे और न वह सूचना उन्हें उपलब्ध कराई जाएगी.
संविधान और संसद द्वारा प्रदत्त सूचना का अधिकार 2005 भारत सरकार की गारंटी के तहत सूचनाओं प्राप्त करने का अधिकार देता है .यही एक ऐसा कानून है जो जनता को सीधे किसी भी जन सूचना अधिकारी से प्रश्न पूछने और उसके समाधान होने का हक देता है परंतु अधिशासी अभियंता नलकूप खंड बस्ती necजिस तरह से व्यवधान खड़ा किया वह अपने आप में गंभीर समस्या है अगर उनके संबंधित कोई बात होती तो शायद उनको इतना दिक्कत नहीं होती .
दो रूपया प्रति पेज के हिसाब से 27630 कॉपियों का कुल मिलाकर के 55260 की डिमांड डिमांड ड्राफ्ट द्वारा जमा करने के लिए उन्होंने निर्देशित किया है जो संवैधानिक मान्यताओं का सबसे बड़ा मजाक है. अधिशासी अभियंता नलकूप खंड बस्ती के जन सूचना अधिकारी जैसे लोग ही सूचना अधिकार को पलीता लगा रहे हैं. सूचना अधिकार में यह भी व्यवस्था है कि वह पेन ड्राइव में भी सारी सूचनाओं उपलब्ध करा सकते थे. कोई आनाकानी कर सकते थे कि क्योंकि सूचनाओं लंबी है इसलिए मौके पर आकर के उसका परीक्षण कर लीजिए ,लेकिन वह जानते थे की पेन ड्राइव का दाम ₹400 आरटीआई कार्यकर्ता दे सकता है इसलिए सीधे-सीधे आधा लाख से ऊपर के डिमांड इसलिए कर दी गई इतना पैसा न मिलेगा नासूचना ही देंगे. लेकिन वह कहते-कहते भूल गए की जो उन्होंने पत्रांक 1648 नलकूप खंड बस्ती जन सूचना अधिकार 2005 दिनांक 25 9 23 2023 का उदाहरण दिया है उसमें ओवरराइटिंग है और वह यह भी भूल गए 25 .9 .2023 को बस्ती शहर में ही पत्र पहुंचने में 15 दिन लग गए जो सूचना अधिकार अधिनियम का की आत्मा की हत्या करता है. सूचना तो उन्हें देनी ही पड़ेगी पर अब उनके ऊपर जुर्माना भी लगेगा अर्थ दंड भी लगेगा और हाईकोर्ट भी जाने के रास्ते उनके बंद हो गए हैं.
अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने जन सूचना अधिकारी प्रतापगढ़ पर 25000 जमा न करन लिए आग्रह करने पर ₹10000 अतिरिक्त जुर्माना लगा दिया. सूचना अधिकारियों को जन सूचना अधिकारियों की मंशा इतनी विपरीत है कि वह सूचना अधिकार अधिनियम की कार्यवाही को अपने ऊपर व्यक्तिगत कार्यवाही ले लेते हैं और सिर्फ इसलिए की हो सकता है कि उसे उनके भ्रष्टाचार कृत्य का उजागर हो जाए इसलिए सूचना देने में आना करते हैं लेकिन आने वाले दिनों में संभावित है इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ सीट का आदेश सबके लिए एक संवैधानिक और न्यायिक बाध्यता बने और सूचनाएं समय से दें . सूचना न देने के कारण या समय से धनराशि की मांग न करने के कारण अधिशासी अभियंता नलकूप खंड बस्ती को दंड भी मिलेगा.सूचनाओं भी देनी पड़ेगी और अपमान भी सहना पड़ सकता है जो उनके पत्र से परिलक्षित हो रहा है.