बस्ती
सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत संपूर्ण भारतवर्ष में सूचना अधिकारकर्मी ईमानदारी से सक्रिय हैं .उनकी हर सूचना ,सूचनाअधिकार कार्यकर्ता जीवन और समाज के संघर्ष के साथ ही साथ आत्मरक्षा के संघर्षों को भी झेला रहा है. आत्मरक्षा इसलिए जिसकी भी सूचना मांगता है उसके हाथ पांव फूल जाते हैं और वह पहले प्रथम दृष्टया हाथ-पाठ धो करके उस सूचना अधिकार कार्यकर्ता के पास किसी भी प्रकार से
प्रभावित करने सूचना में आनाकानी करने और दंडित कर अन्य काम करता है .परंतु इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने लखनऊ पीठ में एक अजीब मामला सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं के सम्मान में सामने आया है प्रतापगढ़ पॉलिटेक्निक के जन सूचना अधिकारी से सूचना अधिकार कार्यकर्ता ने सुसंगत धाराओं में सूचना की अपेक्षा की थी .कालातीत होने और सूचना न देने के कारण राज्य सूचना आयोग ने जन सूचना अधिकारी राजेश चंद्रा को₹25000 का अर्थ दंड लगाया.
जन सूचना अधिकारी ने इसकी बात न मानते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ पीठ में जुर्माने की राशि पर स्टे लगाने की मांग कर डाली. परंतु माननीय न्यायालय ने अतिरिक्त ₹10,000 का और जुर्माना लगाते हुए हर जाने की राशि 10 दिन के अंदर आयोग में जमा करने का निर्देश दे डाला है .इस पर इस पर सूचना अधिकार कार्यकर्ता सुदृष्टि नारायण त्रिपाठी बस्ती ने कहा है यह आदेश सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करेगा .भविष्य में आयोग से दंडित जन सूचना अधिकारी एक बार न्यायालय जाने के लिए सोचेंगे .न्यायालय के इस निर्णय की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है.