आर एस एस प्रचारक श्री रंगा हरि का महाप्रयाण

 बस्ती


संघ के पूर्व अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख माननीय रंगा हरि जी का महा प्रयाण हो गया, उनका जाना एक युग के समापन जैसा है। मेरे प्रचारक निकलने की प्रेरणा माननीय श्री रंगा हरि जी ही थे। हुआ यूं कि मैं 1998 में गोरखपुर के पक्की बाग में संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष का प्रशिक्षार्थी था, वर्तमान क्षेत्र प्रचारक माननीय अनिल जी वर्ग के मुख्य शिक्षक थे, समय देने वाले स्वयंसेवको की बैठक अलग से होने की सूचना मुख्य शिक्षक के द्वारा दी गई और मैं भी उस बैठक में जाने लगा, वरिष्ठ अधिकारी के द्वारा हम सबका मन तैयार करने के लिए विषय रखा जाता था, फिलहाल उस विषय का मेरे उपर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा था, फिर भी मैं बैठक में इस लिए जाता था कि वहा दुबारा जलपान की व्यवस्था रहती थी। मेरे जिला प्रचारक वर्तमान क्षेत्र बौद्धिक प्रमुख माननीय मिथिलेश जी को ए जानकारी भी बाद में ही हुई की मैं समय देने वालो की बैठक में जा रहा हूं। इसी क्रम में माननीय श्री रंगा हरि जी की बैठक में शामिल होने का मौका मिला माननीय हरि जी ने अपने चुटीले स्वभाव में बैठक शुरू की ओर कहा कि मैं एक प्रश्न पूछ रहा हूं उसका उत्तर आपको मेरे कान में आकर बताना है, प्रश्न था कि आप चौराहे पर बीच में खड़े हैं एक तरफ आपकी मां खड़ी है और दूसरे तरफ आपकी पत्नी या प्रेमिका खड़ी है मां और प्रेमिका दोनों आपको अपनी तरफ बुला रही है दोनो कह रही हैं कि मेरे पास आओ, आपको कान में यह बताना है कि आप किस तरफ जायेंगे। क्रम से बताना शुरू हुआ हरि जी किसी को कहते थे यहां बैठ जाओ और किसी को कहते थे कि आप यहां से जा सकते हैं , मेरा नम्बर आया तो मैंने हरि जी के कान में कहा कि मैं मां के तरफ जाऊंगा तो उन्होंने मुझे भी रुकने के लिए कहा, क्रम समाप्त हुवा तो आधे से अधिक लोग जा चुके थे, जो हम लोग चंद लोग बचे थे उनसे विषय का विस्तार करते हुए श्री हरि जी ने कहा कि मेरे विषय के अनुसार मां याने भारत माता, जिन्हे अपने मां से प्यार है उन्हे प्रचारक बनकर मां की सेवा करना चाहिए, जो प्रेमिका के तरफ जाने की बात कर रहे थे उन्हे मैंने इसी लिए बैठक से जाने के लिए कहा है। बस यही एक प्रसंग ( घटना) था कि मैंने किसी से पूछे बिना प्रचारक बनना तय कर लिया, और बन भी गया...।


माननीय श्री रंगा हरि जी के शरीर की लंबाई बहुत कम थी, एक बार 1999 में उनका बस्ती प्रवास हुआ, छात्रों का कार्यक्रम शिशु मंदिर रामबाग के परिसर में था, मैं उस बौद्धिक (प्रबोधन) कार्यक्रम का मुख्य शिक्षक था, श्री हरि जी के लिए लकड़ी की कुर्सी बैठने के लिए रखी गई थी, उस कुर्सी पर बैठने के बाद उनका पैर जमीन तक नहीं पहुंच पाता था, इस लिए उनके पैर के नीचे तकिया रखने की भी जिम्मेदारी मुझे ही दी गई थी। उस समय बस्ती के जिला प्रचारक आदरणीय सर्वदेव जी, विभाग प्रचारक मान जगदीश जी प्रांत प्रचारक डा कृष्ण गोपाल जी हुआ करते थे। श्री हरी जी लगभग दर्जन भर भाषाओं के जानकार थे,जिस प्रदेश में प्रवास करते थे वहा की भाषा वह सीख लेते थे। वह अद्भुत थे, सच्चे स्वयंसेवक थे।।

प्रेरक मिश्र

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