दल-बदल के प्रतीक बने समाजवादी पार्टी के विधायक दारा सिंह चौहान के त्यागपत्र के बाद हो रहे उपचुनाव में घोसी की जनता में जो उनके प्रति गुस्सा दिख रहा था वह बहुत हद तक समाप्त हो गया। उपचुनाव के आरंभ में घोसी में कोई यह सुनने को नहीं तैयार था कि फिर दारा सिंह को चुनें।जनता का एक ही सवाल कि इसकी क्या गारंटी है कि लोकसभा चुनाव तक दारा सिंह भाजपा में ही रहेंगे। अब पार्टी नहीं बदलेंगे। क्षेत्रीय सड़कों का खस्ताहाल होना, विद्युत आपूर्ति बेहद खराब होने तथा स्थानीय भाजपा नेताओं की नाराजगी ने जनता के बीच दारा सिंह की छवि दुर्बल बना दिया था। जिन लोगों ने केंद्रीय गृहमंत्री अमितशाह से दारा सिंह की वापसी ताना बाना बुना वह एक्सपोज हो गये। क्यों उन्होंने दारा सिंह की ताकत की झूठी शान बखानी गयी वास्तविकता उससे कोशों दूर की बात थी। जब उपचुनाव में जमीन के सामने गये तो दारा बेचारा साबित हो गये।न जातीय धमक का धमाल दिखा पाये और न ही जनता में कोई कारण गिना पा रहे थे कि वर्ष भर के अंदर भाजपा से सपा, सपा से भाजपा में जाने का जिनमिन कारण क्या है? दारा को इतनी जल्दबाजी में पार्टी के अंदर लाकर उनका त्यागपत्र दिलाना भाजपा को सांगठनिक कारणों से मंहगी पड़ी। लोकसभा चुनाव 2024 की दृष्टि से पार्टी की अनेक तैयारियों को स्थिल कर प्रदेश नेतृत्व को उपचुनाव में कूदना पड़ा। आम आदमी हो या भाजपा का सामान्य कार्यकर्ता उसे यह हजम नहीं हो रहा था कि एक व्यक्ति के निजी लाभ के लिये इतने जल्दी-जल्दी पलटना असहज कर रहा था। फिर समाजवादी पार्टी ने अपना खाँटी कार्यकर्ता उतार दिया। इससे सपा के कार्यकर्ता एकजुट तो हुये ही जनता में भी उसे सहानभूति मिलने लगी। भाजपा के भीतर आये गैर भाजपायी पार्टी में अपनी घमक बढ़ाने और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ताकत को कमतर करने के लिये दलबदलुओं का मजबूर कॉकस खड़ा करना चाहते हैं। जिस भाजपा में बड़े-बड़ों के टिकट का ठिकाना नहीं रहता उसी भाजपा के मंच यह लोग दारा सिंह चौहान को जीत के बाद योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल में शामिल करने की हुंकार भर रहे हैं। यह वर्ग आपस में तय करके बार -बार बाहर से आये लोगों के भोज आयोजन करता है। इसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध भी खूब चर्चे होने की बात कही जाती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजनैतिक वितासत हो या सत्ता की ताकत वह वर्ग मूल भाजपाइयों को बाहर कर उस पर कब्जा करने की फिराक में है। इससे भाजपा का काडर निराश हो गया है।क्योंकि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने भी इस पर कोई रुचि नहीं दिखाई। अब वह भारी पड़ रहा है। डॉ दिनेश शर्मा जैसे शालीन व्यक्ति को हाशिये पर धकेलना अब भारी पड़ने लगा है। कोशों दूर रह कर भी पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा चर्चा में हैं। खास कर ब्राह्मण समाज हो या भूमिहार समाज में चर्चा है। श्रीकांत शर्मा ऊर्जा मंत्री थे तो प्रदेश की विद्युत आपूर्ति बहुत अच्छी थी। आज शहरी जनता हो या ग्रामीण, किसान हो या उद्योगपति सब परेशान हैं।संयोग से ऊर्जा मंत्री मऊ जिले से ही हैं, इस कारण यह ज्वलंत मुद्दा भाजपा को तंग कर रहा है। पहले सपा सरकार में विद्युत कटौती से त्रस्त जनता भाजपा के विद्युत आपूर्ति से खुश होकर वोट देकर समर्थन देती थी, लेकिन आज विद्युत आपूर्ति की वह स्थित नहीं है।
फिलहाल उत्तर प्रदेश भाजपा के महामंत्री संगठन धर्मपाल की सख्ती और प्रदेश अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह का बार-बार उपचुनाव क्षेत्र में प्रवास ने मऊ में भाजपा की वापसी का रास्ता आसान कर दिया। धर्मपाल का स्पष्ट निर्देश है कि वोहदेदार अपना-अपना सेक्टर जीत कर दें।उनकी सफलता ही उनके सफल उपयोगिता का मापदंड होगा। जिसके चलते अंतिम चार दिन में भाजपा ने चुनाव में बढ़त बना लिया।प्रदेश सरकार के भारी-भरकम मंत्री हों या पार्टी के वोहदेदार वह भी क्षेत्र निर्धारित कर बूथ जितने की योजना पर लग गये। दारा सिंह की यही परेशानी थी कि चुनाव के 36 घण्टे पहले जब बाहरी नेता चले जायेंगे तब वह क्या करेंगे। उसका समाधान संगठन ने कर दिया। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये पीडीए का जो नारा दिया है, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने उसकी कमर तोड़ दी है। इस मुद्दे पर अखिलेश यादव की गर्दन केशव मौर्य के हाथ में आ गयी है। अखिलेश ने पीडीए का मतलब पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक का गठजोड़ होने का दावा किया है। केशव मौर्य ने सपा मुखिया से सवाल किया है कि रामपुर के स्वार टांडा विधानसभा का उपचुनाव रहा हो या मऊ का सपा ने पीडीए वर्ग से प्रत्याशी क्यों नहीं खड़ा किया। समाजवाद के नाम पर आप परिवारवाद करते हैं, पीडीए का नारा तो देते हैं लेकिन प्रत्याशी उस वर्ग से नहीं देते हैं। यह कैसी दुहरी नीति है? अभी तक अखिलेश यादव इस सवाल का जवाब नहीं दे पाये हैं।वह इसके उत्तर से भाग रहे हैं। समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के पराजय का यही मूल कारण बनेगा।क्योंकि क्षेत्रीय भाजपा अध्यक्ष सहजानंद राय और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने पूरे घोसी क्षेत्र में अतिपिछड़ा वर्ग के सम्मेलन की झड़ी लगा दिया है। हर सम्मेलन में केशव मौर्य का एक ही सवाल कि अखिलेश यादव ने पीडीए वर्ग का प्रत्याशी क्यों नहीं दिया। उनकी नीयत अतिपिछड़ों अतिदलितों को लेकर साफ नहीं है। भाजपा राजभर, नाई, प्रजाति/कुम्हार, लोहार, बढ़ई, चौहान, मौर्य, खटिक, धोबी, निषाद और लाभार्थी वर्ग का सम्मेलन करवा के उनको सत्ता में भागीदार बनाने का वादा पूरा करने का दावा कर रही है। भाजपा की यही ताकत है कि उसके पास हर जाति वर्ग का नेता है और हर बूथ तक उसकी सीधी पहुंच है। 2 सितंबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जनसभा प्रस्तावित है। जिसमें यह मुद्दा अवश्य उठेगा कि यह वही मऊ है जहां माफिया मुख्यतार अंसारी कर्फ्यू के दौरान दंगों में कैसा तांडव किया था।मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आज उसे कहाँ पहुंचा दिया है। माना जा रहा है कि जैसे ही योगी चुनाव से जुड़ेंगे सपा प्रत्याशी के पक्ष में थिरकने वाले भाजपा के आत्मघाती ठाकुर कार्यकर्ता पार्टी के पक्ष में निकल पड़ेंगे या घर बैठ जायेंगे।