बस्ती
नगर पंचायत हर्रैया में मनरेगा से भी कम मजदूरी पाने वाले नित्यानन्द सिंह जिले के ही नहीं बल्कि प्रदेश के पहले ऐसे दैनिक वेतन भोगी कर्मी होगें, जिन्होनें अपने वेतन को छह हजार से बढ़ाकर 24 हजार कर दिया। इसके लिए इन्होनें किसी की मंजूरी भी नहीं ली, क्योंकि मंजूरी लेते तो इन्हें मिलता नहीं। इसलिए इन्होनें स्वयं अपना वेतन बढ़ा दिया। चूंकि यह बिल बाबू भी रहे, इसलिए इन्होनें जैसा चाहा, बिना बोर्ड, शासन ,ईओ और चेयरमैन की मंजूरी के 200 रूपया प्रतिदिन की मजदूरी को बढ़ाकर 800 रूपया प्रतिदिन कर दियाऔर इसी दर से पिछले कई सालों से मजदूरी भी लेते रहे।
इस तरह इन्होनें लगभग 13 लाख से ऊपर का आर्थिक कदाचार सिर्फ मजदूरी के नाम पर किया। ज्ञातव्य की है कि इतने सालों से आर्थिक कदाचार होता रहा , ईओं एवं चेयरमैन देखते रहे। जबकि वेतन बिल पर ईओ का भी हस्ताक्षर होता है। इन्होनें कभी भी अपने आपको दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी माना ही नहीं, इन्हें अगर कोई भूल से कह भी देते थे, जो यह नाराज हो जाते थे। हमेंशा इन्होनें एक अधिकारी की तरह हकड़ी के साथ कार्य किया। वरना यह मनमानी न करते और न ही इन पर हत्या का मुकदमा ही दर्ज होता, वह भी कार्यालय के ही कर्मी के हत्या के आरोप में।
इनकी मनमानी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, कि यह कई सालों से पत्रावली पर बिना ईओ और चेयरमैन के हस्ताक्षर के लाखों रूपये का भुगतान करते रहे। इससे बड़ा भ्रष्टाचार का सबूत कोई नहीं मिल ही नहीं सकता। इन्होनें विभाग और कोर्ट को गुमराह किया। इस तरह इन्होनें नगर पंचायत हर्रैया को अधिकारी और चेयरमैन की तरह वर्षों तक चलाया, जिसका भुगतान कभी नकद हो ही नहीं सकता, उसे भी इन्होनें लाखों का भुगतान नकद में किया।
जो व्यक्ति चेकबुक लेकर फरार हो सकता है, वह व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। जिस दैनिक वेतन भोगी के बारे में डी0जी0सी0 की यह राय हो कि इस तरह के व्यक्ति को पुनः सेवा में लेने का मतलब भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने जैसा होगा, उसके बावजूद इनसे फिर से काम लिया जा रहा है। इससे पता चलता है कि नगर पंचायत हर्रैया , भ्रष्टाचार को रोकने के बजाए और बढ़ावा देने का प्रयास हो रहा है। यह नवागत चेयरमैन की जिम्मेदारी बनती है कि जिस घोटाले को समाप्त करने के नाम पर इन्होनें बीजेपी प्रत्याशी को हराया, उस भ्रष्टाचार को बढ़ने ना दे, वरना जनता इनमें और पूर्व चेयरमैन में कोई फर्क महसूस नहीं करेगी।
दावा किा जा रहा है कि पूर्व चेयरमैन के दोनों कार्यकाल में नित्यानंद सिंह की देख-रेख में और ईओ एवं चेयरमैन राजेंद्र गुप्ता की सहमति से जितने भी घोटाले हुए हैं, उसकी जांच नवागत चेयरमैन को करवाना चाहिए। अगर यह जांच करवाने में सफल हो गए तो कई ईओ, चेयरमैन, जेई और दैनिक वेतन भोगी कर्मी जेल में नजर आयेंगे।
जिस व्यक्ति पर एक नहीं बल्कि दो-दो मुकदमें दर्ज हों वह व्यक्ति कैसे सरकार और नगर पंचायत के लिए हितकारी साबित होगा। जिस तरह के मामले सामने आ रहे हैं, उससे पता चलता है कि नगर पंचायत हर्रैया में पिछले दस सालों में विकास की कम और भ्रष्टाचार की गंगा अधिक बही है। जो लो अपने आपको पाक-साफ कहते थे, आज वे लोग पूरी तरह बेनकाब हो रहे हैं। चेकबुक लेकर फरार होने वाले दैनिक वेतन भोगी के खिलाफ आज तक ईओ ने मुकदमा नहीं लिखवाया, जबकि वह नोटिस भी जारी कर चुके हैं। नित्यानंद सिंह पर जितने भी आरोप लगे हैं, वह कोई पत्रकार ने नहीं बल्कि खुद ईओ ने लगाया। इनकी मनमानी और दादागीरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ईओ ने इन्हें दो नोटिस दिया, मगर इन्होनें एक का भी जबाव नहीं दिया, बल्कि नोटिस के जबाव में कहा गया कि अगर अधिक नोटिस दिया को कोई नहीं बचेगा। अखबार वालों और ठेकेदारों के बकाए का भुगतान करने के लिए नगर पंचायत के बजट नहीं रहता, मगर घोटाला करने के लिए ना जाने कहां से पैसा आ जाता है।
अगर हम आपको ईओ के द्वारा नित्यानंद सिंह को जो कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है, अगर उसके बारे में बताने लगेंगे तो आप सभी के कान खड़े हो जायेंगें और सोचने पर मजबूर हो जायेंगे, कि क्या कोई दैनिक वेतन भोगी भी इस तरह की गड़बड़ी और घोटाला कर सकता है। हम आपको कुछ खास आरोप के बारे में बताते हैं। यह भी सही है कि अगर इनके खिलाफ 302 ओर 409 के तहत दो मुकदमा दर्ज नहीं होता तो शायद ईओ, चेयरमैन, जेई और दैनिक वेतन भोगी का भेद नहीं खुलता और ना कारण बताओ नोटिस ही जारी होता। अब सवाल उठ रहा है कि ईओ इससे पहले क्या कर रहे थे, क्यों नहीं पहले इन्हें नोटिस थमाया और क्यों एफआईआर के बाद ही जबाव-सवाल किया।
ईओ ने स्पष्ट लिखा है कि जब दैनिक वेतन भोगी कर्मिों को अवकाश लेने और देने का नियम ही नहीं है, तो फिर क्यों गलत शासनादेश प्रस्तुत कर गुमराह करते हुए अवकाश लेते रहे। इन्हें एफआईआर दर्ज होने के बाद फरार बताया गया। इनके फरार होने के बाद जब छानबीन शुरू हुई तो पता चला कि योजनावार कोई भी पत्रावली एक जगह नहीं है और न ही ऐसे कोई पंजिका मिली जिससे यह पता चल सके कि एक वित्तीय र्ष में कितने कार्य हुए और कितने सामनों की आपूर्ति ली गई। पूर्व के सालों की तमाम ऐसी पत्रावली मिली, जिसमें कोटेशन लिफाफा/निविदा लिफाफा पंच कर रखा गया, ना ही तुलनात्मक चार्ट बना और ना ही व्यय की स्वीकृति ही हुई। बिना स्वीकृति के भुगतान के भी मामले पकड़े गये। तमाम ऐसी पत्राली मिली जिस पर ना तो ईओ और न चेयरमैन के हस्ताक्षर हैं और उनका भुगतान मैनुअल चेक या फिर पीएफएमएस के जरिए कर दिया। नोटशीट पर दोनों के हस्ताक्षर भी नहीं हैं। यानि मनमाने तरीके से भुगतान किया गया, जो गबन की श्रेणी में आता है।
एसबीआई और पीएनबी के दो खातों का चेक ही गायब है। 2021-22 एवं 2022-23 का कैशबुक ही लापता है। भुगतान सम्बन्धित गाइड फाइल ही नहीं मिली। सिर्फ एक का मिला। एक भी वेतन पंजिका नहीं मिली, सबसे गंभीर आरोप जो लगाए गए उनमें कहा गया कि वर्ष 2014 में दैनिक वेतन भोगी के रूप में प्रतिदिन 185 रूपये की दर से नित्यानंद सिंह वेतन प्राप्त करते रहे। मगर इन्होनें अचानक बिना किसी अधिकारी के आदेश के एवं बिना बोर्ड की अनुमति के बिना कोई शासनादेश के अधिकारियों को गुमराह कर वर्ष 2016 से पीडब्ल्यूडी शिडियूल दर पर 15 हजार वेतन, एवं 2018 से 18 हजार और 2021 से 24 हजार वेतन प्राप्त करते रहे। एक भी वित्तीय वर्ष के अनुदान की पंजिका और ना ही किसी अनुदान मद की पत्रावली ही मिला जो गंभीर आरोप है।
विगत सालों की कई ऐसी पत्रावली मिली जिसमें बिना ईओ और चेयरमैन के हस्ताक्षर के भुगतान कर दिया गया, इसे अति गम्भीर आरोपा माना जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि जैसा भी चाहा किसी को भुगतान किया और अगर चाहा तो खुद भुगतान ले लिया। जबकि लेखा नियमों के तहत बिना अध्यक्ष/प्रशासक के वित्तीय स्वीकृति के भुतगान करना वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है। इसी तरह के अन्य कई ऐसे गम्भीर आरोप हैं, जिसकी जांच होनी आवश्यक है। अगली कड़ी में कुछ और चैकाने वाले तथ्यों का खुलासा होनें की सम्भावना है।