सनातन को छेड़ना महाकाल को खुला आमंत्रण!सनातन ही सत्य व सहिष्णुता का परिचायक है.

राजेंद्र नाथ  तिवारी, हम स्वयं अपने  देवी देवताओ पर जब प्रश्नचिन्ह खड़ा करेंगे तब अन्य धर्मावलंबी स्वत: निर्थक लिखेगे पढ़ेंगे. स्व धर्मे निधन् श्रेय:, पर धर्मो भयावह: ,हमारे चिंतकों की प्ररिमार्जित भाषा रही,उसे छोड़ने से बचना चाहिए.यद्यपि धर्म आस्था और विश्वास का विषय है तथापि हमारा धर्म वैज्ञानिक व रचना धर्मी है,इसलिए कृंवंतो विश्वमार्यम या वुधेव कुटुंबकम  की मान्यता है. हमारे पास इतना शब्द सामर्थ्य है तब हम पाश्चात्य को स्वीकारें प्राच्य्य ही पर्याप्त है. हमे अपने साहित्य, पुराण,विज्ञान पर ही अवल्मबित होना चाहिए, न कि परावल्म्बन.

अंग्रेजो की देन है धर्मांतरण और पलायन वादी विचार. ईश्वर को लार्ड आदि पुकारने से आंतरिक और निहितार्थ बदल ही जाता है. कृपा कर हमे अपनी सनातन संस्कृति व मान्यता पर दृढ़ निश्चय का पालन करना चाहिए,जैसे सारी नदियां बंगाल की खाड़ी में मिलती है वैसे ही दुनिया का हर धर्म सत्य,सनातन,संस्कृति पर ही अवल्म्बित है.

 क्या भगवान राम या भगवान कृष्ण कभी इंग्लंड के हाऊस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य रहे थे? नहीं ना? फिर ये क्या लॉर्ड रामा, लॉर्ड कृष्णा लगा रखा है? सीधे सीधे भगवान राम, भगवान कृष्ण कहियेगा।


 किसी की मृत्यू होने पर "RIP" मत कहिये. कहीये "ओम शांती", "सदगती मिले", अथवा "मोक्ष प्राप्ती हो"। आत्मा कभी एक स्थान पर आराम या विश्राम नहीं करती। आत्मा का पुनर्जन्म होता है अथवा उसे मोक्ष मिल जाता है।


 अपने रामायण एवं महाभारत जैसे ग्रंथों को मायथॉलॉजी मत कहियेगा। ये हमारा गौरवशाली इतिहास है और राम एवं कृष्ण हमारे ऐतिहासिक देवपुरुष हैं, कोई मायथोलॉजिकल कलाकार नहीं।


मूर्ती पूजा के बारे में कभी अपराधबोध न पालें यह कहकर की "अरे ये तो केवल प्रतीकात्मक है। "सारे धर्मों में मूर्तीपूजा होती है, भले ही वह ऐसा न कहें। कुछ मुर्दों को पूजते हैं कुछ काले पत्थरों को कुछ लटके हुए प्रेषितों को।

गणेशजी और हनुमानजी को "Elephant god" या "Monkey god" न कहें। वे केवल हाथीयों तथा बंदरों के देवता नहीं है। सीधे सीधे श्री गणेश एवं श्री हनुमानजी कहें।

हमारें मंदिरों को प्रार्थनागृह न कहें। मंदिर देवालय होते हैं, भगवान के निवासगृह। वह प्रार्थनागृह नहीं होते. मंदिर में केवल प्रार्थना नहीं होती।

अपने बच्चों के जन्मदिनपर दीप बुझाके अपशकुन न करें. अग्निदेव को न बुझाएं। अपितु बच्चों को दीप की पार्थना सिखाएं "तमसो मा ज्योतिर्गमय" (हे अग्नि देवता, मुझे अंधेरे से उजाले की ओर जाने का रास्ता बताएं". ये सारे प्रतीक बच्चों के मस्तिष्क में गहरा असर करते हैं।

 कृपया "spirituality" और "materialistic" जैसे शब्दों का उपयोग करने से बचें. हिंदूओं के लिये सारा विश्व दिव्यत्व से भरा है। "spirituality" और "materialistic" जैसे शब्द अनेक वर्ष पहले युरोप से यहां आये जिन्होंने चर्च और सत्ता मे फरक किया था। या विज्ञान और धर्म में, इसके विपरित भारतवर्ष में ऋषीमुनी हमारे पहले मार्ग दर्शक रहे हैं.

हमारा सनातन ही गंगा की धारा से भी अधिक पवित्र व शाश्वत है. शाश्वत को छेड़ना महाकाल को आमंत्रण है.

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