आजकी कांग्रेस आजके वामपंथ की खराब फोटो कांपी

राजेंद्र नाथ तिवारी गांधी जी की वैचारिकी को तिस्कृत करती कांग्रेस स्वाभाविक रूप से वाम पंथ की खराब फोटो स्टेट कापी के अतिरिक्त कुछ भी नही.विचार औरचिंतन के मामले में कांग्र्रेस अब वामपंथियों की एक खराब कार्बन कापी बनकर रह गई है।उसके अंदर प्राण वायु की संभावना क्षीण सी  हो गई है.

उसका पुनर्जीवन संभव से  असम्भव की ओर बढ़ता जा रहा है.कांग्रेस तभी पुनर्जीवित हो सकती है जब वह संकीर्ण परिवारवाद से बाहर निकले और वामपंथ एवं उसके अर्बन नक्सल संस्करण से मुक्ति पाए।  वर्तमान समय में ऐसा होना संभव है?

आखिर देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की दुर्गति का जिम्मेदार कौन है? कई जानकारों के अलावा अब पार्टी के भीतर भी इसके लिए गांधी परिवार को जिम्मेदार माना जा रहा है। यह निष्कर्ष सच तो है, किंतु यही पूरी सच्चाई नहीं। क्या इस संदर्भ में केवल गांधी परिवार को ही दोषारोपित करना उचित होगा? पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद सोनिया गांधी पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष बनी हुई हैं। राहुल गांधी परोक्ष रूप से पार्टी के निर्णायक फैसले ले रहे हैं। तमाम कोशिश के बावजूद प्रियंका गांधी वाड्रा उत्तर प्रदेश में कांग्र्रेस की स्थिति में कोई सुधार नहीं कर पाईं।

 वस्तुत: परिवारवाद की विषाक्त विष बेलि को अमर बैली बनाने में कांग्रेस की समस्याओं की जड़ को जानना होगा . उसके बीज भी पार्टी ने ही बोए थे। इसकी शुरुआत जवाहरलाल नेहरू के दौर में हो गई थी। परिणामस्वरूप विगत साढ़े सात दशकों में एकाध अपवाद को छोड़ दिया जाए तो कांग्र्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर गांधी परिवार ही काबिज रहा है। इसमें पिछले ढाई दशकों के दौरान पार्टी की राजनीतिक जमीन खिसकती ही गई। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या नेतृत्व परिवर्तन से ही पार्टी का कायाकल्प संभव है? 

परिवार की प्रेत छाया से छुटकारा पाना वरिष्ठ कांग्रेसियों में इच्छा शक्ति का घोर अभाव दर्शाता है.परिवार जिसे अपनी प्राण वायु कह रहा वस्तुत: वह एक रंगमचीय विदूषक के अतिरिक्त कुछ भी छाप नहीं छोड़ पारहा. आज कांग्रेस  और कांग्रेसी विपरीत दिशाओं में परस्पर जोर आजमाइश वाले घोड़े की तरह होगई है.

राग दरबारी और दरबारी संस्कृति से प्रेत छाया के आगे कोई भी नहीं हिम्मत जुटाना नहीं चाहता.सुनियोजित पाश्चात्यकी ही कांग्रेस की पूजी हे और छू फिलहाल हमेशा साम्यवादी विचार धारा की ओर उन्मुख है.जब महात्मा जी ने कांग्रेस की आवश्यकता और अस्तित्व को ही नकार दिया तब उनके नाजायज उत्तराधिकारी कांग्रेस को भू गोविंदम की तरह क्यों जप तब की दुहाई देते रहे है.

वस्तुत:परिवार वाद के अवसाद से मुक्ति में ही कांग्रेस की प्राणवायु छिपी है.कांग्रेस को कांग्रेस ही वामी चेहरा बन लील रही है.

Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form